छोटी माँ – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi

राजीव जी राजकीय कॉलेज में प्रिंसिपल थे उनकी फिटनेस, हंसमुख स्वभाव एवं बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व था। उनकी प्रतिभा चारों ओर फैली हुई थी। वह अपने कार्य क्षेत्र में सख्त और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे।  उनकी पत्नी सुवर्णा कदम- कदम पर उनका साथ देती, जिस कारण राजीव जी अपने काम को बेहतर अंजाम देते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए। उनके अधीनस्थ सभी अध्यापक संतुष्ट थे। बेहतर कार्य शैली ने उनकी अलग पहचान बनाई।

उनके एक बेटा अभिषेक और एक बेटी आयुषी थी। मांँ का प्रभाव एवं पिता के अनुशासन में दोनों बच्चे बहुत ही योग्य एवं होनहार हुए। अभिषेक एमबीए करने के लिए लंदन चला गया। आयुषी ने मनोविज्ञान से मास्टर डिग्री के पश्चात पीएचडी की। वह भी एक कॉलेज में मनोविज्ञान की व्याख्याता हो गई। माता-पिता ने सुयोग्य तलाश कर विवाह कर दिया। आयुषी खुशी-खुशी अपना जीवन यापन करने लगी।

सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन राजीव जी की पत्नी सुवर्णा का स्वर्गवास हो गया। राजीव जी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें?  सभी रिश्तेदार चले गए, बेटी भी कुछ दिन रहने के पश्चात अपने ससुराल चली गई। अभिषेक कुछ दिन की छुट्टी लेकर आया था वह भी वापस चला गया। अब राजीव जी घर में अकेले रह रहे थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि दिन की शुरुआत कहांँ से करें और खत्म कहांँ करें। किसी तरह से यंत्रवत जीवन चल रहा था। 

छ:ह महीने बाद राजीव जी का रिटायरमेंट हो गया। अनाप-शनाप धन और हवेली नुमा घर था, लेकिन… राजीव जी को कोई सुकून नहीं था। आयुषी बीच-बीच में दो-चार दिन के लिए आती, तब राजीव जी कुछ खुश होते। उसके जाने के बाद फिर वही सूनापन और एकांकी जीवन उनका नसीब बन जाता।

राजीव जी के स्टाफ के लोग अक्सर उनसे मिलने आते, बातचीत करते और चले जाते। एक बार उनके एक मित्र ने उन्हें सुझाव दिया- 

“कि आप दूसरा विवाह कर लें” राजीव जी ने कहा कैसी बातें कर रहे हैं आप!!

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“अब मेरी कोई उम्र है… ?? सुवर्णा की आत्मा क्या सोचेगी?” बेटी, दामाद, बेटा सबसे मैं कैसे नजरे मिलाऊंगा यह नहीं हो सकता है…!! और यह कहकर उन्होंने बात आई गई कर दी।

लगभग बीस साल पहले राजीव जी के कार्यकाल में देविना ने अपने पति की जगह कंपनसेशन ग्राउंड में  अध्यापिका के रूप में ज्वाइन किया था। राजीव जी ने देविना की हर संभव मदद की थी। वह राजीव जी का बहुत सम्मान करती थी। 

विवाह के कुछ समय पश्चात ही देविना के पति की मृत्यु हो गई थी। वह मां-बाप का इकलौता बेटा था। देविना ने  दोबारा पूरी पढ़ाई की। बहुत संघर्षों का सामना करते हुए पति की जगह नौकरी मिल गई। वह अपने सास ससुर का एक बेटी की तरह बहुत ध्यान रखती थी। अपने पति की समस्त जिम्मेदारी उसने अपने कंधों पर ले ली। सास- ससुर ने उसे दूसरा विवाह करने के लिए बहुत बार समझाया… “तुम्हारी कोई संतान भी नहीं है हम लोगों के जाने के बाद तुम किसके सहारे रहोगी??” लेकिन देविना अपने बृद्ध सास- ससुर को छोड़कर कहीं भी विवाह करने के लिए राजी नहीं हुई।

