(सत्य घटना पर आधारित)
सुमन मुंशी प्रेमचंद जी का प्रसिद्ध उपन्यास गोदान पढ़ने में तल्लीन थी। उपन्यास काफी रोचक लग रहा था, अचानक उसे किसी के दर्द से कराहने का करूण स्वर सुनाई पड़ा।
उसने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखा-रात के बारह बज रहे थे।
पास में ही पति रंजन और दोनों बेटियां पीहू और माही गहरी निद्रा में थे।जब उसने खिड़की का परदा उठाकर बाहर देखा,तो पाया कि मूसलाधार बरसात हो रही थी,रह रह कर बिजली चमक रही थी और बादलों के गरजने की आवाजें आने के कारण उसने बाहर जाने का विचार छोड़कर दोबारा उपन्यास पढ़़ने लगी थी,बाहर से दर्द भरी आवाज को सुनकर वह झटपट उठी।
पहले उसने अपने पति रंजन को जगाना चाहा,जो नींद मे बड़बड़ाते हुए बोला-मुझे तंग मत करो?
सुमन ने रेनकोट पहना,टार्च ली और धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।बाहर का मौसम बड़ा ही खराब था ्रास्ते मे पानी भरा था।सड़क की लाईट भी मध्यम थी।वह अपने को संभालती हुई आवाज की दिशा की ओर चल पड़ी।
उसे लगा कि कोठी के पास जो बगीचा है,यह आवाज वहीं से आ रही थी।
जब सुमन वहां पहुंची तो उसने देखा कि एक बड़ी सी बिल्ली करूण स्वर मे आवाजें निकालती हुई इधर उधर घूम रही थी,और जमीन पर पांच रुई के समान कोमल नवजात बच्चे बरसात के पानी मे भीग रहे थे।वह बिल्ली भी एक मां थी जिसे अपने बच्चों की चिंता सताने के कारण ही वह कारुणिक स्वर मे क्रंदन कर रही थी।
सुमन ने काले रंग का रेनकोट पहना था,जैसे ही आवाज सुनकर चौकीदार आया,वह भूत -भूत की आवाजें निकालने लगा,आसपास रहने वाले लोग जाग गए।
सुमन ने चौकीदार को डांटते हुए कहा -यहां कोई भूत वूत नही है, तुम अपने घर से एक टोकरी लेकर आओ?
जैसे ही रामदीन चौकीदार एक टोकरी लेकर आया,सुमन ने बिल्ली के पांचो नवजातों को उसमे रखा ।जब चौकीदार ने बिल्ली को उठाना चाहा तो वह एक तरफ लुढ़क गई अर्थात बच्चों को सुरक्षित हाथों में पहुंचाकर उसने चिर निद्रा ले ली।
सुमन उन बच्चों की टोकरी उठाकर भरे मन से अपने घर की ओर चल पड़ी।
#दर्द
स्वरचित सुश्री कान्ता नागी