बुखार का वो एक दिन – पिंकी नारंग

जरा मेरा मोबाइल उठा कर दे दो, कब से बज रहा है? एक हाथ से कमर पकड़ते हुए घुटी घुटी आवाज मे बिस्तर पर लेटे हुए वर्षा ने मोबाइल पर गेम खेलते हुए पति चन्दर से कहा |

  जैसे ही वर्षा का मोबाइल बजना बंद हुआ पति की छठी कामचोर इंद्री जागृत हो कर पूछने लगी “क्या चाहिए जानेमन? बीमार हो ना तुम आराम करो, मै हूँ ना तुम्हारा दास, तुम बस जल्दी ठीक हो कर अपनी रियासत संभालो थक गया हूँ तुम्हें ऐसे देख कर |

वर्षा ने कम्बल मे मुँह करते हुए धीरे से अपने आप से कहा “आज पहला दिन है बुखार का, कुछ किया भी नही और फिर भी इतनी थकान | तभी वर्षा को लगा चन्दर किसी से बात कर रहे है रोने जैसी आवाज बना कर बोल रहे थे “बेचारी बेसुध सी पड़ी है ” नन्द जी का फ़ोन था वो सांत्वना देते हुए कह रही थी “इतना उदास क्यों है? मौसम बदल रहा है हो जाता है ऐसे, अभी ठीक हो जाएगी |”

 बात तो करवा जरा वर्षा से वर्षा ने फ़ोन लेते हुए घबरा कर कहा “प्रणाम जिज्जी ” खुश रहो बस वर्षा बीमार ना हुआ करो तुम, हमारा भाई देखो कैसे हो जाता है, अपना नही तो उसका ख्याल रखा करो, जान बसती है उसकी तुममें, कुछ अच्छा सा बनाओ भाई और खिलाओ हमार छुटका को “| जी जिज्जी बस जा ही रही थी रसोई मे |

वर्षा ने आग्नेय नेत्रों से चन्दन को घूरते हुए उठने की कोशिश की पर वो मस्त हो कर अभी भी मोबाइल पर गेम खेल रहा था |

वर्षा को बिस्तर छोड़ता देख चन्दर का चेहरा खिल गया अपनी खुशी छिपाता हुआ उसके दोनों कंधे पकड़ कर बोला “ना ना आज नही जाओगी तुम किचन मे, या तो खाना बाहर से आएगा, या मै बनाऊंगा तुम्हारे लिए “|

  किचन मे नही वाशरूम जा रही हूँ वर्षा ने भी उसके सपने तोड़ते हुए कहा और बाजार का खाना तो नही खा सकती तुम खिचड़ी बना लो वर्षा को भी लगा जब उसकी सेवा करने के नाम पर चन्दर ने ऑफिस से छुट्टी भी ली है तो थोड़ी सेवा तो करवा ही ली जाए |ठीक है धीरे से चन्दर बोला

हल्का फुल्का काम समेटते हुए जब वर्षा कमरे मे आयी तो चन्दर निंद्रा के आगोश मे ऐसे समाया हुआ था जैसे किसी दिहाड़ी मजदूर की तरह अपनी बीमार पत्नी की सेवा की हो वर्षा मन मार कर रसोई मे खिचड़ी पकाने चल दी |

पिंकी नारंग

मौलिक

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