आज मनोहर लाल जी बहुत खुश थे … आखिर बहुत दिनों बाद उनका फ़ौजी बेटा चंदन घर जो आने वाला था।
गांव में उनका अपना छोटा सा घर था…हंसमुख पत्नी अब हमेशा बीमार रहने लगी थी क्योंकि चंदन उनका इकलौता बेटा बहुत मन्नतों के बाद हुआ था … और उसके फ़ौज में चले जाने की वजह से वो दुखी रहते रहते बीमार ही हो गई।
मनोहर जी खुद भी सेना में रहे थे और बेटे को भी बचपन से देश सेवा के इतने पाठ पढ़ाये कि चंदन में भी देश सेवा की भावना बचपन से ही बैठती चली गई।
कमला देवी अपने आंख के तारे को खुद से दूर भेजने के पक्ष में जरा भी नहीं थी….पर बेटे की जिद्द के आगे वो हार गयी….बेटा फौज में भर्ती क्या हुआ कमला देवी ने खाट ही पकड़ लिया।
आज सुबह जब चंदन ने फोन कर के पिता से बात की तो बोला ,“ मुझे छुट्टी मिल गई है मैं दो दिन में घर आने वाला हूँ , मॉं को बोलना अब चिन्ता नहीं करेंगी मैं उसके साथ ही रहूंगा…।”
मनोहर लाल जी पूरे गांव में घूम घूम कर सबको ये खबर दे चुके थे।
आज वो दिन भी आ गया जब मनोहर लाल जी के साथ साथ पूरा गांव अपने लाल चंदन सिंह के स्वागत की तैयारी में लगा हुआ था।पूरे गांव को गांव वालों ने ख़ुशी में रंगीन कागज के फूलों से सजा दिया था ।
अचानक गांव की सड़क पर हॉर्न सुनाई दिया ….सब चिल्लाने लगे चंदन आ गया चंदन आ गया….मनोहर लाल जी अपने बेटे को गले से लगाने को व्याकुल होकर आगे बढ़ने लगे ।
तभी दो जवान जीप से निकले और सिर झुकाए पूछने लगे ,“ मनोहर लाल जी कौन है? ”
मनोहर लाल जी आगे बढ कर बोले ,“जी मैं ही मनोहर लाल हूँ ,आज मेरा बेटा चंदन आने वाला था ….वो किधर है और आप सब ऐसे क्यों पूछ रहे? ”
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एक जवान सिर झुकाए उनके पास आया उन्हें प्रणाम किया और बोला,“जी हम उनको लेकर ही आये है…।”
दोनों जवान जीप के पास गये और एक ताबूत निकाल कर ले आए …तिरंगे में लिपटा वो ताबूत अनहोनी का संकेत दे चुका था।
मनोहर लाल जी ने कांपते हुए हाथों से ताबूत का ढक्कन हटाया और गश खाकर गिरने को हुये। गांव वालों के साथ साथ जवानों ने भी उन्हें सहारा दिया। जब मनोहर लाल जी ने अंदर देखा तो उनके होश उड़ गए….शहीद चंदन सिंह के शरीर के साथ एक बैसाखी रखी थीऔर एक लिफाफा भी था।
मनोहर लाल जी ने जल्दी से लिफाफा खोला और पढ़ने लगे।
मेरे प्यारे पिता जी
सादर चरण स्पर्श,
आपको जब ये खत मिलेगा मैं आपके सामने तो रहूंगा पर आपके गले नहीं लग पाऊंगा। याद है पिताजी मैंने उस दिन जब आपको फोन किया तो एक दोस्त की बात कर रहा था, जिसने अपना एक पैर दुश्मनों का सामना करते हुए गंवा दिया । मैंने जब उसको अपने साथ लाने के बारे में आपसे पूछा तो आपने कहा था,“बेटा हम उसकी देखभाल कैसे कर पाएंगे , तेरी मां भी हमेशा बीमार रहती हैं, वो हमपर बोझ बन जायेगा,ऐसा कर तू उसको लेकर मत आना हम खुद जैसे तैसे अपना ख्याल रख पाते है उसके आने से परेशानी बढ़ जायेगी,पिताजी मैं समझ गया था मैं आपलोगो पर बोझ बन कर रह जाऊंगा। खुद तो बैसाखी के बोझ तले दब गया आपसब को अब परेशान नहीं कर सकता इसलिए मैंने आपको इस बोझ से मुक्त कर दिया। आप अपना और मां का ख्याल रखना….मैं कमजोर नहीं हूं पिताजी पर आप पर बोझ बन कर नहीं रह सकता था इसलिए मैं जा रहा हो सके तो मुझे माफ कर दीजिएगा
आपका चंदन
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मनोहर लाल जी का सिर घुमने लगा कभी वो अपने बेटे के शरीर को देखते ,कभी खत को तो कभी बैसाखी को …..उनकी आंखों से बहते आंसू थम ही नहीं रहे थे। आज जिस बेटे का वो इंतजार कर रहे थे वो ऐसे आयेगा सोच सोच कर उनका दिल बैठा जा रहा था। बेटे ने पिता को बैसाखी के बोझ से मुक्त कर दिया था। कमला जी पहले ही बीमार रहती थी अब बेटे की मौत से वो पूरी तरह टूट गई थी और मनोहर लाल सोच ही नहीं पा रहे थे बेटे ने अपनी कहानी दोस्त के नाम पर कह उन्हें छल लिया…. काश वो हिम्मत दिखा कर कह दिए होते ,“हाँ बेटा ले आ हम सँभाल लेंगे… तो आज मेरा चंदन ज़िन्दा होता।”
कहानी में कोई त्रुटि हो तो क्षमा करें…आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#5वाँ_जन्मोत्सव