Moral stories in hindi : शादी के दस साल होने को आए। जीवन जैसे जिम्मेदारियों को समर्पित कर दिया है हमने। प्रेम, मनुहार, तमन्ना कुछ बची ही नहीं है जैसे, दो बच्चों की माँ सुधा बैठे बैठे यही सोच रही थी। नई नई शादी हुई थी, हाथों में हाथ डाले चाँदनी रात में घूमना कितना रोमांचक हुआ करता था।
अचानक कहीं खाने का प्रोग्राम बना लेना, डेट पर चले जाना। ऑफिस से समीर का आना और घर से सबसे बहाना कर मेरा पहुँचना, जीवन में कितनी ताजगी भर देते थे कभी कभी के ये छोटे छोटे पल। अब तो समीर काम में इतने व्यस्त हैं कि बात करने की फुर्सत भी नहीं होती है। इतने में कॉल बेल की आवाज़ आती है, अरे समीर के आने का समय भी हो गया और वो खोई खोई बैठी रही, सोचते हुए सुधा दरवाजा खोलती है।
दरवाजे पर समीर नहीं उसकी ननद गरिमा होती है, जोकि इसी शहर में रहती है और कभी कभी कभार यूँ ही आ जाती है। चुलबुली सी जो शादी के सात साल भी नहीं बदली। सुधा की ननद होने के साथ साथ उसकी सबसे प्यारी सखी भी थी, आते ही सुधा के गले लिपट गई।
गरिमा – भाभी जल्दी जल्दी मसाले वाली चाय पिलाओ, बहुत दिन हो गए आपके हाथ की चाय पिए।
सुधा – जब तक आप माँ से मिलो, मैं चाय ले आती हूँ।
अभी बातें हो ही रही थी कि समीर भी आ जाता है। सबके लिए चाय पकौड़े बना कर सुधा ले आती है और बच्चों को भी आवाज देती है कि आ जाओ बुआ के पास बैठ कर चाय पकौड़े का मज़ा लो।
चाय पकौड़े के बाद सब कैरम लेकर बैठ जाते हैं।
गरिमा – भाभी आप भी आ जाइए, पहले की तरह कैरम खेलते हैं।
सुधा – नहीं आप लोग खेलिए, मैं रात के खाने की तैयारी करती हूँ।
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गरिमा गौर करती है पहले की तरह उसकी भाभी में उत्साह नहीं रहा और ना ही ऑफिस से आने के बाद भैया बार बार सुधा सुधा कर रहे हैं। गरिमा अपने पति को फोन कर कहती है कि आज वो मायके में रहने वाली है, कल शाम तक घर आ जाएगी।
गरिमा और सुधा ननद भाभी से ज्यादा एक दूसरे की सखी थी।
गरिमा – भाभी आज की रात हम और आप छत पर सोएंगे और ढ़ेर सारी गॉसिप करेंगे।
सुधा मुस्कुरा कर हाँ बोलती है। दोनों मिलकर जल्दी जल्दी काम निपटाती हैं।
गरिमा – भाभी आप चलिए, मैं कॉफी बना कर लाती हूँ।
गरिमा छत पर साथ लाए गद्दे बिछाती है, तब तक गरिमा भी आ जाती है। फिर शुरू होता है बातों का सिलसिला।
गरिमा – क्या बात है भाभी आजकल आप बहुत चुप चुप सी हो गई हो। भैया भी आकर पहले की तरह सुधा सुधा नहीं करते हैं।
सुधा – अब क्या हमारी ऐसी उम्र रह गई है, अब तो सारे काम अच्छे से हो जाए और जीवन सही से कट जाए, यही बहुत है।
कुछ और बातों के बाद सुधा सो गई और गरिमा सोचने लगी कि ऐसा क्या करे कि उसके भैया भाभी पहले की तरह जीवन जीने में विश्वास करने लगे। पहले की तरह दोनों की दुनिया जीवन के उत्साह से भरी हो.. जीवन काटने की बात ना करें।
सोचते सोचते गरिमा अतीत में चली जाती है और उसके अधर पर एक मीठी मुस्कान आ जाती है क्यूँकि उसे याद आता है कि उसकी भाभी डेट पर जाना बहुत पसंद करती थी। घर से बहाना बना कर निकलती थी और भैया ऑफिस से। कभी पार्क, कभी सिनेमा, कभी रेस्तरां दोनों साथ साथ जाते थे। ये तो संयोग था कि एक दिन दोस्तों संग गरिमा उसी रेस्तरां में पहुँची, जहां उसके भैया भाभी भी गए थे, तब सारी बातें उसे पता चली और कई दिन तक इसके लिए अपने भैया भाभी को छेड़ती रही थी। तभी उसने कुछ सोचा और प्रसन्न मन से सो गई। दूसरे दिन गरिमा ये प्रण लेकर कि अपने भैया भाभी में फिर से जीवन के प्रति उमंग भर देगी, ससुराल चली गई।
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एक दिन सुधा अपने कामों में लगी थी कि उसका मोबाइल बज उठा, अब काम देखूँ कि बातें करुँ, बड़बड़ाती हुई सुधा ने देखा गरिमा का कॉल है। जल्दी से उसने फोन लिया क्यूँकि इस समय गरिमा बहुत जरूरी ना हो तो कॉल नहीं करती है।
सुधा – हैलो गरिमा, सब ठीक है ना?
गरिमा – हाँ भाभी, क्यूँ?
सुधा – नहीं, इस समय आप कॉल नहीं करती हैं ना इसलिए चिंता हुई।
गरिमा – वो सब छोड़िए भाभी, मेरे घर के पास वाले पार्क में दो बजे तक आ जाइए, बहुत जरूरी बात करनी है आपसे, जो सबके सामने नहीं हो सकती है।
सुधा – थोड़ा चिंतित स्वर में ऐसा क्या हो गया, खैर मैं आती हूँ।
गरिमा – घर पर किसी को बताइएगा नहीं कि मुझसे मिलने आ रही हैं।
सुधा – हाँ… बोल कर कॉल काटती है और जल्दी ही काम खत्म कर सासु माँ से बाजार का बोल कर चली जाती है।
उधर गरिमा अपने भैया समीर से भी यही बोल कर पार्क में बुलाती है।
सुधा और समीर पार्क में पहुंच कर गरिमा को खोजते हैं। गरिमा तो नहीं होती है, सुधा और समीर एक दूसरे को देख आश्चर्य में पड़ जाते हैं। फिर गरिमा को कॉल करते हैं…
गरिमा -( हँसते हुए) आप दोनों बातें करें, मेरा काम हो गया।
बहुत दिनों बाद सुधा और समीर यूँ बिना किसी काम के एक दूसरे के साथ थे।
समीर – सुधा थोड़ी देर बैठो, मैं अभी आया। जब तक सुधा कुछ कहती,समीर चाला गया।
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कुछ देर बाद सुधा के पसंद के फूल और आइसक्रीम के साथ लौटा और घुटनों के बल बैठ कर कहता है – क्या तुम फिर से मेरी प्रेयसी बनना चाहोगी।
सुधा – (शर्माते हुए कहती है) .. इस फूल की कसम हाँ….
फिर एक ही आइस क्रीम से खाते हुए दोनों पार्क में हाथों में हाथ डाले बैठे होते हैं। तभी समीर का मोबाइल रिंग करने लगता है, उधर गरिमा होती है।
गरिमा – भैया अब घर भी चले जाओ, अब तो ये डेट हमेशा चलेगी और हँसते हुए कॉल कट कर देती है।
तब दोनों को पता चलता है कि शाम के पाॅंच बज गए हैं, बच्चे भी ट्यूशन से आ गए होंगे, माँ के भी चाय का समय हो रहा है।
दोनों घर आ जाते हैं, पर पहले की तरह अलग अलग। रात का खाना तैयार करती हुई सुधा सोचती है, इतना भी मुश्किल नहीं है अपने आशियाने में ज़िंदगी में छोटी छोटी खुशियों को सहेज लेना। साथ ही साथ गुनगुना रही होती है – “आज ज़मीं पर नहीं पड़ते कदम मेरे”। सुधा को खुश देख समीर भी काफी खुश होता है और ग्लानि का अनुभव करता है कि जिस बात पर उसे ध्यान देना चाहिए था, उसकी बहन ध्यान देती है।
सोचते सोचते गरिमा को कॉल कर ज़िंदगी से फिर से मिलाने के लिए शुक्रिया कहता है।
गरिमा – भैया ये मेरे मन की इच्छा थी कि आप और भाभी फिर से वही पुराने वाले जोड़े बन जाओ। फिर से आपका घर ऑंगन खुशियों की बहार से सज जाए। मेरे मन की इच्छा आप दोनों पूरी कर दो, यही मेरा शुक्रिया होगा।
बच्चे और सासु माँ खाना खाकर सोने चले गए और समीर आज से सुधा के साथ खाना खाने का निर्णय लेता है।
खाने की टेबल पर सुधा से कहता है.. इतनी छोटी सी डेट अगर इतनी खुशी दे सकती है तो क्यूँ ना इन छोटी खुशियों को अपना बनाकर जीवन में रौनकता लाई जाए। सुधा प्यार से अपने पति को देखती है और हाँ बोल प्यार से समीर के प्लेट में खाना डालने लगती है।
हम इंसान भी कैसे होते हैं ना बड़ी बड़ी खुशियों को पाने के पीछे भागते रहने में अपनों को, खुद को भूल जाते हैं। भूल जाते हैं कि बूँद बूँद से हो घड़ा भरता है, उसी बूँद बूँद की कद्र नहीं करते हैं। घर ऑंगन की खिलखिलाहट को दरकिनार कर देते हैं।
आरती झा आद्या
दिल्ली
#घर-आँगन