रधिया जिन घरों में झाड़ू पोंछा, बर्तन धोने का काम करती थी आज उन घरों में से किसी एक घर के
राजा बेटे का जन्मदिन था तो तीन कामवालों का कार्य रधिया से करवा कर मालकिन ने उसे घर
वापिस जाते हुए सूखी पूरियां, बिना पनीर की रसे वाली सब्जी, समोसे और गुलाब जामुन के
चूरे का मिश्रण देते हुए दस का सिक्का भी राजा बेटे के सर से घुमा कर दिया और कहा
कि,“ आज बालकन ने अच्छे से खिलाइयों” बहुत बड़े दिल का परिचय दिया था मालकिन ने आज
नंदू और भोलू की तो आज दिवाली मन गई थी । ये भोजन उनके लिए छप्पन भोग बन
गया था। नंदू ने तो एक पूरी भोर में खाने वास्ते छुपा भी ली थी । एक पीले रंग का गुब्बारा
भी रधिया ने बालकों को दिया तो दोनों की आँखें में चमक के साथ होड़ भी दिख गई ।
भोलू ने बड़े होने का रुआब दिखाया और गुब्बारा छीन लिया । नंदू ने रो रो कर गोबर लिपे
कच्चे फरच पर खुद को पटकना शुरू कर दिया था पर भोलू के आंख कान जैसे उस वक्त
अपनी भूमिका निभाने को तैयार ना थे।
इसका बदला नंदू ने पापड़ में बदल चुकी पूरी को चाय के साथ मुंह चिढ़ा कर खाते हुए
लिया।
रधिया सब कुछ देख समझ रही थी, उसने तो कभी अपने दोनों बच्चों में कोई भेदभाव नहीं
किया था फिर आज ये सब क्यूं हो रहा था, कैसे हो रहा है..? उसका परिवार गरीब था तो
क्या हुआ, उसने तो बच्चों की परवरिश तहज़ीब में ही की थी। दोनों भाईयों को परस्पर
प्यार, अपनेपन और इज्ज़त का पाठ पढ़ाया था और ऐसा ठगा सा महसूस कर रही थी वो
खुद को कि बिना एक पल गवाए चिंदी भर बेजान चीजों की वजह से आज उसके बच्चें सब
कुछ भूल गए ।
रधिया ने सोच लिया था कि उसे क्या करना है। सबसे पहले तो जो भी छोटा मोटा सामान
वो बच्चों के लिए लाती वो बराबर का होता था। एक मीठी गोली या एक गुब्बारे के लिए
दोनों में से किसी की भी आंख में ईरशा, द्वेष या जलन के भाव उत्पन्न हों, ये वो नहीं
चाहती थी। जब भी वक्त मिलता वो बच्चों को अकेले में रिश्तों का महत्व समझाया करती।
दोनों को ज्यादा से ज्यादा एक साथ वक्त गुजारने को प्रेरित करती। उन्हें एकता बनाए
रखना सिखाती। छोटे बेटे को बड़े भाई के प्रति आदर सम्मान और बड़े को छोटे भाई के प्रति
प्रेमभाव रखने को कहती।
कुछ सप्ताह बाद फिर से किसी की गुड़िया का जन्मदिन आया तो घर वापिसी के समय उसे
फिर से “दावत” सौंपी गई पर रधिया ने इस दफा साफ मना कर दिया । इन तथाकथित
भौतिक वस्तुओं के कारण अपनी संतानों के बीच उसने जो भविष्य में होने वाले युद्ध की
झलक देखी थी जो अभी छोटी सी चिंगारी समान थी पर आगे जाकर अग्नि की जो लपटें
उठेंगी और उनसे कितनी तबाही होगी। ये रधिया जान समझ गई थी और इस चिंगारी को
अब वो और हवा नहीं देना चाहती थी।
घर वापिसी में वो खुद एक दुकान पर रुकी और बच्चों के लिए कुछ छोटी मोटी चीज़ें लेने
लगी, तभी उसकी सहेली भी वहां आ गई। उसने भी सामान ले लिया तो दोनों एक साथ ही
वापिस चलने लगीं। रधिया उषा के प्यार और दोस्ती वाले व्यवहार से अच्छी तरह परिचित
थी। जब उषा ने उससे घर परिवार की बातें शुरू कि तो रधिया ने पिछले दिनों हुईं बातें उसे
बताई।
“ तूने बहुत अच्छा किया रधिया जो अभी से उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए इस तरीके से
उन्हें समझाना शुरू कर दिया है “
“हां उषा, मैं कभी नहीं चाहूंगी कि ये छोटी छोटी बातें कोई बड़ा रुप ले लें और मेरे छोटे से
परिवार के रिश्तें बिखर जाएं”
उसकी बात सुन कर उषा मुस्कुरा दी और बोली,“ जहां तेरी जैसी मां हो वहां कुछ बिखरेगा
नहीं बल्कि सब प्रेम बंधन में बंधे रहेंगे।”
चलते चलते घर आ गया था। दोनों बच्चें दरवाज़े पर ही खड़े थे। अपनी मां को देखते ही
उसके पास भागे चले आए। रधिया ने दोनों को अपनी बाहें फैलाकर अपने सीने से लगा
लिया था। तीनों जनों की खुशी देखते ही बनती थी क्योंकि इस परिवार में टूटते रिश्ते जुड़ने
जो लगे थे।
भगवती ( स्वरचित)
# टूटते रिश्ते जुड़ने लगे