करियर – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

माँ , कल ग़ाज़ियाबाद जाना है तो आरती के लिए गाजर का हलवा बना दो , ले जाऊँगा । कुणाल ट्यूशन से आता ही होगा , सामान ले आएगा । 

बता ! एक- आध दिन पहले बता देता तो तिल के लड्डू भी बना देती । अब कल जाना है और अब बता रहा है । अब बड़ा परिवार है, कम से कम दो-दो, चार-चार बार तो खा लें सब , इतना तो देना ही चाहिए ।

मुझे भी कहाँ पता था ? आज ही पता चला कि मेरे गए बिना काम नहीं चलेगा । अरे , मुझे पता है माँ , जहाँ आप रसोई में घुसी तो कढ़ाई-चमचे आपको देखकर नाचने लगते हैं और जब बेटी की ससुराल मिठाई भेजने की बात हो तो बात ही अलग हो जाती है ।

अच्छा… चल बात मत बना ज़्यादा । चल सामान लिखवा देती हूँ काग़ज़ उठा के ले आ , फिर आधी चीजें आएँगी और आधी दिमाग़ से निकल जाएँगी । 

नहीं माँ, सच्ची …. जो एक बार आपके हाथों से बनी मिठाइयों को चख लेता है , स्वाद भूल नहीं सकता ।

बेटे की बात सुनकर विशाखाजी को याद आ गया वो दीपावली का दिन , जब एक – डेढ़ महीने से माँ टाइफाइड के कारण बिस्तर पर पड़ी थी—-

विशाखा ,  पूजा के लिए थोड़ा सा हलवा बना ले बेटा , मैं बताती जाऊँगी….

अरे , रहने दो … कहाँ लड़की को दुखी करोगी । बाज़ार से मिठाई ले लाऊँगा…. भगवान को सब पता है ।

नहीं जी , चूल्हे पर कढ़ाई रखनी भी ज़रूरी होती है त्योहार पर..

हाँ बाबूजी… माँ बताती जाएँगी, मैं बना लूँगी , बनाने  दो ना बाबूजी । 

और जब हलवा बनकर तैयार हुआ तो भोग लगाने के बाद खाने के समय बाबूजी  तो कटोरी चाट गए —-

विशाखा , तूने तो इनाम पाने का काम कर दिया … पहली ही बार में इतना लाजवाब हलवा , ऐसा स्वाद तो तेरी माँ के हाथ में भी नहीं । 

और बस उसी दिन से उन्हें खाने बनाने का शौक़ चढ़ गया , विशेष रूप से मीठा । वह अख़बार के उस कोने को टटोलती जहाँ पाक- कला खंड के अंतर्गत नए-नए व्यंजन बनाने की विधि दी जाती थी । कभी सामने वाली भाभी से गृहशोशा , सरिता और ऐसी दूसरी पत्रिकाएँ माँग लाती जिनमें से पढकर हर रोज़ नया-नया खाना बनाती और पूरे परिवार की वाहवाही लूटती । धीरे-धीरे यह दायरा बढ़ा । पहले पास- पड़ोस में , मोहल्ले  में और  फिर विशाखा की पाक – कला के चर्चे रिश्तेदारी में भी होने लगे ——

भई , क्या ज़ायक़ेदार व्यंजन बनाती है महेंद्र सिंह की लड़की…. क्या अचार , क्या सब्ज़ियाँ और मिठाइयों का तो जवाब ही नहीं, एक बार हलवाई फेल हो जाए पर विशाखा नहीं । जिस घर जाएगी, माँ अन्नपूर्णा का हमेशा आशीर्वाद बना रहेगा वहाँ । 

पर माँ अक्सर कह देती—-

विशाखा, खाना तो सभी पका लेते हैं बेटा ! लड़कियों को अपने पैरों पर खड़े होने की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए । देख ज़रा अपनी छोटी बहनों को, अभी से ही एक ने अध्यापिका बनने का सपना देख लिया और दूसरी ने भी लक्ष्य निश्चित कर रखा है ।मैं चाहती हूँ कि तू भी किसी की मोहताज न रहे ।

