बड़ी बहन भी माँ समान होती हैं यह पंक्ति सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं, पर हमारे सामाजिक परिवेश में वो स्त्री जिसका स्वयं कोई परिवार नहीं होता हैं वो मन से कितनी अकेली होती हैं यह मैंने अपनी कथा में दर्शाया हैं।
“आज तो मैं दादी-बुआ के पिटारे का राज जानकर रहूँगी ” कमला बाईजी बड़ी रहस्यमयी आवाज में बोली और दादी-बुआ का बक्सा बाहर लेकर आयी ।
तब मैं एक नन्ही बच्ची थी पर मुझे भी पिटारे का राज जानने की बड़ी उत्सुकता थी।
दादी-बुआ मेरे दादाजी की बाल-विधवा बहन थी जो हमारे संयुक्त परिवार का अटूट हिस्सा थी और कमला बाईजी हमारे मोहल्ले की बुजुर्ग महिला थी ऐसा प्रचलित था की कमला बाईजी को उनके पति बहुत पहले छोड़ कर चले गये थे और बहुत संघर्ष के साथ उन्होंने अपने तीन बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया था।
दादी-बुआ की कुल संपत्ति में चार जोड़ी सफेद साड़ियां,रूद्राक्ष की माला,ठाकुर जी की मूर्ति व एक रहस्यमयी पिटारा था जिसका राज जानने की सबको उत्सुकता रहती थी।
दादी-बुआ यूँ तो बड़े कठोर स्वभाव व दबंग थी घर की सारी औरतें उनसे डरती थी,वह काफी अनुशासन प्रिय और रीति-रिवाज मानने की पक्की औरत थी।
पर उनका दिल बड़ा कोमल और सरल था रिश्तेदारी व मोहल्ले में किसी की भी शारीरिक या मानसिक व्यथा में वह सबसे पहले सहायता करती थी, उनके अनुभव के चलते लोग उन्हें दूर-दूर से अपनी समस्या सुलझाने के लिए बुलाते थे।
कमला बाईजी वैसे बड़ी स्वाभिमानी थी पर समय के थपेडों ने उनको रूखा बना दिया था, उनकी और दादी-बुआ की अच्छी दोस्ती थी पर एक दिन कुछ यूँ हुआ किसी छोटी बात पर दोनों सहेलियों की कहासुनी हो गयी।
” अरे!! कमला दूसरे पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक कर देख तब तेरी गलती तुझे समझ आ जाएगी,गलती तेरे पोते की हैं ” दादी-बुआ क्रोध में आकर बोली।
” दादी-बुआ !!आप तो रहने ही दो अपने बच्चों की गलती छुपाने में आप बड़ी माहिर हो, सारा मोहल्ला गवाह हैं की आपके भतीजे ने मेरे पोते को मारा था” कमला बाईजी भी आवेश में आ गयी।
” तेरे पोते ने मेरे बारे मैं उल्टा-सीधा बोला था कमला मेरा भतीजा कैसे सहन करता,जरूर इतना विष मेरे विरुद्ध तूने ही भरा होगा।”
” मैंने कोई विष नहीं भरा बच्चे मन के सच्चे होते हैं जो महसूस करते हैं वो बोल देते हैं, और आप तो इसी लायक हो जब देखो क्रोध सवार रहता हैं ये आपके घरवाले आपकी इज्जत नहीं करते आपसे डरते हैं।”
” हाँ तो तेरी कौनसी इज्जत हैं कमला?” तेरी बहुँए पीठ पीछे तेरी बुराई मुझसे करती हैं।”
और कमला बाईजी की बहुओं का चेहरा सफेद पड़ गया था।
किसी को बच्चों के झगड़े का विकराल रूप अच्छा नहीं लग रहा था लोगों ने बीच-बचाव करवाया पर दोनों औरतें शान्त होने को तैयार नहीं थी।
” इतनी सती-सावित्री मत बनो दादी-बुआ तुम्हारे उस पिटारे में कौनसी संपत्ति हैं जो सबसे छुपाती फिरती हो?”
और कमला बाईजी ने सच में नागिन के फन पर पाँव रख दिया।
” मुझपर शक करती हैं चल आज दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा ” दादी-बुआ अपना पिटारा सबके सामने खोलने को तैयार थी।
पिटारा खोला गया और उसमें से धुंधली पुरानी तस्वीरें जो शायद दादी-बुआ व उनके पति की थी एक सोने का मंगलसूत्र व कुछ किताबें थी।
” आ जाओ तुम सब लोग एक बाल-विधवा पर लांछन लगाते हो इस पिटारे में मेरे जीवन की सुनहरी यादें हैं, बहुत कम समय जो उनके साथ बीता उसकी निशानी इन तस्वीरों में हैं, उनकी कुछ किताबें जो मेरी अनमोल सम्पत्ति हैं, और ये मंगलसूत्र जो मेरे किसी काम का नहीं हैं।”
” मेरे भाई-भाभी ,भतीजे-बहुँए और बच्चे मुझसे बहुत प्यार करते हैं, मेरा मान-सम्मान करते हैं इसलिए अपना दर्द इनसे छुपाती थी ताकि इनको मेरे एकाकी जीवन की भनक नहीं लग जाए पर आज तुम्हारी वजह से कमला!! यह यादें सार्वजनिक हो गयी हैं ” दादी-बुआ रोने लगी थी।
तभी कमला बाईजी अपने घर से यादों का वैसा ही पिटारा लेकर आयी जिसमें उनके पति के साथ उनकी पुरानी तस्वीरें व उनके पति की कुछ चीजें जैसे घड़ी, ऐनक, रूमाल इत्यादि थी।
” मेरी और आपकी कहानी एक जैसी हैं दादी-बुआ, ये वो यादें हैं जो नफरत या क्रोध से भी खत्म नहीं होती हैं पति आखिर सबसे अलग स्थान रखता हैं,मैं तो सुहागन के भेष में विधवा हूँ पर संसार हमारी कमजोरी का अक्सर फायदा उठाता हैं इसलिए मन को कठोर बना लिया था जाने-अनजाने में जो भूल आपके प्रति कर बैठी उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
अब दोनों औरते एक ही स्थान पर खड़ी नजर आ रही थी,रोते हुए एक-दूजे को सांत्वना देती जा रही थी।
एक बाल-विधवा दादी-बुआ जो रूढ़िवादी सोच व रीति-रिवाज के नाम अपना जीवन भेंट कर चुकी थी, और दूसरी पति द्वारा मझधार में छोड़ी गयी कमला बाईजी जिन्होंने हिम्मत व हौंसले की नयी परिभाषा लिखी थी।
पर न जाने क्यों आज दोनों औरतों के चेहरे एकाकार नजर आ रहें थे क्या औरत हमेशा किसी ना किसी रूप में कुर्बानी देती रहेगी यह प्रश्न सामने आया?
एक औरत के लिए घर-परिवार व पति की क्या अहमियत हैं यह भी समझ में आया ।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में
पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं
धन्यवाद।