छोटी बहू या ज़िम्मेदारियों की पोटली – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ बेटा तू अब तक तैयार नहीं हुई…लड़की वाले तिलक करने आ गए.. सब तुम्हें खोज रहे हैं…. और तुम यहाँ सामानों के बीच में उलझी पड़ी हो।“ सुमिता जी ने बेटी से कहा जो स्टोर में सासु माँ के कहने पर पूजा के लिए परात और ना जानें क्या क्या सामान खोजने में व्यस्त थी

“ माँ क्या करूँ… तुम्हें भी पता है छोटी हूँ तो ना नहीं कह पाती…और सब काम मुझे देते जाते… फिर तुम्हारी बेटी को काम भी तो सलीके वाला पसंद है तो वो वैसे ही सबको पसंद आता तो बस ये भी …वो भी …सब के लिए ..सबको राशि ही नजर आती।” राशि ने कहा और सामान पास खड़ी एक औरत को देते हुए कहा,“ माँ को दे देना।”

“ चल तू पहले तैयार हो फिर कुछ काम करना…अभी तक कपड़े भी नहीं बदली है …उधर सब लाट साहब बन कर बैठे है और मेरी बेटी की परवाह किसी को भी नहीं ।” सुमिता जी ग़ुस्से में कह रही थी

 “ अरे ग़ुस्सा क्यों हो रही हो… तुम जाओ उधर मैं तैयार होकर आती हूँ।” राशि अपनी माँ से बोली

“ तेरा ससुराल यहाँ ही है तब ही मैं आ भी गई बुलाने पर नहीं तो दूर से कहाँ मैं तिलक में आती… अब तू इधर है तो मैं अब तेरे बिना उधर जाकर क्या करूँगी… तू बस तैयार हो।” सुमिता जी कहते हुए बेटी की साड़ी पहनने में मदद करने लगी और साथ ही हिदायतें दे रही थी थोड़ा मेकअप कर ज्वैलरी पहन.. ऐसे ही मत जाना बाहर… देखा है सबको कितना तैयार हो कर बैठी है और तू लड़के की चाची है और लग रही है काम वाली ।“ सुमिता जी ग़ुस्से में बोली

“ माँ ग़ुस्सा मत करो ना…अब तो आदत हो गई है मुझे…ज़िम्मेदारियाँ उठाने की।“ चेहरे को थोड़ा ठीक कर जल्दी से माँ का हाथ पकड़कर बाहर निकलते राशि ने कहा

जहाँ पर तिलक हो रहा था उधर कार्यक्रम तो शुरू हो चुका था पर राशि का इंतज़ार हो रहा था…वो आए तो यहाँ बैठे मेहमानों के स्वागत सत्कार की ज़िम्मेदारी उठा सकेंउसे देखते ही जेठानी ने उससे कहा,“ कहाँ रह गई थी…मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा इन्हें क्या दिलवाना है निकुंज जी से कह दिया है वो भिजवा रहे होंगे तुम बस देख लेना सबको बराबर से सब मिलता रहे।” कहते हुए वो अपने बेटे के पास जाकर बैठ गई

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राशि सभी मेहमानों को जलपान मुहैया करवा रही थी… उधर उसकी सास अपने ग्रुप में बैठ गीतों की झड़ी लगा रखी थी… जेठानी तो लड़के की माँ थी उन्हें तो आज सबसे अच्छा दिखना था…

 सुमिता जी ये सब देख कर अपनी बेटी के लिए दुखी हो रही थी…शादी ब्याह के घर में उसकी जेठानी के मायके से भी सब लोग आए हुए थे पर कोई भी हाथ पैर नहीं हिला रहा था… सब खाने पीने में मग्न थे और सुमिता जी को अपनी बेटी को अस्त व्यस्त देख कर उन्हें बुरा लग रहा था ।

तभी राशि की मामी सास ने सुमिता जी को अपने पास आकर बैठने का इशारा किया ।

“ क्या हो समधन इतना दूर दूर क्यों बैठी है?” राशि की एक चाची सास ने पूछा

“ कुछ नहीं बस वो बेटी अकेले सब कर रही है तो उसके साथ थी… काम में ऐसी व्यस्त हैं कि मेहमान आ गए तब कही तैयार भी ज़बरदस्ती करवा कर बाहर लाई।” सुमिता जी ना चाहते हुए भी बोल गई

“ अब क्या करें समधिन छोटी बहू है तो काम तो करने ही होंगे आख़िर ज़िम्मेदारी भी कोई चीज़ होती हैं…आप तो देख ही रही है दो ही बहू है मेरी एक के बेटे की शादी है तो दूजे को ही सब ज़िम्मेदारी सँभालनी होगी ना।” राशि की सासु माँ सुनंदा जी ने कहा

“ हाँ वो तो समझ रही हूँ पर …।” सुमिता जी कुछ बोल ना पाई

राशि के ससुराल में लड़की वालों की ज़्यादा तरजीह ना दी जाती फिर सुमिता जी बेटी की साइड लेकर भी क्या ही कर सकती थी…एक ही शहर में रहने से न्योता पूरा करने चली

आई थी… वो तो सोच रही थी इतने सारे रिश्तेदार है सब आने वाले मेहमानों के लिए मिलकर सब करेंगे पर यहाँ तो सारी ज़िम्मेदारी उनकी बेटी पर डाल कर सब गपशप और खाने पीने का आनंद ले रहे थे …वही उनकी बेटी को चाय पीने तक की फ़ुरसत नहीं मिल रही थी… एक बार उनकी जी किया जाकर दामाद जी निकुंज से कहे“ माना आपके घर की छोटी बहू है पर ज़िम्मेदारियों की पोटली उसे थमा सब मस्त मगन है कोई ये भी नहीं देख रहा वो ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने में ठीक से खा पी नहीं रही है … पर कहने की हिम्मत ना जुटा पाई।”

