बेटा… तुम लोग कहीं जा रहे हो क्या..? मालती जी ने कहा…
बस टोक दिया ना..? क्या मां..? आपसे चुप नहीं रहा जाता है ना..? उम्र हो गई है तो बस अपना ध्यान भजन कीर्तन में लगाओ ना… हम एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहे हैं खाने-पीने का सारा सामान रख दिया है और लक्ष्मी आकर घर की सफाई कर जाएगी… मालती जी के बेटे अनंत ने कहा
मालती जी: बेटा एक हफ्ते के लिए जा रहे हो और मुझे बताना जरूरी भी नहीं समझा..? वह तो मैंने खुद पूछ लिया वरना मुझे तो पता ही नहीं होता और मैं व्यर्थ ही चिंता करती…
सिमरन: चिंता..? चिंता किस बात की मम्मी जी..? खाने पीने का सामान रख तो दिया है… काम के लिए लक्ष्मी आ ही जाएगी… आराम से घर पर रहिए… बेटा बहू कहां जा रहे हैं..? क्या कर रहे हैं..? इसमें फिर क्यों पंचायती करनी..?
मालती जी: बहू पंचायती नहीं है यह.. हम सभी परिवार है तो हमें एक दूसरे की परवाह होती है, इसलिए पूछा.. अगर तुम लोगों को बुरा लगा तो माफ कर दो मुझे… जाते वक्त मैं तुम दोनों का मिजाज खराब नहीं करना चाहती..
सिमरन: खराब करके कहती है मिजाज खराब नहीं करना चाहती… मम्मी जी बुढ़ापा आपका आया है, पर हम तो जवान है ना.. अभी हम नहीं घूमेंगे फिरेंगे तो क्या आपकी उम्र में जाएंगे..? परिवार है तो अपने परिवार की ख्वाहिशों को भी समझना चाहिए ना..?
मालती जी: कहा तो गलती हो गई मुझसे… जो पूछ लिया.. अब जाओ तुम दोनों… उसके बाद वे चले जाते हैं.. जाने के बाद वे दोनों एक बार भी मालती जी की सुध नहीं लेते.. एक हफ्ते बाद वह लौट आते हैं पर उनका रवैया मालती जी के लिए बड़ा ही रुखा होता है… कुछ दिनों बाद सिमरन की मां बनने की खबर से घर में खुशियों की लहर दौड़ जाती है.. सिमरन की मां नहीं थी इसलिए मालती जी अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करती थी, कि सिमरन को किसी भी चीज की कोई तकलीफ ना हो.. खुद घुटनों के दर्द से परेशान थी पर सिमरन को समय-समय पर पौष्टिक खाना देना वह कभी नहीं भूलती थी… सिमरन भी इस सेवा के मजे ले रही थी…
एक रोज आनंद की छुट्टी थी… वह और सिमरन अपने कमरे में बैठे बातें कर रहे थे.. मालती जी छुहारे का दूध बनाकर सिमरन को देने आई, पर उनके कदम कमरे के बाहर ही रुक गए, क्योंकि वह अपने बेटे बहू की बातें सुनकर हैरान हो गई और उनके अंदर चल रहे विचार को सुनने के लिए वही दरवाजे पर खड़ी हो गई..,
जहां अनंत कह रहा था… देखा सिमरन तुम हमेशा कहती थी की मां बस बोझ है हम पर, हम उनके चक्कर में कहीं आ जा नहीं पाते पर अब उन्हीं के वजह से हम दोनों चिंता मुक्त है और तुम निश्चिंत रहो डिलीवरी के बाद भी तुम्हें हमारे बच्चे के लिए मुफ्त की आया मिल जाएगी… अरे एक बच्चे को उसकी दादी से बेहतर कोई आया क्या संभालेगी..?
सिमरन हंसकर बोली… सही कह रहे हो आप.. मम्मी जी का फायदा अब पता चल रहा है मुझे…
अनंत: और आगे भी पता चलेगा… फिर दोनों खिल खिलाकर हंस पड़े
बाहर खड़ी मालती जी को बड़ा दुख हुआ और उन्हें गुस्सा भी आ रहा था… उन्होनें जिस बेटे को अकेले पाल पोस कर बड़ा किया, क्योंकि आनंद के पापा बहुत पहले ही सड़क दुर्घटना के शिकार होकर चल बसे थे… तब से उनकी नौकरी घर और बेटे को अकेले संभाला और आज वही बेटा उसे आया कहकर अपने पति पत्नी के साथ मिलकर उसके परवरिश को शर्मिंदा कर रहा है.. पर वह इस बात को जाने नहीं देगी… सही वक्त आने पर इसका जवाब देगी.. यह सोचकर उन्होंने कुछ ठाना… समय बितता गया और सिमरन के डिलीवरी का समय नजदीक आ गया… एक दिन सुबह-सुबह मालती जी अपना बैग लिए कहीं निकल रही थी… तभी अनंत उनसे पूछता है… मां आप कहां जा रही हो..?
मालती जी: टोक दिया ना पीछे से..? तुम लोगों को भी चैन नहीं.. जवान हो ,तो अपने काम में व्यस्त रहो… यह बुढ़िया कहां आ जा रही है इसे तुम दोनों को क्या लेना देना..? वह मैं अपनी टोली के साथ चार धाम की यात्रा पर जा रही हूं… तीन-चार महीने बाद आऊंगी
अनंत: तीन-चार महीने..? और आपने हमें बताना जरूरी भी नहीं समझा..?
मालती जी: पर मैं इस घर में एक पुराने सामान की तरह ही तो हूं… ना मेरे होने या ना होने से किसे फर्क पड़ता है..? तुम भी तो कभी भी बता कर गए मुझे..?
सिमरन: तो उसी का बदला ले रही है आप..? चलो हमारी छोड़िए आपको पता है ना कि कुछ दिनों बाद ही मेरी डिलीवरी है.. ऐसे में आप जा रही है सब कुछ छोड़कर..?
मालती जी: अब तुम्हारी ऐसी हालत है तो मैं तीर्थ पर ना जाऊं..? उम्र हो गई है कब क्या हो जाए..? तो क्या मैं तुम्हारी वजह से पुण्य भी न कमांऊ..? वैसे भी तुम्हारी डिलीवरी के लिए डॉक्टर है, अस्पताल है, अनंत है… मेरी क्या जरूरत..?
मालती के इस बात से दोनों को अपनी कही हुई वह बात याद आ जाती है जब वह एक हफ्ते के लिए बाहर जा रहे थे और मालती जी के सिर्फ इतना पूछने पर कि उन्होंने, उन्हें क्यों नहीं बताया..? उन्होंने ऐसे ही उन्हें सुनाया था, इसलिए दोनों खामोश हो जाते हैं… फिर मालती जी कहती है… बेटा बुढ़ापा सभी को आना है…
पर जब अपने हम अपने बूढ़े मां-बाप को बोझ समझने लगते हैं… तो उन्हें अपने लिए भी तैयार होना चाहिए, क्योंकि तुम्हारा बच्चा वही देखेगा और इतना जान लो तुम्हारी अगली पीढ़ी इससे एक कदम आगे ही सोचेगी… अपनी मां को आया बनाना चाहता था ना..? अरे बेवकूफ तेरी मां तेरी भी आया थी कभी और अपने पोते की भी बन ही जाती, पर वह खुशी-खुशी…
पर अब उसे किसी की आया बनना कबूल नहीं, क्योंकि वह अपनी अगली पीढ़ी को यह बताना चाहती है कि वह बुजुर्ग है तो क्या हुआ..? वह अपनी किस्मत पर रोने वालों में से नहीं है, ईंट का जवाब पत्थर से देने वालों में से है…
दोस्तों हम अपने घर के बुजुर्ग को बस समय-समय पर खाना पानी देकर, उन्हें दिन भर अकेला ही छोड़ देते हैं… पर यह बात उन्हें बहुत खटकती है… यह उनका आखिरी समय होता है जब उन्हें हमारे सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत होती है… खाना पीना तो वैसे भी इस समय अच्छा नहीं लगता… बस वह तो दो मीठे बोल के ही प्यास में तड़पते रहते हैं…
पर अफसोस आज की पीढ़ी ना वह कभी समझती है और ना ही कभी समझेगी… आज सेवा कर लो अपने बुजुर्ग माता-पिता की, क्योंकि कल वह दिन होगा जब वह तुम्हारे आसपास नहीं होंगे… सिर्फ उनकी बातें और यादें होंगी… तब तुम्हें उनकी कमी बहुत खलेगी, लेकिन तब अफसोस… तुम चाह कर भी उन्हें अपने पास नहीं ला सकते…
धन्यवाद
#बुढ़ापा
रोनिता