कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा कि, सुरैया अपनी दादी और अंगद की जान बचाने के लिए… आनंद के शर्तों को मान कर, उसके साथ जाने का फैसला करती है…
अब आगे..
अंगद: नहीं सुरैया… तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं.. कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें… यह लोग ऐसे भी कुछ नहीं कर पाएंगे..
सुरैया: देखिए मास्टर जी..! आपने मेरे और मेरे परिवार का भला सोच कर काफी कुछ किया हैं… पर अब मुझे और किसी का एहसान नहीं चाहिए.. अपने पढ़ने की जिद्द की वजह से, मैंने पहले ही अपने पिता को खोया और अब मेरा आखरी सहारा, अपनी दादी को नहीं खो सकती… और रही बात आपकी… क्यों मैं अपनी वजह से आपको भी मरने दूं..? आप नहीं जानते, यह लोग कितने खतरनाक है..?
अंगद: सुरैया..! तुम मेरा यकीन करो… कुछ नहीं कर पाएंगे यह लोग…
सुरैया: उस रात की बात अब भी याद है मुझे..! आज मैं वह रात फिर से दोहराना नहीं चाहती… आनंद..! मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है.. बस इन लोगों को जाने दो…
आनंद: सुरैया..! तू सच कह रही है ना..? कहीं तेरे बाप की तरह कोई चाल तो नहीं चल रही है..?
सुरैया: नहीं.. मैं सच कह रही हूं.. और सच कहूं, अब तो मुझ में लड़ने की हिम्मत भी नहीं है..
अंगद: आखिर क्या हुआ उस रात सुरैया..? जो तुम इतनी जल्दी हार मान रही हो..?
दादी: ओ सुरैया..! हमका भी जाननो है कि हमार बिटवा का हत्या कैसन भईल और तोहरी हालत खराब कैसन भईल..?
आनंद: ए चुप करो तुम सब…? यहां क्या कहानी बताने का कार्यक्रम चल रहा है..? कहां ना सुरैया ने.. वह मेरे साथ जाएगी, बस बात खत्म..
अंगद: सुरैया..! इसकी बात मत सुनो.. तुम इसके साथ जाओ या नहीं.. यह हमारी जान जरूर लेगा… यह बस तुम्हें बेवकूफ बना रहा है.. यह जान चुका है अब इसका अंत नजदीक आ गया है और इसलिए यह अब किसी भी हालत में हमें जिंदा नहीं छोड़ेगा..
आनंद: अच्छा..! तो कौन लाएगा हमारा अंत..? तू..? एक मामूली सा स्कूल मास्टर ..? यह कहकर वह जोर जोर से हंसने लगा…
अंगद: हां.. मैं लाऊंगा तुम लोगों का अंत…इतना हंसने से पहले जरा पीछे मुड़ कर भी देख लो…
आनंद, महेंद्र जब पीछे मुड़ते हैं.. तो देखते हैं उन लोगों के हर आदमी को पीछे से एक पुलिस वाला बंदूक तानकर घेर खड़ा होता है…
आनंद: यह सब क्या है .?
अंगद: यह सब वही है, जो तुम देख रहे हो.. मैं कोई मास्टर नहीं हूं… एक अंडरकवर एजेंट हूं.. जो इस कस्बे के बारे में, जो बातें बाहर चल रही थी… उसकी पूरी जाँच करने, एक मामूली मास्टर के भेष में आया था.. ताकि तुम जीजा साले को रंगे हाथों पकड़ सकूं..
अंगद के इतना कहते ही सुरैया, दादी सब चौक जाते हैं..
दादी: बबुआ..! इ का का मतलब है..?
अंगद: दादी…! मैं एक पुलिस अफसर हूं… और मैं पहले दिन से यहां एक एक चीज का सबूत जुटा रहा था और आज भी, मैं अब तक यह सब तमाशा इसलिए देख रहा था… ताकि यह जीजा साला खुद अपने मुंह से सारा कुछ बक दे… क्योंकि यह सारी बातें रिकॉर्ड हो रही थी… और इसलिए मैं सुरैया के मुंह से उस रात की सारी घटना जानना चाहता था….
सुरैया..! मैं तो सारे सबूत इकट्ठा कर चुका हूं… पर फिर भी तुम पर जो बीती है, उसे तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं… ताकि यह दरिंदे किसी भी सूरत में बच ना पाए…. तुम यहां जो भी कहोगी, वह सभी कुछ हमारे उच्च अधिकारी देख रहे हैं… तो तुम्हें अब किसी से डरने की जरूरत नहीं… तुम हर एक बात उस रात की बताओ, जानती हो..! बहुत हिम्मती थे तुम्हारे बाबा.. जिन्होंने अकेले ही लड़ने की ठानी और तुम्हें यह जानकर हैरानी होगी, की तुम्हारे बाबा की वजह से ही इस कस्बे की बात हम तक पहुंची… वरना इस छोटे से कस्बे में क्या घट रहा है..? यह कहां किसी को पता चलता..? इन दरिंदों को लगता है, यह भगवान है… पर यह भूल जाते हैं कि इनके ऊपर असली भगवान भी बैठे हैं…
दादी: का..? माखन का वजह से तुम लोगन, हम लोगों का दुख जान पायो..? पर ऊ कैसे..?
अंगद: हां… सच में उनकी काम की जितनी सराहना की जाए वह कम है… विश्वास ही नहीं होता के, वह एक छोटे से कस्बे में रहते थे… क्योंकि दिमाग तो उनका काफी तेज था और उसी का नतीजा यह है, पर अफसोस…? हम उन्हें बचा ना सके… पर हम उनकी कुर्बानी बेकार नहीं जाने देंगे…
आखिर क्या किया था माखनलाल ने…? जिसकी वजह से एक छोटे से कस्बे की खबर बाहर तक पहुंच गई और स्वयं पुलिस उसकी जांच करने आ पहुंचे..?
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दर्द की दास्तान ( भाग-16 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi