“हेलो, रविश जी, आ जाइये, प्रभा जी स्वर्ग सिधार गयी” सबेरे ही मेन्टल हॉस्पिटल से फ़ोन था। घबराकर कार निकाली और चल पड़ा, 2 घंटे का रास्ता था, और वो राह उसे अतीत की तरफ ले गयी। बचपन से माँ को या तो किचन समेटते देखा, या, मशीन में कपड़े सिलते या अपने कमरे में आंसू बहाते। हम भाई, बहन सोचते रहते पापा अफसर है, फिर माँ क्यों इतनी मेहनत करती हैं, उसका राज बाद में जाकर खुला। पहले तो हम बच्चे अपने मे खोए रहे, फिर होस्टल चले गए, माँ ने अपने मन का दरवाजा हमारे लिए नही खोला, क्योंकि उसमें दुख और यातनाएं ही ज्यादा थी। रविश के बढ़िया जॉब में आने के दो साल बाद उसके पापा ने कहा,” माँ की तबियत ठीक नही रहती, दिनभर बड़बड़ाती हैं, डॉक्टर ने एडमिट करने कहा है, बहुत दुख हुआ, पर क्या किया जा सकता था।”
एक साल बाद ही उसके पापा को हार्ट अटैक आया और वो भी चले गए । उसके बाद ही सफाई में पापा के लॉकर में एक माँ की डायरी मिली, रविश सोच भी नही सकते थे, कि माँ भी डायरी लिखती होंगी । और वो पढ़ने लगा….. आज मुझे देखने लड़के वाले आएंगे, क्या करूँ, पापा की बात टालने का मतलब है, गालियां सुनो । मैं अमर को नही भूल सकती, चलो अब दिल के तहखाने में ताले में रखूंगी । आज मेरा ससुराल का पहला दिन है, बड़ा अजीब माहौल है, महलनुमा घर है, संयुक्त परिवार है, पर ज्यादा कोई एक दूसरे से बात भी नही कर रहा। एक साल बाद फिर पता चला इनकी एक शादी हो चुकी है, सबको पता है, दूसरे शहर में फ्लैट में रहती है, महीने के दस दिन वहां बीतते है, कुटुंब के वारिस के लिए मुझसे शादी की गई। जिस दिन से पता चला मैं गुमसुम रहने लगी, मौन धारण कर लिया, मायके में भी कोई सुनने वाला नही था, बस मेरे पास भी अमर की यादों के सिवा कुछ नही था, जब बहुत मन दुखी होता, तो उसके पार्क में कहे तीन शब्द उसे हिम्मत देते। बस डायरी मेरी सहेली बन गयी ।
बच्चे बड़े हो गए थे, सबने अपनी राह पकड़ ली। और एक दिन रात को मैंने सपना देखा, मेरे पति एक दुल्हन को घर ले कर आ रहे हैं, और मैं जोर जोर से रोने लगी । फिर पता नही क्यों वो सपना बार बार आता, मैं रोने लगती , बस एक दिन इन्होंने मेन्टल डॉक्टर को घर बुलाया, उससे कुछ बाते की, और वो लोग मुझे हॉस्पिटल ले गए। उसके बाद के सारे पन्ने खाली थे। अब मैं सकते में था, मेरी प्यारी माँ, ये क्या हो गया। दो दिन पहले मैंने हॉस्पिटल में बात की थी, मैं माँ को लेने रविवार को आऊंगा। तभी गूगल मैप ने दिखाया हॉस्पिटल आ गया है, कार की स्टीरिंग पर सिर रखकर रो पड़ा, “माँ, अब तुम्हारे सुख के दिन आये, तो ईश्वर को भी तुम्हारी याद आ गयी।” स्वरचित भगवती सक्सेना गौड़ बैंगलोर
# दर्द