मीनू ..’अपनी दादी के संदूक को अजायबघर कहती थी’
कोई भी ऐसी चीज नहीं थी जो दादी के बड़े से संदूक में ना हो !
और दादी ..उस पर बड़ा सा मोटा सा ताला लगा कर रखती थी
‘ताला भी अस्सी साल पुराना था’
दादी की मां ने.. दादी को दिया था
मीनू अक्सर उस ताले को छूकर कहती,दादी मां.. यह तो मैं अपने साथ ससुराल ले जाऊंगी और दादी कहती.. ले जाना , अभी बहुत समय है
यह संदूक भी साथ दे दूंगी.. और मीनू हंसती.. ना बाबा ना..
इतना बड़ा संदूक में कहां रखूंगी ?
दादी ,पोती की यूं ही मस्ती चलती रहती..
‘मीनू को अपने स्कूल के लिए प्रोजेक्ट बनाना था’
फाइन आर्ट्स सब्जेक्ट के साथ कुछ क्रिएटिविटी भी दिखानी थी
ड्राइंग पेंटिंग में तो मीनू बहुत अच्छी थी
‘ लेकिन सुई धागा सिलाई बुनाई से’ कोसों दूर…
मीनू की मम्मी अपने मायके गई हुई थी, रह
गए थे घर में..’ मीनू और दादी मां’
उनको मनाना थोड़ा मुश्किल काम था
फिर भी मीनू ने, दादी मां की पसंद की रसमलाई मंगाई और फिर बोली दादी मां ..
आज आपका संदूक खोलो ना!
दादी मां बोली.. क्यों?
आज क्या काम है ?
मीनू बोली,नहीं आज मैं फुरसत में हूं…
दादी बोली नहीं मीनू,.. दाल में कुछ तो काला है
लाडो..बताना तो ज़रा.. पूरा सच ..??
वैसे ‘मैंने रसमलाई खा ली है’ .. मुझे सब समझ में आता है
मीनू ने ‘सारी बात का जब खुलासा किया’ तो दादी हंस पड़ी और बोली बस इतनी सी बात !
दादी मां के संदूक में.. ‘मोती ,कोड़ियां, सीपियां और न जाने कैसे कैसे रंग बिरंगे धागे, ऊन क्रोशिये भरे पड़े थे’
दादी मां ने उनको बाहर निकाला और मीनू को साथ बिठा लिया और एक क्रोशिये को पकड़कर मीनू के हाथ में पकड़ा दिया
दादी मां.. फंदा डालती जाती और साथ में एक एक मोती भी !
दादी मां ने ‘इतनी सुंदर एंकर के धागे की बालियां बना डाली,कि मीनू ने दांतों तले उंगली दबा ली’
मीनू ने, इन्टरनेट से दादी मां को कई डिजाइन दिखाएं और दादी मां.. फटाफट हाथ चलाती हुई कई तरह की बालियां.. झुमको के साथ मीनू को साथ समझाती हुई एक पूरा… खजाना बना बैठी!
शाम गहरा गई थी
दादी मां की उंगलियां दर्द हो रही थी पर.
उनकी हिम्मत की दाद देनी पड़ी, मीनू को.. क्योंकि मीनू जहां मुश्किल से एक, दो बना पाई थी
वहां दादी मां ने तो बारह बना दी।
मीनू ने वैसे भी, नया-नया ही सीखा था
तो’ हाथ में इतनी सफाई भी नहीं थी’
और दादी मां के हाथ के बने कानों के बाले और झुमके गज़ब बने थे
अब तो मीनू ने ठान लिया था कि वह सफाई से और भी बनाना सीखेगी..और दादी मां के काम को अपनी सहेलियों को दिखाएगी
तभी मीनू के पापा आ गए और उन्होंने सब देखा तो बोले, अभी दो महीने की छुट्टियां आने को हैं
बेटा जी.. ढेर सारी बना लो !
और अपने फ्रेंड्स को गिफ्ट करो.. चाहो तो बेच दे सकती हो!
मीनू की आंखें चमक उठी ..सच में पापा पॉकेट मनी के लिए आईडिया बुरा नहीं है..!!
और दादी मां मुस्कुराती हुई अपने खजाने को वापस समेट कर अपने संदूक में रखने ही जा ही रही थी कि उन्होंने पलटकर मीनू को बोला मीनू.. आ तो ज़रा!
मैं तुझे ताला भी खोलना सिखा दूं
ये ताला भी अलग ढंग से खुलता है
मीनू की आंखें भीग उठी, दादी मां का वो भारी भरकम ताला दो कड़ियों को एक साथ जोड़ कर जब घड़ी के बारह बजाता, जैसा दिखता था.. तभी खुलता था
मीनू ,दादी से लिपट गई और दादी मीनू को आशीर्वाद दे कर, बोली बेटा हर काम आना चाहिए …सीखने में कोई बुराई नहीं है!!
लेखिका अर्चना नाकरा