 खैर तिलक ठीक से निपट गया…

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दूसरे दिन सुबह से राशि की खोजबीन शुरू होने लगी… जो रिश्तेदार आए हुए थे उनके सुबह के चाय नाश्ते की क्या व्यवस्था है पूछने के लिए और सुबह की चाय के लिए कुक को सामान देने के लिए… पर राशि नज़र नहीं आ रही थी तभी सुनंदा जी को किसी ने बताया… राशि को रात से बहुत उल्टियाँ हो रही है…उसकी हालत पस्त हो रखी है ।

निकुंज भी नहीं दिख रहा था वो डॉक्टर को बुलाने गया था… पर डॉक्टर घर नहीं आ सकते थे तो वो अपने क्लिनिक पर ही राशि को लेकर आने बोले।

निकुंज राशि को लेकर चला गया जब आया तो राशि पर बहुत ग़ुस्सा हो रहा था “ तुम्हें पता है तुम्हें खाली पेट नहीं रहना… परेशान हो जाती हो…पर अपनी ही मनमानी करती हो।”

“ दामाद जी मेरी बेटी सबके लिए सब काम करती है ये अच्छी बात है …छोटी बहू की ज़िम्मेदारी भी बख़ूबी निभा रही है … किसने खाया किसने नहीं सबकी जानकारी राशि रख रही है पर क्या आप सबने एक बार भी राशि को पूछा उसने खाया और नहीं…. कल काम के चक्कर मे रात देर से थोड़ा खाना ही खाई थी और ठीक से सोना नहीं हुआ तो अंजाम आपके सामने है….।” सुमिता जी बेटी को नारियल पानी पिलाते हुए बोली

“ मैं आपके घर में कोई हस्तक्षेप करने नहीं आई पर अपनी बेटी की हालत देख मेरा कलेजा फट गया…सब मस्ती करने में लगे पर मेरा ध्यान अपनी बेटी पर ही था… आप सब से विनती कर रही हूँ वो आपके घर की छोटी बहू है ज़िम्मेदारियों की पोटली नहीं….. उसे भी थोड़ा समझने की कोशिश करें…. आपस में मिल बाँट कर काम करें…।” सुमिता जी बेटी के कमजोर शरीर को देख सकते में आ गई थी

 रात से चार पाँच बार उल्टी कर वो पस्त हो गई थी डॉक्टर ने एक इंजेक्शन देकर कहा था इससे नहीं सँभला तो पानी चढ़ाना पड़ेगा ।

आखिर राशि की हालत ना सँभली अस्पताल में भर्ती करा कर पानी चढ़ाया गया….सब लोग राशि के लिए अब परेशान हो रहे थे… कुछ रिश्तेदार दबी ज़बान से कह रहे थे सच में छोटी बहू एक पैर पर खड़ी थी अरे ब्याह के घर में थोड़ा बहुत मदद करने को कुछ लोग लगा लेते… बेचारी की हालत ऐसी हो गई दो दिन बाद बारात है पता नहीं उसका क्या हाल रहेगा ।

सुनंदा जी ये सब सुन कर ख़ामोश थी….राशि की जेठानी को भी लग रहा था देवरानी की अच्छाई है कि बिना बोले काम कर जाती हैं पर मुझे भी समझना चाहिए था कि वो बेचारी अकेले ही सब मैनेज करने में लगी हुई थी और अब बीमार पड़ गई।

राशि जब घर आई सब उसका बहुत ख़्याल रख रहे थे…

“ छोटी बहू ज़िम्मेदारियाँ कभी ख़त्म नहीं होंगी पर इसका मतलब ये तो नहीं की खुद को नज़रअंदाज़ कर दो…हम सबने तुम्हें सारी ज़िम्मेदारी सौंप अपने हाथ खाली कर लिए इसके लिए सबको माफ कर दो… पर तुम्हें तो वक्त पर खा लेना चाहिए ना…जब कोई पूछने वाला ना हो तो खुद को खुद ही पूछना चाहिए…

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शरीर तुम्हारा है… तकलीफ़ भी तुम्हें ही होगी….इसलिए अपना ख़्याल कैसे भी रखना तो तुम्हें ही होगा… और हाँ बड़ी बहू को भी समझा दिया है …अगर छोटी बहू सबकी ज़िम्मेदारी ले रही तो छोटी बहू की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है… ।”सुनंदा जी ने कहा

 सुमिता जी ये सब देख कर सोच रही थी काश ये बात पहले समझ जाते तो मेरी बेटी परेशान तो ना होती।

 दोस्तों ज़िम्मेदारियाँ सच में ख़त्म नहीं होती … परिवार में जब भी कोई फ़ंक्शन होने वाला होता है… किसी एक के उपर सारी ज़िम्मेदारी डाल दी जाती है जहाँ पर करने वाले कम होते है…शादी ब्याह ऐसा फ़ंक्शन होता है जहाँ लोह बस मस्ती करने आते है ऐसे में घर के किसी ज़िम्मेदार सदस्य की हालत कभी कभी राशि जैसी हो जाती है…।

इसलिए ऐसे समय में ज़िम्मेदारियों की पोटली किसी एक के हाथों में देने की बजाय कई लोगों में बाँट देना चाहिए ताकि सभी अच्छी तरह फ़ंक्शन का मजा ले सकें।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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