धानी ने दोनों हाथों से मेरे पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए ,
” ऐसा नहीं हो सकता है छोटे बाबू! आज आप बड़े भाग्य से मिले हैं। आपको किसी भी हाल में नहीं खो सकता।
आपको जरूरी से जरूरी काम छोड़कर भी बड़े बाबू के पास चलना ही होगा। “
मेरा मन फिर डगमगाने लगा किसी रहस्यमय परिस्थितियों के उद्घाटन की बू आ रही थी। उसके आग्रह पर पिता के पास जाने की अदम्य इच्छा जाग उठी।
मैं उसके साथ चलने को तैयार हो गया। अत्यंत खुश हो कर उसने मेरी हथेलियों को चूम लिया।
मैं रास्ते भर चुपचाप रहा। बहुत से प्रश्न दिमाग में उमड़- घुमड़ रहे थे पर कुछ भी पूछने का साहस नहीं हुआ।
धानी अपने-आप पिता के सम्बंध में जो कुछ कहता रहा सब सुनता रहा।
उस आलिशान पुरानी हवेली नुमा मकान के पास जब टैक्सी रुकी तो धानी ने मुझे बाहर ही यह कह कर रोक दिया कि ,
” हेम बाबू , आप जरा बाहर ही रुकिए उनका दिल थोड़ा कमजोर है।
डाक्टरों ने कहा है,
कोई भी अचानक मिली खुशी या बड़े सदमे उन पर बुरा असर डाल सकती है “
लिहाजा मैं बाहर ही खड़ा रहा और वो अंदर चला गया।
अकेले होते ही मेरे मन में फिर संदेह का कीड़ा जोर से कुलबुलाने लगा और मैं निकल भागने की सोचने लगा।
लेकिन तब तक धानी बाहर निकला और अत्यंत उल्लास के साथ मेरे हाथ पकड़ कर ,
” हेम बाबू ! आगे चले आइए”
थोड़ा हिचकते हुए मैं अंदर आ गया।
अंदर बाईं तरफ के कमरे से लगातार खांसने की आवाज़ आ रही थी। ऐसा लगा मानों खांसते – खांसते वह व्यक्ति दम लेने की फुर्सत तक नहीं पा रहा हो।
मेरा मन एक अप्रिय भावना से जैसे सिकुड़ने लगा धानी ने उसी कमरे के पर्दे हटाते हुए कहा ,
” आगे अंदर चले आइए , छोटे बाबू “
एक विचित्र ग्लानि और संकोच के साथ मैं अंदर हो लिया।
जहां सामने पलंग पर पिता लेटे हुए कराह रहे थे। मैं आश्चर्यचकित हो कर उनके चेहरे की ओर देखता रह गया जिन पर थोड़ी सूजन आ गई थी।
लेकिन उससे उनका चेहरा भद्दा ना लग कर और सौम्य दिख रहा था।
वो सौम्यता उनकी मार्मिक पीड़ा व्यक्त कर रहा था।
मेरे अंदर प्रवेश करते ही पिता पलंग पर उठ बैठे और अत्यंत कोमल और करुण स्वर में लगभग कराहते हुए बोले —
” आओ बेटा , आओ ! भगवान के घर में देर हो सकती है पर अन्धेर नहीं।
आखिर मरने से पहले तुमसे मुलाकात हो ही गई।
आओ… मेरे एकदम पास आ जाओ … देखो मुझसे कतराओ नहीं।
जरा तुम्हारे गालों पर तो हाथ फेर लूं। तुम चाहे कितने भी बड़े हो जाओगे लेकिन मेरे लिए तो वही हिमांशु रहोगे जिसे मैं तीन महीने से लेकर तीन वर्ष तक दिन भर गोद में लिए घूमता रहता “
” तुम्हारे इन्हीं गालों को चूम- चूम कर लाल कर देता था। “
” बेटा , वे दिन कहां गये ?
कैसे चैन और मीठे सपनों जैसे वे दिन थे ! “
हां! मीठे सपने जैसे ही तो थे वे दिन,
जब अचानक एक भीषण काले धुएं ने न जाने कहां से आ कर सब कुछ को अपने घेरे में ले लिया “
वे आवेग से भरे हुए … जब उनको खांसी का एक जबरदस्त ‘फिट’ आ गया। खांसते – खांसते उनका दम फूलने लगा।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -69)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi