वैसे तो अपनी माँ के पास जाना और समय बिताना हमेशा ही अपना एक सुखद अहसास होता है , पर इस बार कुछ खास था l हुआ यु कि हम माँ और बेटी अपनी बातो का लुफ्त ले रहे थे कि तभी घंटी बजी माँ उठ कर बहार देखने गयी और वही से बोली देखो कौन आया है , मै भी पूरी उत्सुकता से बहार आई तो देखा मेरी बुयाजी अपने दोनों हाथो में थैले पकड़े मुस्करा रही थी और मुझे देख कर तो बहुत ही खुश हो गयी ”
अरे वह बिटिया आई है ” और मेरा चेहरा चुम लिया l माँ के घर जाने में कुछ हो न हो पर एक अच्छाई और सच्चाई जरूर है कि आप हमेशा छोटे ही होते हो, चाहे आपके बच्चे कितने भी बड़े हो जाये , चाहे आपकी कितनी भी उम्र हो जाये पर उनके सामने आप छोटे ही होते हो , और ये छोटेपन का अहसास आपको गुस्सा करने , प्यार पाने और कुछ बचकानी हरकत करने का लुफ्त उठाने में बहुत ही बड़ा रोल अदा करता है l खैर वापस बुयाजी पर आती हु ,
यु तो उनके साथ खास समय नहीं गुजरा था , जिस तरह हर परिवार मे कुछ न कुछ उठा पटक चलती रहती है वैसे ही यहाँ भी चलती रहती थी , बुयाजी के सम्बद्ध मेरे पिता के साथ बहुत मधुर नहीं थे तो स्वतः माँ के साथ अच्छे होने का प्रशन ही नहीं होता था , और इसका नतीजा ये था कि उनका जब मेरे पिता जीवित थे तो आनाजाना न के ही बराबर था l
पता नहीं क्यों ये लोग भूल जाते है कि अपनी अपनी जिद के आगे वो कुछ रिश्तों को पनपने से पहले ही मार देते है , कुछ ऐसा ही यहाँ हुआ था , पर इस बार बुयाजी को देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा l इस बार मेरा उनसे काफी बातो का आदान प्रदान हुआ , और वो मुझे एक बहुत ही खुश इंसान के रूप में नज़र आई , अब तक तो मेरा भी जिंदगी का काफी सफर हो चूका था , कई उतार और चढ़ाव देख लिए था , ज्यादातर तो मेने लोगो को दुखी ही देखा था
कभी किसी बात पर तो कभी किसी बात पर , किसी को मनचाही चीज़ नहीं मिली , तो किसी का कुछ खो गया या उनका जिंदगी कर सफर दुःख भरा रहा , पर लोगो को कुछ कम ही देखा , कभी कोई किसी मानसिक पीड़ा से ग्रसित है तो कही कोई भविषय के तनाव से त्रस्त है , पर एक बात तो ज्यातर के साथ है और बढ़ती उम्र में तो दुःख का साथ और बढ़ जाता है l पर यहाँ तो मज़ेदार बात है उम्र का साथ है पर तनाव नदारद है , चहरे पर झुर्रियों क़ी बारात है पर हँसती हुयी , उम्र तो उनकी कम से कम होगी ८० से ऊपर , शायद ८५ या ८६ , पर एकदम सीधी, मुस्कराहट चहरे क़ी परमानेंट साथी ,
उनको देख कर मुझको भी बहुत अच्छा लगा, पर इस बार बुयाजी को देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा l इस बार मेरा उनसे काफी बातो का आदान प्रदान हुआ , और वो मुझे एक बहुत ही खुश इंसान के रूप में नज़र आई , अब तक तो मेरा भी जिंदगी का काफी सफर हो चूका था , कई उतार और चढ़ाव देख लिए था , ज्यादातर तो मेने लोगो को दुखी ही देखा था कभी किसी बात पर तो कभी किसी बात पर , किसी को मनचाही चीज़ नहीं मिली , तो किसी का कुछ खो गया या उनका जिंदगी कर सफर दुःख भरा रहा , कभी कोई किसी मानसिक पीड़ा से ग्रसित है तो कही कोई भविषय के तनाव से त्रस्त है , पर एक बात तो ज्यातर के साथ है और बढ़ती उम्र में तो दुःख का साथ और बढ़ जाता है l