वह बोली- चलो!! विवाह की बात मान भी ली जाए… यदि मेरे विवाह के पश्चात परिस्थिति वश मैं आप लोगों की  देखभाल नहीं कर पाई तब आप लोगों के बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा..??  सास-ससुर उसकी तर्कसंगत बातों का क्या जवाब देते?? और अब उन्होंने समझाना भी बन्द कर दिया था।

देविना की अच्छी सोच और मृदु व्यवहार के कारण पूरा स्टाफ एवं विद्यार्थी सभी बहुत सम्मान करते थे।

समय के साथ-साथ देविना के सास-ससुर भी इस  दुनिया से चले गए। देविना निहायत अकेली हो गई।

रिटायरमेंट में अभी देरी थी। देविना घर, विद्यालय में व्यस्त रहती फिर भी हमेशा अकेलापन महसूस करती थी।

एक दिन देविना की सहेली मंजुला बोली यार!! अब तो तू अपने जीवन के बारे में कुछ तो सोच ?? माना कि देर हुई है लेकिन बहुत देर नहीं हुई है। अब भी तुम्हारे जैसा कोई मिल ही जाएगा।

मंजुला को राजीव जी और देविना के जीवन का सूनापन एक जैसा लगा। उसके मन में एक विचार आया कि क्यों न इन दोनों से बात की जाए जिससे दोनों का अधूरापन पूर्णतः में परिवर्तित हो जायें। कभी-कभी इंसान की पहल करने वाला कोई नहीं होता है जिस कारण जीवन में अधूरापन ही रह जाता है।

राजीव जी एकांकीपन से ऊब गये थे। मंजुला ने राजीव जी से देविना के रिश्ते की बात की। राजीव जी ने थोड़ा सोच विचार कर रिश्ते के लिए हांँ कर दी। बोले….! अगर कुदरत को यही मंजूर है तो यही सही। 

मंजुला ने देविना से भी रिश्ते की बात की। देविना उम्र के इस पड़ाव में होने के कारण कभी हां और कभी न के असमंजस में झूल रही थी। मंजुला ने समझाया तुम्हें और राजीव जी को एक सहारे की जरुरत है और तुम दोनों एक दूसरे का सहारा बन सकते हो?? इस संबंध में देविना ने अपने सगे-संबंधियों से बातचीत की, उन लोगों को भी इस रिश्ते में कोई खामियां नजर नहीं आई। लगभग सभी ने इस रिश्ते की मंजूरी दे दी।

राजीव जी ने अभिषेक और आयुषी से इस संबंध में बात की तो दोनों बच्चे भड़क गए। आयुषी बोली मैं अपने ससुराल में क्या मुंँह दिखाऊंगी। लोग हमारी कितनी हंसी उड़ाएंगे कभी सोचा है पापा…!! पापा आप भी न…!!. कुछ तो सोच समझ कर बोला करिए। सड़सठ साल के हो गए हैं यह कोई आपकी उम्र है विवाह करने की..??  

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दोनों बच्चों की राय के बाद राजीव जी ने चुप्पी साध ली। लेकिन दोनों की बात विवाह तक पहुंच गई थी तो दोनों के मन में एक दूसरे के सम्मान की जगह प्रेमांकुर ने जन्म ले लिया। अब वह दोनों अक्सर मिलने लगे और घंटों बातें करते रहते।

आलम यह था कि अब दोनों ज्यादा से ज्यादा अपने आप पर ध्यान देने लगे। प्रतिदिन योगा, जॉगिंग, वॉकिंग करते और स्वस्थ रहने के नए-नए तरीके ढूंँढते…., क्योंकि अब उनके अंदर जीवन जीने की लालसा ने दोबारा जन्म ले लिया था। दोनों जब भी मिलते तो खुलकर ठहाका मारते। देविना अपनी उम्र से दस साल छोटी लगने लगी। पहले से ज्यादा खूबसूरत, जवान नजर आने लगी। 

एक दिन दोनों मूवी देखने गए वहां उनके दामाद ने उन्हें देख लिया। दामाद ने आयुषी को बताया, आयुषी ने देविना और अपने पापा को बहुत फटकार लगाई। देविना ने राजीव जी की जिंदगी से दूर जाने का फैसला कर लिया। उन्होंने विद्यालय से त्यागपत्र देकर थकी हुई अपने घर की ओर चल दी। रास्ते में राजीव जी मिले उन्होंने त्यागपत्र देने के लिए मना किया, और आश्वासन दिया कि तुम्हारा अब मेरे कारण कभी कोई अपमान नहीं होगा।

