— हिमांशु सर
मैं उस शाम जज्बातों के समंदर में डूब जाने से उससे उत्पन्न सैलाब को शांत करने की कोशिश में था।
मुझे पता था मैं भूलवश ही सही पर अपने से ग्यारह साल छोटी लड़की के संग प्यार में था।
मुझे यह डर नहीं था कि नैना के साथ मेरे इस प्रेम-भाव वाले संबंध को सामाजिक स्वीकृति मिलेगी या नहीं ?
या समाज में मुझे किस भाव से देखा जाएगा ?
इसे लेकर भी मैं चिंतित नहीं हूं।
मुझे डर था, तो सिर्फ इसका कि नैना मेरे प्यार में डूब चुकी है जिसका सीधा प्रभाव उसके भविष्य पर पड़ने वाला था।
इस मामले में वह बिल्कुल कच्ची और नासमझ-नादान साबित हुई है।
उससे दूर जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था पर वहां सबकी नजरों के सामने साथ रहने में और भी मुश्किलें आने वाली थीं।
जब मैं ने शुरू – शुरू में स्कूल ज्वाइन किया था। तो पहले दिन ही नैना में मुझे एक चुलबुली , मासूम सी शरारती बच्ची दिखी थी।
उसकी आंखों से उसके दिल का सब हाल पता चल जाता था।
हां यह मैं स्वीकार करता हूं। शुरू से ही मेरे दिल में भी उसके प्रति एक आकर्षण जरूर था।
जब स्कूल में सुबह वाले प्रेयर में सबकी आंखें बंद रहती तो मैं बेधड़क उसे निहारता।
लेकिन उसकी आंखें खुलते ही पूर्ण रूप से नजरअंदाज कर देता।
जैसे कभी उसे देखा ही नहीं है।
उस दिन जब नैना की किताब मेरे पास छूट गई थी। तब उसके बीच में दबे उसके खुद के हाथों द्वारा बनाए गये गुलाबी मोरपंख वाले कार्ड को देखा था।
तभी मेरी समझ में आ गया था। उसके दिल और जिंदगी में मेरी खास जगह बन गयी है।
लेकिन अगर मैं भी अपने घायल दिल के हाल उसे कह बैठता तो,
” शायद न सिर्फ शिक्षक और छात्रा का पवित्र रिश्ता दागदार हो जाता बल्कि इस रिश्ते को यूं स्मूथली चला पाना भी असंभव हो जाता “
यह सब रोकने के लिए मुझे उससे अपने रास्ते अलग कर देना ही एकमात्र हल दिखाई दिया।
और मैं उसकी, अपनी एवं हम सबों की भलाई के लिए तबादले की अर्जी देकर अपने होमटाउन दिल्ली चला आया था।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -18)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi