चुप एकदम चुप…..! एक शब्द भी नहीं बोलोगी तुम किसी से इस विषय पर समझी……। अब जो करना है मैं करुँगी श्वेता ने कड़े शब्दों मे डांटने के लहजे में समझाते हुए नौ वर्षीय बेटी महक से कहा……! पर क्यों माँ क्यों….? मैं चुप क्यों रहूँ , मेरी गलती क्या है…..मैंने क्या किया है महक ने डरते हुए श्वेता से पूछा….।
श्वेता की आँखों में अनायास ही पछतावे के आंसू निकल पड़े… ओह ! मैंने बच्चों को वहां भेजा ही क्यों…?
उसने रोते हुए महक को बाहों में भरकर दुलारते हुये कहा….नहीं मेरी रानी बिटिया तेरी कोई गलती नहीं…गलती तो मेरी है जो मैंने तुझे वहाँ भेजा…..।
दरअसल… श्वेता के पति फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में कार्यरत थे ..?जिनकी पोस्टिंग सुदूर ग्रामीण अंचल में थी.. चूंकि कोरोना के कारण स्कुल बंद थे… ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी तो श्वेता अपने बच्चों को लेकर पति के साथ एकदम ग्रामीण क्षेत्र चंद्रपुर में रहने लगी…। बच्चे वहीं से अपनी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे , पर ग्रामीण क्षेत्र में नेटवर्क का बड़ा समस्या रहता था
जिस वजह से बच्चों को पढ़ाई में परेशानी होने लगी फिर एक दिन श्वेता ने सोचा क्यों ना बच्चों को कुछ दिन के लिए अपनी मौसेरी बहन आभा के घर छोड़ दिया जाए….जो चंद्रपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित शहर मे रहती थी….. वहां पर नेटवर्क की समस्या भी नहीं होती…..और आभा के बच्चे भी है जो श्वेता के बच्चों से बड़े है तो उन्हें और भी सहायता हो जाएगी पढ़ाई में…..। ऐसा सोचकर श्वेता ने अपने बच्चों को आभा के घर हफ्ते भर के लिए भेजने का फैसला लिया…I इस फैसले का स्वागत आभा ने भी प्रसन्न्ता पूर्वक किया…..।
आभा और श्वेता की आपस में फोन पर बाते भी हुई कि कोरोना काल में बच्चे बहुत बोर हो गए हैं ….इसी बहाने खेलने के साथ साथ पढ़ाई भी हो जाएगी और बच्चों का मन भी बदल जाएगा I
ऐसा सोच कर श्वेता दोनों बच्चों को आभा के घर छोड़ आई…बच्चे आपस में खेलते , लड़ते और पढ़ाई भी करते…। एक ही कमरे में बड़े से पलंग पर सब सो जाते थे….I
एक दिन आभा का चौदह वर्षीय बालक निलय ने लेटे लेटे महक को मोबाइल में कुछ दिखाना चाहा…..महक उत्सुकता पूर्वक निलय के बगल में लेट कर देखने लगी….इसी दौरान निलय ने अपना हाथ महक के गाल में फेरते हुए मोबाइल में आ रहे फिल्म देखने का इशारा किया……महक को निलय की गतिविधियाँ अजीब सी लगी , जैसे ही मोबाइल के स्क्रीन पर उसका ध्यान गया वो…..छी….छी…भईया ये सब क्या है …वो इतना ही बोल पाई उसे ये सब बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था I इस ओर बगल में उसका सगा भाई गहरी नींद में सो रहा था…महक उससे लिपट कर रोने लगी…..।
निलय डर गया और उसने हाथ जोड़ इशारे से सॉरी बोला और किसी से ना बताने की गुजारिश की…. जैसे तैसे रात बीती…..।
सुबह एक बार रोज श्वेता फोन कर के बच्चों से हालचाल पूछती….उस दिन जैसे ही श्वेता ने फोन किया…..मम्मी की आवाज सुनते ही महक रोने लगी….। श्वेता को समझते देर ना लगी कि कुछ तो गडबड है….। उसने महक को प्यार से चुप कराते हुए पूरी बात जानने की कोशिश की….। महक द्वारा इस वाक्या को सुन श्वेता स्तब्ध रह गई….बैचेनी से श्वेता ने तुरंत आने का आश्वासन दे महक को शांत कराया । इस वाक्या ने श्वेता को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था…..I भगवान का लाख लाख शुक्र है कुछ अनहोनी घटना होने से बच गई महक…..!
अपनी कार से आभा के घर के लिए निकल चुकी श्वेता के मन में रास्ते भर अनेक विचार आते रहे I अति संवेदनशील मामला है ….यदि सही तरीके से परिस्थितियों पर काबु नहीं पाया गया तो बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और निलय को इस चक्र से बाहर निकालने के लिए कौन सा कदम उचित रहेगा……..? क्या आभा अपने बच्चे की गलती मानेगी…..? ना जाने कितने प्रश्नों में उलझी श्वेता कब आभा के घर पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला I
अचानक श्वेता को देखकर आभा ने आश्चर्य से पूछा…अरे इतनी जल्दी लेने आ गई बच्चों को….. श्वेता ने हल्की मुस्कराहट के साथ उसे दूसरे कमरे में आने का संकेत दिया…I
धीरे-धीरे बातों का सिलसिला बढ़ाते हुए श्वेता ने आभा से बड़ी सावधानी पूर्वक घटनाक्रम को सामने रखा….। पहले तो आभा को यकीन ही नहीं हुआ पर धीरे-धीरे पिछली बातेँ याद कर उसे लगने लगा कि कहीं ना कहीं कुछ तो गडबड है….!
हाँ दीदी , शायद आप ठीक कह रहीं हैं……देर रात तक मोबाइल में लगा रहता है….मैंने कई बार पूछा भी है कि इतनी रात तक मोबाइल में क्या कर रहा है …तो हमेशा उसका जवाब होता है… अरे मम्मी आजकल गूगल में सर्च कर के समझना पड़ता है….आप नहीं समझोगी…जाओ सो जाओ…I एकदम से आभा का चेहरा फीका पड़ गया रुआँसी होती हुई बोली….दीदी अब क्या होगा…..?
अरे कुछ नहीं आभा , तुम चिंता मत करो अभी स्थिति उतनी नहीं बिगड़ी है…। हमें निलय से प्यार से बात कर किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सलाह लेनी पड़ेगी…..। और हाँ तुम्हें भी आंख बंद कर के बच्चों की हर बात पर विश्वास करना जरूरी नहीं है…. अभी निलय पर एकदम से सख्ती कर के उसे डांटना उचित नहीं है…..ये बच्चों का नाजुक समय होता है..उचित मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक है…. !
श्वेता और उसके बच्चों के जाने के बाद आभा और उसके पति ने घंटों निलय से इस बारे में बात की……क्या सही है , क्या गलत …समझाया….I और निलय की काउंसलिंग भी कराई I
दोस्तों , निलय की आदतों के बारे में जल्दी पता चल गया….इसलिए सुधार सम्भव हो सका….वरना स्थिति कितनी भयानक हो सकती थी….। आज के परिवेश में बहुत हद तक ऐसी परिस्थितिया आ सकती है… उसके लिए अभिभावक को थोड़ा सतर्क रहने की आवश्यकता है….. ये उम्र का ऐसा नाजुक पड़ाव होता है , जहां बच्चों के भटकने की संभावना ज्यादा रहती है……।
ऐसे में अभिभावकों को दोस्त बनकर उनके निकट रहने की , उनसे खुलकर बातचीत करने की…हर संभव कोशिश करनी चाहिए…!
हालांकि , डरने ,घबराने जैसी कोई बात नहीं है…इसी मोबाइल से बच्चे बहुत सारे अच्छे हुनर सीख भी रहे हैं… सही तरीके से उपयोग कर बच्चे बहुत आगे बढ़ रहे हैं….!
बस जरूरत है तो थोड़ी सी सतर्कता के साथ सावधानी की……. जो हमेशा जिंदगी का हिस्सा होना चाहिये….।
ताकि जिंदगी में कभी “,पछतावे के आंसू ” ना निकल सके..!
(स्वरचित सर्वाधिकार और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय # पछतावे के आंसू
संध्या त्रिपाठी