चलती का नाम ज़िन्दगी – स्नेह ज्योति’   : Moral Stories in Hindi

सुबह की सुनहरी धूप में जब निशा ने आँखे खोली तो वो अपने आने वाले भविष्य की कल्पना करने लगी । उसका सपना भारत क्रिकेट टीम की कप्तान बनने का था । बस बैठें बैठें इस ख़ुशी को महसूस करना शुरू ही किया था कि उसकी माँ निशा निशा चिल्लाती हुई अंदर आई |

क्या हुआ माँ ? जो सुबह-सुबह इतना शोर मचा रही हो । सुबह ! सूरज सिर पर चढ़ आया है और तुझे सुबह लग रही है । अच्छा माँ जल्दी से बताओ क्या काम है ? मुझे मैच खेलने जाना है । आज तो तुम भूल जाओं कि तुम खेलने जा पाओगी । क्यों माँ आप ऐसा क्यों कह रही है ?

आज के दिन क्या खास है जो आप मुझे खेलने से रोक रही है । बेटा आज तेरे पापा ने किसी लड़के को बुलाया है । वो सब तुझे देखने आयेगे इसलिए तू आज अपनी सहेली को फ़ोन कर मना कर दे । निशा झुंझलाते हुए माँ आपको पता है मैं अभी अपनी टीम की कैप्टन बनने वाली हूँ

और आप लोगों को मेरी शादी की पड़ी है । बेटा हम चाहते है कि तुम जल्दी से अपने घर की हो जाओं । आज कल वक्त का कोई भरोसा नहीं । यें सुन निशा बोली अच्छा ठीक है अब आप ज़्यादा भावुक ना हो । अगर वो अभी आ रहे है तो ठीक है। मुझे शाम को खेलने के लिए जाना है ……बोल वो चली गयी ।

तीन घंटे बाद वो लोग निशा को देखने आए और निशा उन्हें पसंद भी आ गयी । यें सब सुन निशा को बड़ा आश्चर्य हुआ । पहली बार में ही मैं उन्हें पसंद आ गई । अपनी शंका को दूर करने के लिए उसने लड़के से अकेले में बात करने का प्रस्ताव रखा ।

वैभव ने मिलने के लिए हाँ कर दी । दोनों बालकनी में खड़े होकर बात करने लगे । तभी निशा ने कहा कि आप जानते है मैं टीम इंडिया के लिए मैच खेलती हूँ और शादी के बाद भी मैं अपना यें शौक जारी रखना चाहूँगी । अगर आपको मेरी यें शर्त मंज़ूर है

तो मुझे शादी करने में कोई परेशानी नहीं । यें सब सुन वैभव ने कहा कि मुझे तो कोई परेशानी नहीं है । निशा ने कहा …..आपके घर वालों को परेशानी हुई तो … वैभव ने कहा नहीं जब मुझें कोई परेशानी नहीं तो उन्हें क्या होगी । निशा ने कहा आप सोच लीजिए उनसे पूछ लीजिए तभी कोई जवाब देना । वैभव अपने माता पिता के साथ वहाँ से चला गया ।

कुछ दिनों बाद वैभव के घर से फ़ोन आता है कि उन्हें शादी से कोई एतराज़ नहीं है । जब यें बात निशा को पता चली तो उसे भी अच्छा लगा कि आज की दुनिया में भी अच्छे लोग है जो उसके सपनों की क़दर करते है । शादी में ज़्यादा दिन नहीं थे ।

इसलिए निशा भी शादी की शॉपिंग करने में जुट गई । जैसे जैसे शादी के दिन क़रीब आ रहे थे निशा थोड़ी परेशान होने लगी उसके बाद उसके माँ पापा का क्या होगा ? वो अकेले रह जाएंगे । उसके दिमाग़ में आया की वो वैभव से इस बारे में बात करे ।

लेकिन कुछ सोचते हुए उसने फ़ोन उठा नीचे रख दिया । शायद यें सही नहीं है । मेरी एक बात तो उन्होंने मान ली अब ये ज़रूरी तो नहीं कि हर बात मान लें ।

कुछ दिनों में शादी थी तभी एक दिन अचानक वैभव का फ़ोन आता है और वो निशा के पापा से बात करता है । उससे बात करने के बाद निशा के पापा बहुत ख़ामोश हो गए और बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़े । उन्हें फटाफट हॉस्पिटल ले जाया गया

जहाँ जाकर पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था जिसके चलते उनका देहांत हो गया । उस वक़्त निशा को ऐसा लगा कि ना तो उसके ऊपर आसमा बचा और ना ही पैरो के नीचे कोई ज़मीन । जब वैभव और उसके पिता निशा के घर अफसोस करने आए तो तब पता चला

कि ये सब वैभव की गलती की वजह से हुआ था । उसने अपने परिवार वालों से कभी मेरे सपनों के बारे में कोई बात ही नहीं करी थी और जब करी तो सब चकनाचूर हो गया । निशा को उसके सभी रिश्तें दार और पड़ोसी कोसने लगे कि इसकी वजह से इसके पिता की मृत्यु हुई । सब उसे अभागन कहने लगे ना तो शादी हुई और ना ही अपने बाप को बचा सकी ।

बहुत दिनों तक सबकी ऐसी सोच सुन सुन कर वो ख़ुद को अभागन समझने लगी लेकिन फिर उसे अपने पापा की बात याद आयी कि ज़िंदगी कभी रुकती नहीं है । निराशा से कभी कुछ नहीं मिलता अगर कुछ पाना है तो आगे बढ़ो ।

इसलिए उसने फ़ैसला किया कि वो इस अभागन नामक शब्द को अपनी ज़िंदगी में कभी कोई जगह नहीं देगी । अपनी और अपने पापा की हर उम्मीद को पूरा करने का जज्बा लिए वो बाहर मैच खेलने गई और उसने जीत कर यें दिखा दिया कि कुछ ना मिलने का अर्थ ये नहीं होता कि आप अभागन हो । शायद वो आपको इस लिए नहीं मिला क्योंकि आप उससे बेहतर डिज़र्व करते है ।

#अभागन

स्नेह ज्योति

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