चंपी–नीरजा कृष्णा

“जब से अंश देहरादून हॉस्टल में गया है, अम्मा बहुत सुस्त रहने लगी हैं। उनका खाना पीना भी बहुत कम हो गया है”

संध्या बहुत दुखी होकर अनिल को बता रही थी।

वो भी ऐसा ही महसूस कर रहा था…बहुत दुखी होकर कहने लगा,”तुम ठीक कह रही हो। अंश के साथ अम्मा बाबूजी का समय कितनी खुशी से निकल जाता था, उसका हर काम वो ही करते थे और उसके साथ साथ उनका भी रंग बिरंगा नाश्ता खाना हो जाता था।”

वो दोनों बहुत चिन्तित हो गए थे…सच में अम्मा तो उसको हॉस्टल भेजने के बहुत सख्त खिलाफ़ थी। उसी दिन बोल रही थीं,”बेटा, अभी अंश बहुत छोटा है, अभी से तुमलोग उसे अफ़सर बनाने की सोचने लगे हो, बाद में देखा जाएगा, आखिर हमने तुमको भी तो अपने पास रख कर पढ़ाया लिखाया था। तुम भी तो कितनी बढ़िया कर रहे हो। वो भी खूब बढ़िया करेगा, पर अभी उसका बचपन मत छीनो।”

संध्या बीच में बोल पड़ी थी,”अम्माजी!  अब समय बदल चुका है। बड़े भाग्य से  उस बढ़िया स्कूल में जगह मिली है,दिल तो हम सबका ही टूट रहा है पर बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए कुछ सैक्रीफाइज़ तो करनी ही पड़ती है।”

फिर वो कुछ नहीं बोली और एकदम गुमसुम सी हो गईं।

आज अनिल ऑफ़िस से बहुत थका और परेशान लौटा, सब पूछने लगे तो बोला,”आज बहुत काम पड़ गया था, सिर एकदम भन्ना सा गया है। अम्मा कहाँ है…ज़रा पहले की तरह चमेली के तेल की चम्पी तो कर दें, कुछ आराम मिलेगा।”

दूसरे कमरे में मुँह फुलाए बैठी अम्मा हाथ में तेल की शीशी लिए दौड़ी आई। उनकी खुशी और फ़ुर्ती देखते ही बनती थी। वो कुर्सी पर बैठ गई…अनिल झट उनके कदमों में बैठ गया,वो मगन होकर गाने लगीं,

“सिर जो तेरा चकराए, या दिल डूबा जाए।

आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए”

वो उसके सिर को थपथपाते हुए बोली,”आज कितने सालों बाद तूने अपनी चंपी करवाई है, पहले तो आए दिन पीछे पड़ा रहता था।”

वो उनका लाड़ करते हुए बोला,”और अम्मा, वो तुम्हारे हाथ का बेसन का हलवा भी खाए हुए ज़माना बीत गया… आज बनाओ न।”

वो तो निहाल होकर चौके में घुस गईं।

आज उनको खुश देख कर सब एक दूसरे को देख कर इशारे करने लगे थे। बाबूजी के मुँह से निकल पड़ा,”आज  उसको फिर  एक नन्हा मुन्ना मिल गया है।”

नीरजा कृष्णा

पटना

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