पर यहाँ तो मज़ेदार बात है उम्र का साथ है पर तनाव नदारद है , चहरे पर झुर्रियों क़ी बारात है पर हँसती हुयी , उम्र तो उनकी कम से कम होगी ८० से ऊपर , शायद ८५ या ८६ , पर एकदम सीधी, मुस्कराहट चहरे क़ी परमानेंट साथी , उनको देख कर मुझको भी बहुत अच्छा लगा l इस बार पहली बार मुझे एहसास हुआ क़ी उनकी जिंदगी भी एक दुखभरी कहानी के अलावा कुछ भी नहीं , जवानी में ही दो बच्चो क़ी माँ बना कर उनके दुजीया पति स्वर्गः सिधार गए थे ,
साथ किसी ने नहीं दिया , बस उनका एक सहारा थे क़ी उनका घर शिव मंदिर के पास था और वो विद्वा होने के बाद पूरी तरह से शिव भक्त हो गयी थी १ पड़ी लिखी थी नहीं दो लडकिया , क्या करे जब कुछ समझ नहीं आया तो बस शिव दरबार , और सुबह शाम बस मंदिर का काम १ ये दुनिया भी अजीब है , हर कोई कुछ न कुछ हमेशा गड़बड़ करता रहता है
और जब छूप कर पाप करता है तो उससे सबके सामने अच्छे काम करके पाप धोने क़ी इच्छा भी रखता है और इस नाते हर कोई , कोई न कोई रास्ता ढूनता रहता है १ यहाँ बुयाजी एक तो पक्की ब्राह्मणी और वो भी विद्वा और ऊपर से मंदिर क़ी सेवा करने वाली , बस रास्ता खुल गया , मदद करने वालो क़ी लायन लग गयी , उनका घर दान दक्षिणा से चल निकला , लड़कियों क़ी शादी भी अच्छी हो गयी १ और अब तो वो अपनी जिम्मेदारियों से भी निर्मुक्त हो गयी पर उनकी ये दिनचर्या नहीं टूटी और बिना रुके उनका जीवन अपने ८५ ये ८६ साल पूरा कर गया , अब माँ भी अकेली हो चली थी ,
उनके भी साथ के लोग धीरे धीरे कर के ऊपर प्रस्धान कर रहे थे और उन दोनों को ही अपने समय क़ी बात करने का सहारा हो चला था , चाहे अच्छा समय था या बुरा , चाहे दोनों में वैचारिक मतभेद थे पर वो उन दोनों के थे , जिसे वो दोनों ही समझ सकती थी , और अब वो दोनों बहुत खुस भी होती थी साथ मिल कर , क्युकी बुयाजी मंदिर नहीं छोड़ सकती थी ,
इसलिए वो सिर्फ एक या दो दिन ही माँ के पास रूकती थी १ इस बार मै भी मिल गयी तो दोनों को मज़ा ही आ गया १ बात करते करते माँ तो सो गयी पर मै और बुयाजी जाग रहे थे १ मैने पूछा क़ी आपकी दिनचर्या क्या होती है और आप इस उम्र में अकेली क्यों रहती हो माँ कितनी बार कह चुकी है क़ी यहाँ आ कर रह लो , आप क्यों नहीं आती ? वो हस पड़ी और वोली मै अकेली कहा हु मेरे सा बस उनकी ये कृपा ही बहुत है क़ी मै किसी के सहारे नहीं हु ,
मै रोज सुभह ४ बजे क़ी आरती मे जाती हु फिथ तो भोले बाबा है जब कठिन समय मै उन्होंने मेरे साथ न छोड़ा तो अब क्या छोड़ेगे और मै अपने हिसाब से ही रहती हु ,र अपना दोपहर का खाना खुद बनातीं हु , एक मेरे पास कमरा है , जिसमे पंखा भी है , खूब बढ़िया खाना जो खाने का मन हो बना लती हु , बस एक ही बार भोजन करती हु , फिर शाम क़ी आरती और समय से सो जाती हु १ मुझे हसी आ गयी , मैने बोला वहा, क्या बात है तो उन्होंने बोला तुझे पता है क़ी “परसंहारे कु सपनेहु सुख नहीं ” मैने कहा , ये क्या मतलब – वो हस के बोली इसका मतलब है क़ी अगर आप दुसरो के सहारे पर हो तो आप सपने में भी सुखी नहीं हो सकते , मेरे तो सारे काम भोले बाबा ने कर दिए है ,
अब मै पीछे वाले कल का नहीं सोचती न आगे वाले पल का , अगर किसी को मरी जरुरत होती है तो मै चली जाती हु पर मै अपना सहारा खुद ही हु , फिर वो हस कर कहती है “चल छोरी, तूने मुझे इतना जगा दिया अब सोने दे और वो देखते ही देखते नींद के आगोश में चली गई और मुझे नींद नहीं आ रही थी पर मै मन ही मन मुस्करा जरूर रही थी और सोच रही थी क़ी खुसी क़ी कोई कीमत नहीं होती ये तो खुद क़ी सोच और खुद के ही अंदर होती है , और मुझे