दूसरे दिन उन्होंने अपने कुछ मित्रों की उपस्थिति में देविना के साथ मंदिर में विवाह कर लिया। आयुषी ने जब सुना तो पापा से अपना रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दिया।

देवीना के मन में यह मलाल था कि उसके कारण उनके घर में दरार आ गई। 

अभिषेक एम बी ए करने के पश्चात वापस आ गया। अपने देश में आकर उसे अच्छी जॉब मिल गई। वह एक ही घर में रहते  हुए पापा से बात नहीं करता था। थोड़ा बहुत कभी कभार वह देविना से बात कर लेता था। देविना ने अपना त्यागपत्र वापिस लेकर दुबारा विद्यालय जाना शुरु कर दिया। जाने से पहले नाश्ता, खाना सब बनाकर जाती और अभिषेक के लिए दोपहर का खाना पैक करके देती थी। देविना ने अभिषेक से कहा आप मुझे एक मौका तो दीजिए मैं तुम्हारी मांँ तो नहीं बन सकती लेकिन तुम्हें कभी कोई शिकायत का मौका भी नहीं मिलेगा। अभिषेक ने कुछ जबाब नहीं दिया। 

सुवर्णा के दुनिया से जाने के बाद आयुषी के ससुराल में तीज- त्यौहार नेंग, उपहार सब जाने बन्द हो गये थे, राजीव जी को लेन देन की जानकारी नहीं थी। वह सब कुछ तो सुवर्णा किया करती थी। देविना ने दुबारा सावन की श्रावणी से लेकर दिवाली में ससुराल वालों के कपड़े, मिठाई एवं हर त्यौहार में बेटी के घर को गुलजार कर दिया। आयुषी के ससुराल वाले देविना के व्यवहार से  बहुत खुश थे। आयुषी के ससुराल से कोई भी आता तो देविना वैसे ही व्यवहार करती है जैसे एक सगी बेटी के ससुराल वालों के साथ किया जाता।

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कुछ दिनों के बाद अभिषेक का रिश्ता आया सब कुछ ठीक-ठाक होने के बाद विवाह की तिथि तय हो गई। देविना अपने विद्यालय से एक माह की छुट्टी लेकर खुशी-खुशी सभी कामकाज कर रही थी। अभिषेक की होने वाली पत्नी को साथ लेकर उसकी पसंद का सब शॉपिंग की। बेटी आयुषी के लिए गले का हार का सेट खरीदा,आयुषी के ससुराल वालों के लिए सुंदर-सुंदर कपड़े और आयुषी की सास के लिए गले  की चेन और बनारसी साड़ी खरीदी। 

शाम को अभिषेक जब ऑफिस से आया तो उसने अभिषेक और राजीव जी को सब उपहार स्वरूप सामान दिखाएं। अभिषेक ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी बस हल्के से मुस्कुरा दिया। राजीव ने कहा होने वाली बहू के लिए आभूषण तो तुमने खरीदे नहीं??  देविना मुस्कुराते हुए बोली आपने सुवर्णा दीदी के आभूषण मुझे  दिये थे वहीं सब आभूषण मैं अभिषेक की बहू को चढ़ावे में चढ़ाऊंगी। 

देविना!! वह तो मैंने तुम्हें दिए थे?

मैं जितना पहनी हूंँ उतना ही पर्याप्त है मेरे लिए, देविना बोली।

वह समय भी आ गया जब राजीव जी की हवेली दुबारा दुल्हन जैसी सजी। सभी रिश्तेदार इकट्ठा थे देवीना खुशी-खुशी सभी का स्वागत कर रही थी। कुछ लोग इस खुशी के माहौल में भी देविना को लेकर कानाफूसी कर रहे थे। देविना सुनकर भी अनजान बनकर अपने काम की तरफ ध्यान दे रही थी। 

