ब्रांडेड सोच – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

#गुरूर#

ब्रांडेड सोच

जब पंद्रह लाख की कार दरवाजे पर खड़ी हुई तो मिताली के चेहरे की पुलक आंखों की चमक और ठसक देखते बनती थी।

एक गुरूर सा छा गया था उसके चेहरे पर ही नहीं शरीरके हर हाव भाव पर भी।

कार के आते ही मानो सब कुछ बदल ही गया था।चलने का ढंग बात करने का ढंग यहां तक कि कपड़े पहनने का ढंग भी।शायद पंद्रह लाख की कार की शान में कोई गुस्ताखी ना हो जाए इसलिए जरूरी था उसकी शान का मान रखना और इसीलिए कार के अनुसार ही बदलाव परिलक्षित होने लगे थे।कार ने नहीं कहा था लेकिन ये भी भला कोई कहने वाली बात थी क्या।ये तो उस कार में बैठने वाले लोगों को अपने आप समझ जानी चाहिए थी।

नहीं जी ये क्या पहन लिया आपने इन कपड़ों में आप ब्रांडेड कार में बैठ कर चलेंगे ।विशाल बेटा चल पहले मॉल चलकर तेरे पिता के लिए ब्रांडेड कपड़े खरीद लाते हैं।इनके पास तो एक भी ढंग की शर्ट नहीं है…मिताली के कहते ही विशाल ने कुछ नहीं कहा जी मां अभी चलिए कहता झटपट कार निकाल ली थी।

विक्रांत जी अपनी शर्ट देख रहे थे …. अरे श्रीमती जी शर्ट कौन देखेगा अब कार के सामने आप खाम खांह परेशान हो रही हैं..!देखिएगा कार के कारण हमारी ये शर्ट भी शानदार लगेगी सबको… चुटकी ली थी उन्होंने और फिर रही सही कसर पूरी करने के लिए आप तो हैं ही ..!!

विशाल की शादी के पहले ही तिलक पर  श्रीमती जी की सबसे बड़ी और अंतिम डिमांड ये कार ही थी जिसके लिए उन्होंने सारे जतन कर डाले थे किसी की नहीं सुनी थी उन्होंने। पता नहीं बेटे की शादी में कार ही चाहिए … मानो उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रश्न बन गया था।

…. हम लड़के वाले हैं मेरा लड़का विलायत से पढ़कर आया है इतना कमाता है जबकि लड़की कुछ नही कमाती तो लड़की वालों को इतना मान तो रखना ही पड़ेगा ।आखिर इतना बढ़िया घर और वर दोनों यूं ही मिले जा रहे हैं…. अकाट्य तर्क थे श्रीमती जी के विक्रांत जी निरुत्तर होते गए थे या फिर उन्होंने स्वयं ही हथियार डाल दिए थे धर्मपत्नी के सामने आखिर सास की पदवी से सुशोभित होने वाली थी।

बिचारा विशाल..! उसकी तो जुबान ही बंद करवा दी थी मां ने। तू तो चुप ही रह हर बात पे टांग ना अड़ाया कर .. एक तो अपने पसंद की लड़की ला रहा है मैने कुछ नही कहा ।एक ही तो अरमान है मेरा लड़की वाले एक अदद कार भेंट करें ….!अब  इतनी भी इज्जत नहीं है क्या तेरी मां की तेरे ससुराल में..!!

विक्रांत जी को पत्नी की अनपेक्षित मांग भीतर से बेचैन कर रही थी।भला समाज और परिवार क्या सोचेगा हम इतने लालची हो गए..!!फिर आने वाली बहू भी हम लोगो को मन ही मन कोस रही होगी.. क्या आजीवन बनने जा रहे रिश्तों की नींव कमजोर नहीं हो जायेगी..!!

लेकिन मिताली जी तो कार की कल्पना में खोई हुई थीं ।हमारा हक बनता है आखिर हम लड़के वाले हैं.. यह सूत्र वाक्य उन्हें उकसा रहा था।

वादे के मुताबिक लड़की वालों ने चमचमाती कार तिलक वाले दिन ही दरवाजे पर खड़ी करवा दी थी..!

जमीन पर पांव नहीं पड़ रहे थे मिताली जी के।

देखा मेरा लड़का है ही लाखो में एक तभी तो लड़की वाले बिना ना नुकुर के मेरी बात मान गए।अरे ऐसा लड़का उन्हे मिलेगा भी कहां चिराग लेकर ढूंढने निकलेंगे तब भी नहीं दिखेगा… !! सारे मोहल्ले में गाती फिर रही थीं।मोहले वाले भी क्या कहते।साक्षात प्रमाण शानदार कार आंखों के सामने जो थी।

विक्रांत जी बहुत आश्चर्य में थे की आखिर लड़की वालों ने बिना हील हुज्जत के हमारी बात मान ली ।अब तो वह और भी अपराधबोध से ग्रसित हो गए थे।

सारे रिश्तेदारी खानदान भर में चर्चे हुए ।….बढ़िया लड़की वाले पा गए ये लोग इतनी बड़ी डिमांड शादी के पहले ही पूरी कर दिए किस्मत हो तो विशाल जैसी हो.. अरे ऐसा भी क्या लड़के वालों का रौब आज के जमाने में सब बराबर हैं लड़का लड़की .. इन लोगों को इस तरह की डिमांड करनी ही नही चाहिए थी हद है लालच पने की …अपने लड़के की बोली लगा रही है ..!!जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं… अब लोगों के मुंह पे ताले कौन लगाता।

ताला तो लगा लिया था विक्रांत जी ने अपने मुंह पर चुप थे विक्रांत जी । विशाल उनका गुरूर था उनकी आंखों का तारा था लेकिन मां की यह बात इस तरह खामोशी से मान लेगा इस बात का अंदाजा नहीं था उन्हें ।

विशाल मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी आखिर वो लड़की हमारे घर आयेगी हमारे परिवार का हिस्सा बनेगी।इस तरह के मोल भाव के आधार पर तुम अपनी गृहस्थी की नींव रखोगे।

पापा आप चिंता मत करिए मां की खुशी में खुश होइए विशाल  शांति से मुस्कुरा कर कह देता।

मां की बात नहीं है बेटा जिंदगी तुझे उस लड़की के साथ चलानी है उसकी नजरों में तेरी क्या इज्जत रहेगी ।अरे तूने खुद लड़की पसंद की है फिर ये डिमांड क्यों! उसे बहुत बुरा लगेगा ।तेरी आने वाली जिंदगी में यही बात जहर घोल देगी .. आने वाली बहू तेरी मां की और मेरी दोनों की इज्जत नहीं करेगी …पिता बहुत चिंतित थे उद्विग्न थे।

पापा क्या आप मां को समझा सकते हैं नहीं ना..!! फिर होने दीजिए जो हो रहा है बाद में क्या होगा मैं समझ लूंगा आप बिल्कुल चिंता मुक्त हो जाइए विशाल पिता को हर बार हौसला देता।

उसी नई कार में नई बहू को विदा कर घर ले आई थी मिताली जी।

मेहमानों की चहलपहल खत्म हो जाने पर पिकनिक का कार्यक्रम बन रहा था।

बहू तुझे बुरा तो नहीं लगा जब हम लोगों ने कार की डिमांड की… मौका मिलते ही विक्रांत जी ने नई पुत्रवधू से धीमे से पूछ ही लिया जो चिंता उन्हे  भीतर ही भीतर खाए जा रही थी..!पूछा तो धीमे से ही था लेकिन उनका स्वर थोड़ी दूर बैठी चाय पीती मिताली जी के कानों तक पहुंच ही गया था।इसके पहले कि वह कुछ डपट कर कहतीं पुत्र वधू की आवाज से रूक गईं।

नहीं पापा जी बुरा क्यों लगेगा ये तो हमारी अपनी ही कार है घर के लिए हम सबके उपयोग के लिए है बहू ने बेहद आदर से उत्तर दिया।

फिर भी तुम्हारे माता पिता जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ भी नहीं है ने हम लोगों के बारे क्या सोचा होगा ग्लानि का स्वर था विक्रांत जी का।

लेकिन इसमें सोचना क्या है पापा जी रुपए तो मेरे पति विशाल ने ही दिए थे मेरे माता पिता को एक पैसा भी खर्च नहीं करने दिया इन्होंने बहुत गर्व से बहू ने कहा तो विक्रांत जी उछल से गए क्या कह रही हो बहू तुम क्या ये सच है पूरे रुपए विशाल ने दिए हैं

जी पापा जी कार  लोन पर ली है।मेरे मां पिता जी से कह रहे थे आप लोग चिंता मत कीजिए ये तो मेरी शादी पर अपनी मां को मैं अपनी तरफ से तोहफा दे रहा हूं…. मंद स्मित से कह कर बहू ने सिर झुका लिया था।उसकी आवाज में अपने पति के प्रति सम्मान और गुरूर का भाव था।

कुछ कहने को उठती मिताली जी सामने से आते हुए पुत्र को देख कर रुक सी गईं।

विक्रांत जी ने आगे बढ़ कर अपने पुत्र को गले से लगा लिया था।भाव विभोर हो गए थे वह।मुझे गर्व है बेटा तुझ पर मेरे संस्कार व्यर्थ नहीं गए तूने सबकी लाज सबकी मान मर्यादा कितने गरिमा पूर्ण ढंग से  रख लिया। दोनों परिवारों के आपसी रिश्तों की नींव पुख्ता कर दी अपनी पत्नी के साथ विश्वास और सम्मान का नया अटूट रिश्ता कायम कर लिया।मुझे बहुत संतोष है।

मिताली जी पानी पानी हो गईं थीं।

बेटा मुझे माफ कर देना ..मैंने अपने अनमोल बेटे की कीमत मात्र एक अदद कार से आंक दी..मेरी अनुचित और नाजायज मांग को भी तूने सिर आंखों पर रख कर अपनी मां का मान सम्मान बढ़ाया और समझदारी से इस बात को संभाल लिया मुझे माफ कर दे बेटा मिताली जी पुत्र के गले लग कर रो पड़ीं थीं।

अरे मां चलो पहले मॉल चलकर पिता जी के लिए कपड़े खरीदने है फिर पिकनिक पर भी तो जाना है …. नहीं चलना है क्या .. हंसकर मां को थाम विशाल ने कहा तो मिताली जी झेंप ही गईं …. नहीं बेटा महंगे कपड़े महंगी कार मूल्यवान नही होते सबसे मूल्यवान होते हैं संस्कार और सोच… जिन्हें मैं भूल गई थी.. चलिए जी आप तो किसी भी शर्ट में खूब जंचते हैं मिताली जी ने मुस्कुरा कर विक्रांत जी की तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा  तो सबके साथ नई बहू के चेहरे पर भी सलज्ज मुस्कान दौड़ गई ..!

ये हुई ना हमारी श्रीमती जी वाली बात..!!श्रीमती जी आपकी ब्रांडेड कार ने तो नही लेकिन अब आपकी इस ब्रांडेड सोच ने मुझे नतमस्तक कर दिया .. मिताली का हाथ थामते विक्रांत जी के कदम बेटे के साथ कार की तरफ बढ़ गए थे..!!

लतिका श्रीवास्तव

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