वह थोड़ा भावुक है।
और शायद तुम जानती होगी ,
“भावना के क्षेत्र में बहुत कुछ अजीब और अनपेक्षित होता है “
जिसे झेलने को तैयार हो ?
हम स्त्रियां भावुक तो होती हैं। पर पुरुष भावुक हो तो झेल नहीं पाती हैं। हम अक्सर स्वाभाव से ही दास्य भाव स्वीकार करने की आदी रहती हैं।
नैना थोड़ी आत्मलीन रही , जैसे खुद को खंगाल रही हो।
वह संकोच के कारण माया से तुरंत कुछ कह नहीं सकी। कहीं वे यह न सोच लें खामखा इतरा रही है।
फिलहाल इस वक्त उसे ,
” खुद की जिंदगी के टूट चुके तारों से निकलने वाली बेढ़ंगे सुरों से परेशान किसी पुरुष को समझ पाने की गुंजाइश हिमांशु के रूप में
दीख रही थी। “
जिसे गंवाने को नैना किसी हाल में तैयार नहीं है।
हिमांशु उसकी कच्ची उम्र का पहला और अंतिम प्रेम है। या यूं कहें वह नैना के लिए सदैव से ‘ आकाश तारा ‘ रहा है।
प्रिय पाठकों!
कभी- कभी ऐसा होता है कि आप किसी से मिलते हैं, और अचानक ऐसा लगता है कि सामने बैठा बंदा आपका राजदार हो सकता है ,
जिसके समक्ष आप अपने मन की किताब बेखौफ खोल सकते हो।
ठीक यही हालत अभी नैना के सामने माया की है।
” कुछ कहना चाहती हो नैना ? ” नैना कातर हो रही है।
” बहुत कुछ, या कहिए सब कुछ ,
” माया दी ,
बाहर से शांत और सुखी दिखने वाले हिमांशु भी अपनी जिंदगी में कितने तूफान समेटे हुए हैं ना ?
आवश्यकता है उस दायरे को तोड़ कर सब कुछ बह जाने देनें की “
— माया
” जानती हो बाद के दिनों में वह इन्हीं ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चल कर बड़ा हुआ है, जिससे उसके पांव लहुलुहान हैं।
उसे मिली अथाह – अकूत पैतृक सम्पत्ति की वजह से उसने अब तक कितनी हीजगहों पर नौकरी छोड़ी और फिर नयी- नयी पकड़ता रहा है।
अक्सर अवसाद में घिर जाया करता है। और तद्नुरूप बुझा- बुझा व्यवहार और उससे बचने के लिए अब तो दवाइयों का सेवन भी करने लगा है।
मैंने नोटिस किया है। आजकल उसकी मित्रता कुछ ऐसे ही साथियों से हुई है।
नैना सुन कर अधीर हो रही है। उसकी आंखों से आंसू बह निकलने को तत्पर हैं।
किशोरावस्था से ही अपने आराध्य के तेवरों की जो मधुर छवि उसके हृदय में बसी है।
उसका ऐसा अवमूल्यन ?
हिमांशु के लिए एक अंजानी सी आशंका उसे अंदर तक कंपा गई।
” नैना मेरा माथा तो तभी ठनका था जब इसने आई . ए . एस की परीक्षा कंपीट करके भी सर्विस ज्वाइन नहीं की थी ,
” मेरा मानना था,
इंसान ठोकरें खा कर और मजबूत होता है। पर इसका ईगो किंगसाइज है। जो शायद तुम्हारे साथ और संसर्ग में कम हो जाए ”
बातचीत में कब शाम ढ़ल कर रात में बदल गई थी दोनों को पता ही नहीं चला।
हिमांशु आया था माया को लेने। वो उसके साथ फिर मिलने का वाएदा ले कर माया को ले कर चला गया था।
अपने शहर से दूर दिल्ली में वे उन दोनों की मित्रता के प्रारंभिक दौर थे। फिर वे अक्सर मिलने लगे थे।
एक दिन शाम में हिमांशु ने बेधक दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा था ,
” माया दी तुमसे मिली थीं, क्या कह रही थीं वो ? “
” कुछ नहीं! क्यों उनका मुझसे मिलना तुम्हें इतना नागवार गुजर रहा है ? “
” तुम नाराज़ हो गई मुझसे “
नैना सोच रही है ,
” मैं तुमसे नाराज़ हो नहीं सकती हिमांशु , लेकिन खुश भी किस वजह से होऊं ?
शायद इन दोनों के बीच या परे हूं ? मैं उलझ सी गई हूं “
एक दिन पिक्चर हौल की सीढ़ियां उतरते हुए,
” भूख लग रही है। चलो मैकडोनाल्ड चलते हैं “
हिमांशु ने कहा था।
” घर चलो ना ! ” नैना ने अनुरोध किया।
” मैं जल्दी से आलू परांठे बना लूंगी , तुम्हें पसंद हैं माया दी ने कहा है “
नैना को उम्मीद नहीं थी , पर हिमांशु यकायक तैयार हो गया।
आगे …
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -41)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi