*बुलाती हैं जड़ें* – सरला मेहता

राणा विजयबहादुर यूँ तो इंग्लैंड से पढ़लिख कर साहब बन कर आए थे। किंतु सुकून उन्हें अपने गाँव में जाकर मिला। और पुश्तैनी ज़मीन पर खेती को प्राथमिकता दी।  बेटा रणवीर भी कई बार कह चुका है, ” दाता हुजूर ! आप भी शहर चलो और देखो आपके पोते पोती कितना आगे बढ़ चुके हैं। … Continue reading *बुलाती हैं जड़ें* – सरला मेहता