छुईमुई – शिप्पी नारंग : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रंजना जी पार्क के पेंच पर चुपचाप बैठी हुई विचारों में खोई हुई थी । सुबह सुबह का समय था मौसम खुशगवार था कुछ लोग बातें कर रहे थे, कुछ योग कर रहे थे, कुछ सैर कर रहे थे और कुछ बुजुर्ग बैठे हुए अपने जमाने को याद कर रहे थे हुए थे पर रंजना जी इन सबसे परे अपनी दुनिया में विचर कर रही थी।

सोच रही थी क्या पाया जिंदगी में बस घर की भट्टी में ही झोंक दिया अपने आप को। क्या पाया जिंदगी में, बस जिंदगी के हसीन पलों को खो दिया अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के चक्कर में। तभी अचानक एक आवाज ने उनकी तंद्रा भंग की …”क्या मैं यहां बैठ सकता हूं…?”

रंजना जी ने देखा सामने 68-70 वर्षीय प्रौढ़ व्यक्ति खड़े थे । सुनहरी कमानी का चश्मा, हाथी दांत के मूठ वाली छड़ी, सिर पर हैट, चेहरे पर मुस्कुराहट यानी कुल मिलाकर एक आकर्षक व्यक्तित्व ।

रंजना जी ने तीखी नजरों से देखा फिर अपने आसपास नजर दौड़ाई काफी बैंचें अभी खाली पड़ी थी । उनकी नजरों का अनुसरण उस व्यक्ति ने भी किया और कहा….”मैं काफी देर से आपको देख रहा था, आप काफी टेंशन में लग रही थी काफी सोच में गुम थी तो सोचा शायद मेरी सहायता की जरूरत हो आपको।

इसलिए पूछा आपसे..।” रंजना जी को यह व्यवधान पसंद नहीं आया उन्होंने उन्हें बैठने का इशारा तो किया लेकिन खुद उठकर जाने के लिए बढ़ी ही थी कि पीछे से आवाज आई… “तुम आज भी छुईमुई हो रंजू।” और रंजना जी ठिठक गई लगा किसी ने बरसों पड़े हुए मूक सितार को झंकृत कर दिया कानों में रंजू छुईमुई रंजू छुईमुई गूंजने लगा।

एकदम मुड़ी गंभीर मगर उत्तेजित स्वर में बोली …”निशु तुम यहां…? तुम तो uk में थे ? इंडिया कब आए..? और फिर यहां पंचकूला में…. “अरे सांस ले लो भाई अब तो बैठ जाओ निशू यानी मनीष जी ने हंसकर कहा हां अब बताओ क्या पूछना है.

पहले यह बताओ तुम किस गहरी सोच में डूबी हुई थी वैसी की वैसी ही हो जैसी 20 वर्ष पहले थी बस चांदी के तार झलक रहे हैं बालों में और चश्मा तो खूब जच रहा है छुईमुई।” मनीष जी ने गहरी नजरों से देखा

। रंजना जी ने कहा “उम्र के इस मोड़ पर भी मैं तुमको छुईमुई नजर आ रही हूं क्या निशू..? पता है तुम्हें 60 से ऊपर के बसंत देख चुकी हूं वक्त कहां से कहां पहुंचा देता है ।क्या से क्या हो जाता है। रिश्तो को संभालते, बनाते हुए हम अपनी जिंदगी को ही खत्म कर देते हैं और जिनके लिए करते हैं उन्हें बस पैसा दिखता है रिश्तों की कोई कद्र ही नहीं है…।”

“बहुत चोट खाई हुई हो। आंटी, अंकल राजेश, सोमेश और अंजना सब कैसे हैं ..?” “मम्मी पापा तो रहे नहीं बाकी तीनों ने अपनी गृहस्थी बना ली अपने में व्यस्त हैं । रह गई मैं… उनका एटीएम । जब जी चाहता है पैसे ले जाते हैं और मैं एक भावनात्मक मूर्ख सब जानते हुए भी मूर्ख बनती रहती हूं ।

मम्मी पापा ने अपने स्वार्थ के लिए एक रिश्ते को नकार दिया और बस सबको बोल दिया कि मैं ही शादी नहीं करना चाहती थी अब आज इस मोड़ पर अकेली खड़ी हूं, बस यही सोच रही थी तुम सुनाओ कैसे हो ?

पत्नी बच्चे कैसे हैं ? जानती हूं तुम एक बहुत ही खूबसूरत दिल के मालिक हो तो तुम एक खुश जिंदगी गुजार रहे होगे। सबको खुश रखा होगा।” रंजना जी ने मुस्कुराते हुए पूछा । मनीष जी ने रंजना जी की तरफ देखा एक क्षण के लिए दोनों की आंखें चार हुई रंजना जी ने अपनी आंखें नीची कर ली…. “

अभी अभी तुमने कहा वक्त भी क्या खेल दिखाता है वही मेरे साथ भी वक्त ने किया जो रिश्ता नकारा गया था किसी के माता-पिता द्वारा उसके बाद जीने की तमन्ना ही खत्म हो गई थी पर फिर माता-पिता की दुहाई, वंश को आगे बढ़ाने का आग्रह मेरी शादी हो गई ।

मैं UK चला गया । बेटी हुई तब हम यहां इंडिया आए हुए थे कोविड अपने पूरे जोरों पर था । उसमें मम्मी पापा मेरी पत्नी और मेरी बेटी सब 15 दिन के अंतराल में चले गए लगा जिंदगी खत्म हो गई पर शायद मेरी सांसे बची थी और मैं रह गया ।

वापिस UK गया। सब कुछ समेटकर यही वापस आया कुछ समय दिल्ली रहा पर मन नहीं लगा तो यहां पंचकूला में चला आया। शांत सी जगह है, साफ सुथरा शहर है दिल्ली की तुलना में तो यही बस गया शायद तुमसे मिलना था इसलिए …

“मनीष जी ने चश्मा उतारते हुए कहा। “ओहो बेहद दुखद । भविष्य के गर्भ में क्या है निशु कोई नहीं जानता हम तब बिछड़े, आज मिले कितने वर्षों बाद… यह भी तो वक्त की चाल है…” रंजना जी की बात को काटते हुए मनीष जी की आवाज आई “…पर चलो मंजिल तक साथ न चले तो क्या हुआ राह भी वही है और राही भी वही हैं।”

बस दो जोड़ी आंखें चार हुई और एक जोड़ी आंखें झुक गई और कुछ प्रश्न छुईमुई की तरह अपने आप में ही सिमट गए।

शिप्पी नारंग

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