चीनी घुली चाय – पूनम भटनागर : Moral Stories in Hindi

सोनल अपनी नई ड्रेस जो कि उसे सासू मां ने दी है , निकाल कर निहारे जा रही थी। तभी फोन घनघना उठा , उसकी छोटी बहन का था, उसने फोन उठा कर हेलो की ,कि छोटी बहन रेखा का रूदन सुनाई दिया, अरे रेखा क्या हुआ ,तू रो क्यों रही है, उसने बैचेनी से रेखा से पूछा। दीदी रमेश से रात मेरी फिर से लड़ाई हो गई। क्यों क्या हुआ,

रमेश फिर से अपने परिवार वालों के साथ चले गए ,व फोन कर के मुझे भी बुला लिया। पर रेखा ये तो कोई इतनी बड़ी बात नहीं, और फिर रमेश का परिवार तो तेरा भी कुछ लगता है। छोटी-छोटी बातों को इतना तूल मत दे , और तू भी अपने घर परिवार पर ध्यान दें। यूं रोकर हलकान मत हो। रेखा बोली दीदी क्या कह रही हो। और उसने फोन पटक दिया।

और वह मुस्कराती हुई खुद से बोली, नासमझ रेखा। पर वह कहकर स्वयं से बोली -कया वह यही नासमझी खुद भी तो करने चली थी, उसे याद कि एक साल पहले का अपना शादी के  बाद का पहला दिन , जब वह   शादी  के बाद पहली रसोई बनाने बैठी थी, उसके हाथ पांव फूल रहे थे , हड़बड़ाहट में। खीर के लिए चीनी की जगह नमक डालने लगी थी कि पीछे से एक कड़क सी आवाज आई , नमकीन खीर खिलाओगी।

और उसके हाथ से नमक का डिब्बा छूट गया। तभी सासू मां का नरम से स्वर में आदेश आया कि, इतना घबराओ मत , सब घर के ही लोग हैं और तसल्ली से बनाओ। कहकर सासूमां बाहर चली गई। सासूमां के नरम से व्यवहार से उसके दिल को वाकई राहत ‌मिली। शादी से पहले ही उसे मालूम पड़ गया था कि सास थोड़े तेज मिजाज की हैं। मां बाबूजी ने उनके घर से आते हुए ही कहा था। बड़ी भाभी भी संभल कर ही ‌उनसे बात करतीं। वैसे बड़ी भाभी अच्छे स्वभाव की थी पर सास से थोड़ा डरकर ही रहती। इस एक साल में कहीं मौके आए जो बात ही बात में उससे सासूमां रूठ जाती

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पर उनकी खासियत यह होती , वह जल्द ही ठीक हो जाती। आखिर तलखी की वजह ये थी कि सोनल के ससुर जी का देहांत , जब बच्चे छोटे थे तभी हो गया था। सासूमां एक स्कूल में प्रिंसीपल थी। एक तो पिरनसिपल होना और तीन तीन बच्चों की जिम्मेदारी उन्हें कड़क स्वभाव दे गयी। पर वह सब अच्छे से निभाती कि कौन सी बहू को कब क्या और कितना निभाना है। दोनों बेटे मां की बेहद इज्जत करते । संभलते संभलते भी सोनल से कोई न कोई ग़लती हो ही जाती पर वह अब सौरी बोलने के साथ थोड़ा नाराज़ भी रहने लगी। बड़ी भाभी उसे समझाती कि सास को सौरी बोल बात खत्म कर दो ।

पर सौरी बोलकर वह और नाराज़  हो जाती। यूं सविता जी दोनों बहुओं को लाड़ भी बहुत करतीं। पर सोनल की जगह अब जाती। कभी बार सोनल की मां ने भी समझाया कि वो तेरी सास है, थोड़ा तू ही झुक जाया कर, पर सोनल का अड़ियल स्वभाव उसे ऐसा नहीं करने देता। ऐसे ही एक दिन सासूमां अपने काम से लौट रहे थे कि एक गढ्ढे में पांव आ गया , घर तो किसी तरह पहुंच गयी घर आकर डाक्टर को दिखाया तो फैरेकचर  बताया। अब वह घर पर ही रहती

पर चोट लगने से व सारा दिन घर पर बिताने से स्वभाव की तल्खी और बढ़ गई जिसका खामियाजा दोनों बहुओं को भुगतना पड़ता। तभी सोनल को एक तरकीब सूझी उसने कहा मम्मी जी क्यों न हम काम वाली व माली के बच्चों को घर पर पढ़ाना शुरू करें। इससे समय भी बीत जाएगा व उनका भी भला होगा। पहले तो ना-नुकुर के बाद वह राजी हो गयी आखिर काम उनकी पसंद का था तो वह सहज हो ही गया। बीच बीच में बड़ी भाभी व सोनल उनकी मदद कर देते, कभी सोनल चाय बना लाती । और सास बहुएं मिल बैठ कर चाय नाश्ता करते। अब सासू मां व बहुओं के बीच एक दोसती का रिश्ता बनता जा रहा था। वह बहुओं पर बेवजह नाराज नहीं होती फै्रक्चर भी लगभग ठीक होने लगा था

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पर अभी बाहर आने जाने की मनाही से वह काम पर नहीं जा पातीं। घर पर बच्चों का स्कूल बढ़िया चल गया। पर घर में भी वह सोनल और भाभी के कामों में हाथ बंटाने लगी बड़ी भाभी कहती सोनल , यह सब तुम्हारे ही कारण संभव हुआ है। दोनों बेटे भी खुश थे कि सास बहुओं में बहुत अच्छा चल रहा है। तभी एक दिन सोनल को बहुत सर्दी लगने के कारण बुखार आ गया। बुखार इतना बढ़ गया कि अस्पताल दाखिल होना पड़ा। इन सबमें एक हफ्ता लग गया।

दोनों बेटे व भाभी उसकी देखभाल में लग गए। एक दिन सोनल बोली, भाभी आप पर बहुत काम पड़ गया इन दिनों। भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा , नहीं मम्मी जी ने मेरी काफी मदद की । अब कल तो तू भी ठीक होकर आ रही है। सोनल ने पूछा -मममी कैसी है। मैं ठीक हूं , और तेरा इंतज़ार कर रही हुं मेरी दोनों बहुएं चाय में चीनी की तरह हैं और तेरे हिस्से की चीनी की कमी है, वापस आकर पूरी कर। और सारा परिवार एक मधुर ठहाके से गूंज उठा।

   * पूनम भटनागर ।

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