आयुषी काम के सिलसिले में देविना से थोड़ा बहुत बातचीत करने लगी। विवाह का कार्यक्रम शुरू हुआ अभिषेक दूल्हा बनकर तैयार था। देविना ने आयुषी से कहा तुम अभिषेक की नून राई लेकर नजर उतारो यह बहन का कर्तव्य होता है। आयुषी ने भाई की नजर उतारी… तुरन्त देविना ने नेग में एक सोने की अंगूठी दी। बारात प्रस्थान करने से पहले कुआं खेत की एक रस्म होती है उसमें मांँ की जगह अभिषेक की मौसी को कुआं में पैर डालकर रस्म करने के लिए आयुषी बोली। सात सुहागन कुआं पूजन के लिए तैयार खड़ी थी। आयुषी के पति, अभिषेक का हाथ पकड़कर कुआं की परिक्रमा के लिए तैयार थे। अभिषेक ने तुरंत देविना का हाथ पकड़ कर कुआं खेत की रस्म के लिए मौसी की जगह देविना को बैठाया।

देविना और राजीव जी को बहुत आश्चर्य हुआ। देविना फूली नहीं समाई आज अभिषेक ने उसे अपनी मांँ की जगह दी, यह उसके लिए सबसे गर्वित पल थे। देविना ने भी अपने कर्तव्य में कहीं कोई त्रुटि नहीं छोड़ी।

आयुषी यह सब देखकर अंदर से जल भुन गई।राजीव बारात लेकर वापस आ गए। देविना ने बेटा,बहू, का स्वागत करते हुए आरती उतारी। बहू को गले लगा कर घर में प्रवेश कराया। अभिषेक के मन में देविना के प्रति बहुत ही श्रद्धा भाव जागा वह तुरंत झुककर देविना के पैर छूकर प्रणाम किया और बहू से बोला तुम भी छोटी मांँ को पैर छूकर प्रणाम करो। देविना की आंखों में खुशी के आंसू लुढ़क गए। आज इस घर के बेटा ने उसे मांँ का दर्जा दिया है यह पल कभी खत्म न हो। उसने हाथ छोड़कर ईश्वर को धन्यवाद दिया हे प्रभु! इस घर से खुशियां कभी न रूठे।

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अभिषेक और नई बहू जैसे ही कमरे में प्रवेश करने लगे आयुषी दरवाजा रोक कर खड़ी हो गई, नहीं भाई!! तुम दोनों को अंदर जाने की इजाजत नहीं है। देविना मुस्कुराते हुए एक सोने की चेन और कुछ नगदी अभिषेक के हाथ में थमाते हुए बोली यह बहन को दे दो!! और अंदर जाने का रास्ता साफ करो। सभी लोग हंसी मजाक करते हुए ठहाके लगाने लगे।

दूसरे दिन आयुषी,अभिषेक से बोली….तुम्हारी शादी में देविना ने दोनों हाथ से बहुत खर्च किया है। इसमें बहुत पैसा खुद भी हजम की होगी? उसको बोलना हिसाब दो। अभिषेक ने आयुषी को बीच में टोकते हुए कहा 

आयुषी!!. छोटी मांँ बोलो!  

छि: छि: तुम कैसी ओछी बात कर रही हो आयुषी?? 

तुम्हें कुछ पता भी है…!! मेरी शादी में एक भी पैसा छोटी मांँ ने पापा से नहीं लिया। उन्होंने सब अपना पैसा लगाया है। बिना सोचे समझे ऐसे मत बोला करो। उन्होंने हमारे परिवार को संभालने में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ी है। सभी रिश्तेदार बहुत खुश होकर गए हैं। इसका पूरा श्रेय छोटी मां को जाता है।

ओहहहह! 

आज पहली बार आयुषी के मन में देविना के प्रति नकारात्मक भाव खत्म हुए। उसने सच्चे मन से देवीना को छोटी मांँ का दर्जा दिया।

कल मैं अपने ससुराल जाऊंगी… छोटी मांँ, आयुषी देविना से बोली। देवीना को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ, वह आयुषी की तरफ देखती रह गई। हां… छोटी मांँ कल जाना है। देविना ने आयुषी को जोर से गले लगा लिया और बोली आज मुझे अपना परिवार मिल गया।

 

– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

         लेखिका 

हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

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