सुशोभित नैना के घर से लौटते समय उसके और उसकी दीदी के आज वाले व्यवहार के संबंध में सोचता रहा , और सोचते – सोचते कभी विस्मित, कभी पुलकित होता रहा।
नैना …
उस दिन कितने मन से सुशोभित को अपने घर बुलाया था वह आ भी गया था ।
बेचारा … लगता है ‘प्रेम’ का मारा है।
लेकिन उसके पीठ पीछे ही दीदी भी आ गई थी। वैसे तो उनके आने की बात थी। पर सच में आ जाएंगी ऐसा मैंने नहीं सोचा था।
और तो और वो कितनी अनौपचारिक हो गई थी।
सुशोभित से ना कुछ पूछा ना ही बातचीत। ये भी क्या बात हुई वैसे तो मेरी हर बात में बेवजह अपनी टांग अड़ाती रहेंगी और उस दिन और कुछ भी नहीं बोल बस मुंह फुलाकर बैठी रहीं।
सुशोभित हड़बड़ाहट में उठ कर चला गया था। मुझे लगा जैसे कि उन्होंने मेरे जख्म पर नमक छिड़क दिया है।
मैं उनपर झल्ला उठी ,
” ये क्या है दीदी ?”
वह चुप थीं, चुप मैं भी थी लेकिन उनसे पूछे गए प्रश्न के जबाव की उत्सुकता लिए।
” पहले तू बता यह सब क्या है ? उन्होंने मुझे बगल में बैठा लिया ,
” तुम्हें सुशोभित … पसंद है या तुम्हें उससे प्यार है ? “
ओह!
” ये सवाल मन के आर- पार हो गया लगा जैसे … उन्होंने मेरे कान के पास किसी गाने को जोर से बजा दिया है।
जिससे उसकी धुन और बोल सब आपस में मिल कर मेरे कानों को झनझना गये।
” क्या सुशोभित से तुम्हारी मुलाकात अचानक हुई या उसके लिए तुमने कोई तैयारी की जैसे प्रेम के लिए की जाती है “
” नहीं … नहीं ना दीदी “
” तो किसी को भी घर क्या यूंही बुला लेना चाहिए नैना ? “
उस समय नैना की उम्र कोई 17 या 18 की रही होगी।
उसे समझ में नहीं आया वह क्या जबाव दे उसने अपने मन को टटोला,
” क्या प्रेम कोई परिपक्व सी उम्र में करने की चीज है या इसे करने के पहले सोच लिया जाना चाहिए दीदी,
‘ गुलाब ‘ को चाहे किसी भी नाम से पुकारो वह गुलाब ही रहता है और उसकी सुगंध वैसी ही मीठी रहती है”
” उंह … फिर वही बड़ी – बड़ी बातें ,
अरी ओ … नीडर -बिंदास मिडिल क्लास कन्या। बहुत होगा तो कोई सरकारी क्लर्क के गले में वरमाला डाल पाएगी इससे ज्यादा की सोचना भी मत “
” तो क्या यही मेरा भविष्य है मैं इसलिए ही बनी हूं ?
जया दी का चेहरा लाल हो गया माथे पर शिकन आ गये उसने मन ही मन सोचा,
” मैं उस पेड़ की तरह हूं नैना जो सिर पर गर्मी तो सह लेता है पर अपनी छाया से तुम्हें नहीं बचा पाऊंगी बहन “
प्रकट तौर पर,
आगे फिर शोभित से नहीं मिलने की शर्त पर उन्होंने घर पर शोभित के नैना द्वारा दिए गए निमंत्रण पर आने की बात भी किसी को नहीं बताई थी।
उसके अगले दिन वे दोनों बहनें हाॅल में लगी कोई रोमांटिक फिल्म देखने गयी थीं। फिल्म अच्छी थी।
वो एक प्रेम कथा थी। जिसमें नायक गांव का और नायिका शहर की थी पहले तो नायिका प्रेम नहीं करती है पर नायक के बार- बार आग्रह करने या एक तरह से कह लें पीछे पड़ने से एवं लुभावने प्रेमगीत गाने की वजह से नायिका भी उसके प्रेम में हो जाती है
बेहतरीन कलाकार , अच्छा डायरेक्टर सब कुछ रहने के बाद नैना को फिल्म बहुत जंची नहीं थी ।
ऐसा भी कहीं होता है क्या ? ना… नहीं , बिल्कुल नहीं वैसे फिल्म ठीकठाक पैसा वसूल टाइप थी।
नैना के लिए,
” प्रेम तो सहज भाव से स्वयं उत्पन्न होने को कहते हैं “
” किसी लड़के और लड़की इन दोनों के बीच पनपते प्रेम का सीधा संबंध उसके लगाव से है जिसमें सामाजिक बंधन नहीं होता है ” क्यों कि वह सोचती है ,
” सामाजिक बंधन से मुक्त होना ज्यादा सरल है अपेक्षाकृत प्रेम के बंधन से मुक्त होने के “
बहरहाल,
जो भी परिवर्तन हुआ हो। उसने जिंदगी और फिल्म को दो अलग- अलग ढांचे में रख कर देखने के प्रयास में फिर से सुशोभित से मिलने की ठान ली है।
आगे …
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -4)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi