दान धर्म – हेमलता  : Moral Stories in Hindi

मां ..यह सब क्या नाटक है हर शनिवार को आप मंदिर आती हो और बस बाहर बैठे इन भूखे नंगो के लिए आपका दान धर्म शुरू हो जाता है, ऐसे करके तो आप एक दिन हमको कंगाल कर दोगी, हर चीज एक निश्चित सीमा में हो तो ठीक रहता है आपको तो लाना ही बेकार है! मनीष की बात सुनकर मां उमा देवी का दिल टूट गया,

जब मनीष के पिताजी जिंदा थे और उनकी एक छोटी सी कपड़ों की दुकान हुआ करती थी तब से ही वह हर शनिवार को यहां शनिदेव के मंदिर में आती रही है और यहां आस-पास के झुग्गी झोपड़ी वाले या कोई गरीब भूखा या जरूरतमंद होता उनसे देखा नहीं जाता और वह उसकी यथा संभव मदद करने की कोशिश करते,

वहां के आसपास के सभी लोग उन्हें पहचानने लगे थे और हर शनिवार को उन दोनों का इंतजार करते, उमा देवी भी हर शनिवार को वहां जाने को उत्सुक रहती! भगवान की दया से आज तक उनके इतने दान धर्म के करने के बावजूद घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई बल्कि उनको तो ऐसा लगता था कि इन गरीबों की दुआओं से ही उनके घर में इतनी तरक्की होती है,

उनका बड़ा बेटा सुधीर ऊंचे पद पर हैं और बाहर बेंगलुरु में रहता है और मनीष यही रहता है अपने पिता के कारोबार  को संभालता है, खूब बड़ी हवेली है उनकी किसी तरह की कोई कमी नहीं है उसकी पत्नी नमिता और दो बच्चे इशांत और ईशा है, अब तक तो मनीष के पिताजी हमेशा उसकी मां के साथ आया करते किंतु 6 महीने पहले जब से उसके पिताजी का स्वर्गवास हुआ है

यह जिम्मेदारी लगभग मनीष के ऊपर ही आ गई है, मनीष को मां को मना करना अच्छा नहीं लगता पर कई बार वह चिढ़ जाता है किंतु आज कुछ ऐसा हुआ जिससे मनीष अपने आप पर बहुत शर्मिंदा हो रहा था, दरअसल आज जब मां मंदिर में गरीबों को भोजन करा रही थी तभी मां ने देखा एक औरत बिल्कुल चुपचाप बैठी हुई थी

वह और लोगों की तरह खाने की या अत्यधिक पाने की होड़ नहीं कर रही थी, जब मां ने पूछा की आपको तो आज यहां पहली बार देखा है आप  यहां नई आई हो क्या..? तब वह बोली… नहीं दीदी जी.. मैं इस शहर में 6 महीना से हूं मेरे बेटे ने मुझे एक दिन इस शहर में मंदिर में दर्शन करने के नाम पर स्टेशन के बाहर छोड़ दिया और मै तभी से ऐसी हालत में हूं,

वह मुझे दोबारा लेने नहीं आया और मैं इतनी लाचार कि मैं अपने घर भी नहीं जा पाई, तब से मैं यही किसी रेन बसेरे में रुक जाती हूं और आप जैसे बड़े लोग जब हमारे लिए कुछ करते हैं तो बस इसी प्रकार अपने आप को खुशनसीब मान लेती हूं, मेरे बेटे ने मुझे पाई पाई का मोहताज बना रखा था

मैं समझ गई थी मेरा बेटा मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया है अतः मैंने भी दोबारा वहां जाना उचित नहीं समझा, जिस बेटे ने मुझे दर्द की ठोकरे खाने को मजबूर कर दिया वह कैसे मेरा बेटा बहन जी..? आप तो बहुत किस्मत वाली हैं जो आपके बेटे  आपके लिए इतना सब करते हैं,

बहन जी भगवान किसी का मोहताज न बनाएं और ऐसा कहकर वह  रोने लगी! यह सब बातें मनीष भी सुन रहा था मनीष दिल का बुरा नहीं है किंतु आज मनीष के व्यवहार से मां को बहुत दुख हुआ, वह घर तो आ गई पर उनका मन किसी भी कार्य में नहीं लग रहा था, अगले शनिवार को मनीष ने पूछा….

मां आज मंदिर नहीं चलना क्या, मां ने कहा… बेटा आज तबियत कुछ सही नहीं है और दो-तीन शनिवार को मां ने ऐसा ही बहाना बना दिया, उमा देवी अपने कमरे में पड़ी पड़ी सोच रही थी भगवान तूने मुझे इतना मोहताज क्यों कर दिया जब मेरे पति थे उन्होंने कभी मेरा हाथ नहीं रोका और ना ही ऐसा करने से हमारे घर में किसी चीज की कोई कमी आई,

किंतु आज बेटा मेरे पति की कमाई को खर्च करने से भी मुझे रोक रहा है यह सोच सोच कर उमा देवी का मन बहुत बेचैन हो रहा था, अब तो मां को मंदिर गए लगभग महीना भर हो गया और यह बात मनीष के दिल को कचोट रही थी, एक दिन मनीष अपनी मां के पास गया और बोला…

मां मुझे माफ कर दो मेरा मकसद आपका दिल दुखाना नहीं था यह सब आपके दान पुण्य का ही प्रताप है कि हम सब इतनी उन्नति कर पा रहे हैं, हमारा व्यापार भी दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है बच्चे भी आपको देखकर इतने संस्कारवान बने हैं, मां मुझसे गलती हो गई कि मैंने आपको इन सब को करने से रोका, मां….

आप किसी की मोहताज नहीं है आप अपने फैसले स्वयं ले सकती हैं यह सारी संपत्ति, हम सब आपके ही तो हैं, मां…आज से आप जब जहां जैसे इच्छा हो वैसे खर्च कीजिए और हमें  आप आदेश दीजिए कि हमें भी क्या-क्या करना है ताकि हम भी आपके जैसे ही बने!

बेटे की बात सुनकर आज मां का दिल बहुत खुश हो गया, सर्दी भी शुरू हो गई थी, इस  शनिवार को मां ने मंदिर के आसपास रहने वाले सभी गरीबों के लिए मोटे-मोटे कंबलों की व्यवस्था की! और उन लोगों के दिलों से निकली दुआ उनके लिए दवाई का काम कर रही थी,

उमा देवी मन ही मन में कह रही थी… भगवान मैं तो इस लायक हूं कि मैं अपनी मर्जी का कर सकती हूं किंतु कभी भी किसी व्यक्ति को किसी का मोहताज मत बनाना चाहे स्थिति शारीरिक मानसिक या आर्थिक ही क्यों ना हो! 

      हेमलता गुप्ता स्वरचित 

     कहानी प्रतियोगिता   (मोहताज )

      “ मोहताज”
VM

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