हाँ  माँ, मैं भी कुकिंग में अपना करियर बनाऊँगी । होम साइंस तभी तो ली है । क्यों चिंता करती हो …. देखना जब डिब्बों  में आपकी बेटी के हाथों की बनी मिठाइयाँ और दूसरी चीज़ें बाज़ार में बिकेंगी तो आपका मन खुश हो उठेगा । और सब लोग मुझसे आर्डर पर सामान मँगवाएँगे ।

देखते ही देखते विशाखा जी ने  ग्रेजुएशन पूरा  किया और उनके लिए बहुत ही अच्छा रिश्ता आ गया । 

माँ, पर अभी तो मुझे एम० एस० सी० होम साइंस करनी है, अपना करियर बनाना है । आप ही तो कहती थी कि सबको अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए ।

विशाखा, बहुत ही बढ़िया रिश्ता है बच्चे! तेरे बाबूजी ने बात कर ली है वे लोग तेरी पढ़ाई को पूरी करवाएँगे और तू जो करना चाहती है तेरी हर इच्छा पूरी करवाएँगे ।दो साल बाद विनीता की भी शादी करनी है, फिर इन छोटों की ।

विशाखा जी को सास- ससुर के रुप में माता-पिता ही मिल गए । उन्हें पढ़ाई- लिखाई के लिए पूरी छूट दी गई । परिवार भी ज़्यादा बड़ा नहीं था । कॉलेज में दाख़िला आसानी से मिल गया पर जब

उनकी फ़ाइनल परीक्षा में दो महीने शेष थे , सास को लकवा मार गया और चाहते हुए भी वे कॉलेज न जा सकी । केवल परीक्षा देने गई और अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी की । उसके बाद करियर तो भूल गई । फिर बच्चे और दूसरी ज़िम्मेदारी । कभी-कभी पति कहते—

विशाखा, तुमसे और माँ- बाबूजी से किया गया वादा पूरा न कर सका पर क्या करुँ…. माँ की बीमारी के कारण मजबूरी ही ऐसी आ गई ।

नहीं जी , ऐसा दुबारा मत कहना । मैं बहुत खुश हूँ ।

पर उनके पति जानते थे कि विशाखा जी को कुकिंग को करियर के रुप में अपनाने का कितना शौक़ था । बस जीवन चलता गया और वक़्त के साथ उनकी कुकिंग घर और रिश्तेदारी तक ही सिमट कर रह गई । 

अम्मा…अम्मा! क्या सोच रही हो ? सामान का पर्चा दे दो जो बुआ के घर भेजना है ।

पोते कुणाल की आवाज़ से उनका ध्यान टूटा और उन्होंने वो पर्चा पकड़ाया जो थोड़ी देर पहले बेटे से लिखवाया था ।हमेशा की तरह उन्होंने बेटी आरती के पास भेजने के लिए तिल के लड्डू और गाजर का हलवा तैयार कर दिया और बहू से बोली—-

बेटा ! आरती के लिए पैक कर देना और बचा हुआ सामान कुणाल के दोस्त के लिए भेज देना , कह रहा था कि अम्मा आपके हाथ का मीठा उसे भी चखाना है ।

दो महीने बाद ही विशाखा जी को ग़ाज़ियाबाद बेटी आरती के घर कुछ दिनों के लिए जाना पड़ा क्योंकि उसे एक महीने की किसी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ जाना पड़ा और  वह बच्चों को अकेले छोड़कर जाना नहीं चाहती थी —-

भाभी ! राकेश तो बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं , ना तो टाइम पर उठने के लिए कहेंगे और ना पढ़ने के लिए… प्लीज़ माँ को भेज दो । 

विशाखा जी के पहुँचते ही दामाद राकेश और बच्चों के मज़े आ गए । रोज़ नई फ़रमाइशें, हर रोज़ पार्टी । 

नानी , आपके आगे तो बडे-बड़े शेफ़ पानी भरते हैं । आपने कुकिंग को अपना करियर क्यों नहीं बनाया ?

अचानक दामाद के लिए भरवाँ मिर्च का अचार डालती विशाखा जी के हाथ रुक गए जैसे उनकी दुखती रग पर किसी ने हाथ रख दिया हो । जिस बात का ज़िक्र हुए बरसों बीत गए थे आज उसे सुनकर दिल में टीस सी उठी —-

हाँ बेटा , सपना तो कभी मैंने भी देखा था पर …. शायद ईश्वर की मर्ज़ी कुछ ओर थी ….

क्या बात है नानी ? आप इतना उदास क्यों हो गई, बताइए ना नानी , आपको मेरी क़सम …अपने सूर्यांश को तो आप अपना दोस्त कहती हो नानी …

और फिर विशाखा जी ने उस दीपावली के दिन बनाए हलवे से लेकर अपना सपना धेवते को सुना दिया ।

तो क्या हुआ आप अब अपने सपने को पूरा कीजिए । अपने पैरों पर खड़े होकर दिखा दीजिए कि आप किसी की मोहताज नहीं हैं….

पागल है अब सत्तर साल की होके अपना करियर बनाऊँगी? वैसे एक बात बताऊँ, तेरे नानाजी ने मुझे कभी किसी का मोहताज नहीं रहने दिया… हर महीने की तनख़्वाह मुझे देते थे और किराया भी मुझसे लेते थे । पता है क्या कहते थे , “ भई हम तो विशाखा जी के मोहताज हैं , ऑफिस के लिए जो जेबखर्च देती है, ले लेते हैं ।”

हा..हा…हा , आप देखती जाइए । आपका  जो सपना मेरे नानाजी पूरा न कर पाए , मैं उसे पूरा करूँगा ।

विशाखा जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा पर वे उसकी कही बातों का मतलब ना समझ सकी । 

तक़रीबन पाँच/ छह महीने बाद सूर्यांश का फ़ोन आया——

नानी , पाँच किलो तिल के और तीन किलो बेसन की पिन्नी बना दीजिए, मुंबई से आपको ऑनलाइन फ़र्स्ट ऑर्डर मिला है  विद् पेमेंट । सॉरी नानी!  मैंने आपकी वेबसाइट बिना आपकी परमिशन के बनाई थी । मैं और मम्मी आज रात तक आपके पास पहुँच रहे हैं । सब साथ बैठकर पैकिंग और प्रिंटिंग के बारे में डिसाइड करेंगे । 

पर बेटा, सुन तो ….. ओह फ़ोन रख भी दिया । 

शाम तक आरती अपने बेटे के साथ पहुँच गई और गेट खुलते ही सीधे माँ के पास कमरे में पहुँच कर उनके हाथों को लेकर ख़ुशी से उन्हें घुमाने लगी —-

ए..ए..ए आरती , रुक बेटा चक्कर आ जाएगा, गिर पड़ूँगी । 

माँ, आज हम सब बहुत खुश हैं । आख़िरकार आपने अपना करियर बना ही लिया ।

आरती , चुप कर बेटा । अब कैसा करियर? अमित और अल्पना ने सुन लिया तो क्या कहेंगे? शैतान लड़के ! ये तूने कैसे किया ? 

नानी , सब जानते हैं सिर्फ़ आपके । कुणाल भैया, तनवी दीदी मामा-मामी सब …. और सबने मेरी बहुत हेल्प की । बाक़ी कमाल गूगल बाबा और कंप्यूटर , आजकल सब संभव है बस करने का जज़्बा होना चाहिए, और वो जज़्बा मेरी ग्रेट मोस्ट टैलेंटड नानी में कूट-कूट कर भरा है । 

तभी विशाखा जी को लगा मानो उनके पति कह रहे हो —-

आख़िर तुमने कुकिंग को अपना करियर बना ही लिया , अब तो जमाने को तुमने अपना मोहताज बना लिया क्योंकि तुम्हारे हाथ का स्वाद चखने के बाद , उनका गुज़ारा नहीं होगा । 

तभी बेटे अमित और बेटी आरती ने माँ के कंधों को पकड़कर कहा—-

सॉरी माँ, हम आपके बच्चे होकर आपके सपने को पूरा न कर सके पर इस सबसे छोटे सूर्यांश ने बाज़ी मार ली ।यह सही है कि हम सबने मिलकर उसकी सहायता की , रेट फिक्स करने में , मिठाइयों के नाम बताने में और कुणाल ने दूसरी औपचारिकता पूरी करने में …. 

तभी बहू अल्पना और दामाद राकेश ने कहा—-

भई , अपनी जानकारी के अनुसार हमने भी सहायता की है । कोई हमारा भी तो नाम लो । 

और सब खिलखिला कर हँस पड़े । 

करुणा मलिक 

# मोहताज

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