#जादुई_दुनिया
साथियों यह कहानी है मास्टर ‘ मोनू ‘ एवं उनकी पैंसठ साला ‘दादीमाँ ‘ की।
दादी का भरापुरा परिवार उनके साथ ही दादाजी के बनवाए हुए कानपुर के सिविल लाइन्स की बड़ी सी पीली कोठी में रहता है ।
जिनमें दादी उनके बेटे डॉक्टर अशोक उनकी बहू जो स्वय लेडी डॉक्टर हैं के अलावे उन दोनों का बेटा मोनू सभी मिलजुल कर हँसी खुशी रहते हैं।
मोनू जब तक छोटा था तब तक दादी के दिन बहुत अच्छे से गुजर रहे थे।
अब धीरे -धीरे वह बचपन से गुजरता हुआ किशोरावस्था को प्राप्त कर चुका है।
लिहाजा उसकी पढ़ाई-लिखाई सीरियस हो चली है साथ ही खेलकूद , मित्रमंडली यहाँ तक कि टीवी के चैन्लस और सीरियल के नाम भी थोड़े बड़े वाले हो गये हैं।
कहाँ दादी के साथ बैठ कर दिन-दिन भर ‘टॉम ऐन्ड जे़री ‘ देखने वाला मोनू अब साइ़स फिक्शन देखता रहता है तो दादी बोर होने लगी है।
कभी बागीचे में बैठती ,कभी सतसंग में कभी डॉग ब्रूनो को ले कर घूमती दिन-दिन भर अकेली बैठी मोनू का इंतजार करतीं।
कुल मिला कर दादी की मस्ती भरी दिनचर्चा जब उबाऊ होने लगी है।
तो वे उदास रहने लगीं यह उदासी उनकी सेहत पर असर दिखाने लगी है।
अब उनके पोते मोनू को महसूस हुआ,
‘ मेरी दादी कितनी कमजोर हो गई हैं और उदास भी रहने लगी हैं ‘
उसने बाजार से एक बढ़ियां हैंडसेट खरीद कर दादी के हाथ में सौंप दिया है।
यह संयोग ही था कि उनके मोबाईल की बैटरी रविवार को खत्म हो गई।
घर के हर सदस्य अपने काम में दिन भर व्यस्त रहते हैं किसी के पास उनके लिए समय कहाँ है?
यह तो भला हो पोतेराम मोनू का जिसने उन्हें वीडियो गेम में माहिर कर दिया है।
वह शान से सबों से कहता फिरता है ,
‘ मेरी दादी तो २१ वीं सदी की है भाया ‘
दादी भी खुश पोते राम भी खुश।
‘ मोनू अरे ओ मोनू कहाँ गया बेटा ? ‘ जरा मेरे फोन में नयी बैट्री तो लगवा दे मैं बैठी-बैठी बोर हो रही हूँ ”
‘ नहीं तो फिर मुझे मन्दिर के ही दर्शन करवा दे’
इस समय टीवी पर मोनू “टाईम- मशीन” मूवी देख रहा है,उसका उठने का मन नहीं किया।
‘ ओ दादी इधर तो आओ आज तुम्हें मैं गेम से भी बढ़िया मूवी दिखलाता हूँ फिर मन्दिर ले चलूंगा ‘
‘ अच्छा क्या नाम है बताओ तो ? ‘
वे मूवी का नाम सुन खुशी से आ कर सोफे पर बैठ गई।
कितने अनोखे और अचंभित करने वाले दृश्य झनझनाती आवाज के साथ सामने आने लगे।
लेकिन मूवी की तीव्र आवाज से जल्द ही वे बोर हो गयी हैं।
अप्रिल का महीना है जब कि हवा में अभी भी हल्की खुनखुनाहट है।
सोफे पर सिर टिका कर अधलेटी दादी मन्दिर दर्शन की कल्पना कर रही थी।
ठंडी हवा के झोके से उन्हें झपकी आ गई।
फिर वे कब मीठी नींद लेने लगीं पताही नहीं चला।
— कान में अभी भी घंटी की मधुर आवाज गूंज रही है ,
” वाह कितनी मीठी ”
वे उस ओर बढ़ चलीं। देखा सामने खूब बड़ा सा और सुन्दर मन्दिर है।
जिसके मेनगेट पर दो नन्हें-नन्हें रोबोट खड़े हैं। उनके हाथ में बायोमेट्रिक सिस्टम लगा हुआ है।
जिस पर हाथ रखते ही मन्दिर के द्वार खुल गए।
हैरान हो कर दादीमाँ देख रही हैं।
‘ यह क्या पूरे मन्दिर प्रागंण का ही डिजिटलाइजेशन हो गया है… हाए क्या यह संभव है
ओहृ … आज के युग में जो ना हो वह कम है ‘
चारो तरफ शांती फैली है।
कंही से भजन-कीर्तन की सिर्फ़ धुन बज रही है।
तभी बायीं ओर करीने से रखे कंप्यूटरों में से एक से सूचना देती हुयी फ्लैश लाईट चमकी और घरघराती सी आवाज आई ,
‘ आपका वेटिंग नम्बर है १०९ और पासवर्ड है ” दर्शन ” ।
यह सुन उन्होंने उस रोबोट जिसकी शक्ल मोनू से मिलती -जुलती लग रही है।
की ओर देखा तो वह भावना शून्य सा एक ओर खड़ा दिखाई दिया।
चारो तरफ नजर दौड़ाई ,
उनके जैसे ही अन्य परदेशी वहाँ बेफिक्र हो कर घूम रहे हैं।
कोई किसी से बात करना तो दूर एक दूसरे को देख भी नहीं रहा है।
कंप्यूटर से घरघराती हुयी आवाज आई ,
‘ अपना नम्बर कन्फर्म करने के लिए दाईं ओर जो रैंडम नम्बर है उस पर अपने पासवर्ड क्लिक करें ‘
वह रैडंम नम्बर भी अनोखी शैली में और बेहद फास्ट लग रहा है ।
दादी बिचारी ‘ द ‘टाइप कर रही हैं तो ‘ क ‘ टाइप हो गया।
मुसीबत ही मुसीबत समझ में नहीं आ रहा है अब क्या करे बहुत कोशिश करने पर नम्बर डाली कि कंप्यूटर क्रैश कर गया।
उसमें से एक रोष भरी घरघराहट निकली ,
‘ आपने गलत पासवर्ड डाला है आप एक ओर हो जाएं आपका समय खत्म हो गया ‘
‘ फिर बाद में कोशिश करें ‘
दादी मायूस हो कर एक ओर सीढियों पर बैठ गई हैं ,
‘ या भगवान् घोर कलियुग यही है क्या ?
अब तेरे दर्शन भी दुर्लभ हो गये मैं क्या करूँ ‘
आक्रोश में भर उठी दादी रोष भरी आवाज में बोलीं ,
‘ या मेरे भगवान् . ..
अगर तेरा मालिक भी अब यह मुआ टेक्नोलॉजी ही है तो बुरा हो इसका ‘
कहती हुई नींद में ही अपने पाँव खींच कर चला दिए जो पास बैठे मोनू को जा लगी है ,
” आ…ह, आउच… दादी आप भी ना कह कर ” वह कराह उठा है।
और दादीमाँ जग कर इधर-उधर भौंचक्की सी हो कर देख रही हैं
सीमा वर्मा / नोएडा
स्वरचित