बिन मांगे मोती मिले – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

आज सुबह – सुबह अखबार खोलते ही  जिस फोटो को देखी नज़रें जैसे चुंधिया सी गई और दिल – दिमाग शंकाओं से घिर आया । बहुत कुछ बदल गया था इन पाँच सालों में । बड़े असमंजस में थी वही मीरा आंटी हैं जिन्हें मैं जानती हूँ या उनकी हमशक्ल हैं । लेकिन मीरा आंटी तो बड़ी स्मार्ट और सुंदर थीं, तांत और जामदानी साड़ी उन्हें इतनी प्रिय थी कि पूरी दो अलमारी एक से बढ़कर एक इन्हीं साड़ियों से सुशोभित था । पाँच सालों में इतना कुछ कैसे बदल गया कि शक्ल भी पहचानना मुश्किल हो रहा और शरीर भी निढाल सा लग रहा ।  विज्ञापन में लिखा हुआ था..” दो यूनिट ब्लड की जरूरत है और एक ऐसी महिला की जो दिन भर घर मे रहकर इस लाचार माँ को खुश रखे । एक लाचार माँ का आग्रह …

दुबारा पढ़ने लगी अखबार तो देखा इसमें तो सम्पर्क सूत्र भी दे रखा है । मैं पिछली हर पुरानी बात को याद नहीं करना चाहती थी । इस वक़्त मुझे बस एक लाचार बेबस माँ दिख रही थी 

मुझसे मेरे पति राजीव के आने का भी इन्तज़ार नहीं हो रहा था ।  दिए गए नम्बर पर कॉल किया तो आवाज़ एक बुजुर्ग पुरुष की सुनाई दी । मैं समझ गयी ये मीरा आंटी के पति होंगे । मैंने नमस्ते किया और बोला आप कैसे हैं और मीरा आंटी को क्या हो गया ? वह पुरुष चौंके और बोले..मीरा आंटी ? आप जानती हो उनका नाम ? मतलब आप कोई करीब के रिश्तेदार हो । आप कुछ और सोचो इससे पहले मैं गलतफहमी दूर कर देता हूँ कि मैं उनका पड़ोसी मनोहर हूँ, मीरा जी के पति महेश जी का देहांत हुए तो चार साल हो गए । उत्सुकता जागी मेरे अंदर और मैंने पूछा..सूरज, सुशील और विवेक भैया, ये सब कहाँ हैं कौन आंटी के साथ रहता है ? 

“कोई नहीं । मैं और मेरे बेटे बहु साथ मे रहते हैं । मेरी बहु ही देखभाल करती है मीरा जी का । सुनकर कुछ समझ नहीं आ रहा था माजरा । अभी मेरे दिमाग मे कुछ चल ही रहा था कि वो सज्जन बोले ..”कब आ रही हो मीरा जी से मिलने ? मैंने असमंजस की स्थिति में अलसाए स्वर में कहा..”पता भेज दीजिए इसी वीक आऊँगी । उन्होंने कहा..”समय कम है, थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करो । मैंने धीरे से कहा पता व्हाट्सअप कर दीजिए, यही मेरा नम्बर है और उधर से फोन रखा जा चुका था । मैंने फोन को बेड पर पटका और बालकनी आकर अपने लगाए पौधों की छाँव में टेककर बैठ गयी ।

पुरानी बातें स्वतः ही मन में चलने लगीं..”बी.टेक प्रथम वर्ष की छात्रा थी मैं , बिहार से उड़ीसा पढ़ने गयी थी । घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी फिर भी शिक्षा लोन लेकर मेरे पढ़ाई में कोई कमी नहीं किया गया । पापा किसान थे और माँ वो गृहणी थी जिन्हें सम्मिलित परिवार में होते हुए अपनी बेटी के हाल पूछने की फुर्सत नहीं होती थी । घर में सबसे बड़ी मैं और सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी । पापा मेरे साथ हॉस्टल ढूँढने लगे तो मैंने ही कहा..”सभी साथियों की बराबरी नहीं करना, कोई कम में ही काम चल जाए तो अच्छा है, खाना खुद से बनाकर खा लूँगी । तभी एक व्यक्ति पर नज़र पड़ी..”ये और कोई नहीं, मीरा आंटी के पति महेश अंकल थे उन्होंने पापा से कहा..”परेशान दिख रहे हैं, बेटी के लिए हॉस्टल नहीं मिला क्या ? पापा ने कहा जो  मिल रहा है उसका बजट नहीं और निधि को कुछ कम बजट वाले जगह की तलाश है । फिर एक नज़दीक वाले में पता किया तो वहाँ कम पैसे लग रहे थे पर मैं ये बोलते हुए सीधा मुकर गयी कि हॉस्टल मुझे ज्यादा सुविधाओ वाला नहीं चाहिए , मेरी चार और छोटी बहने हैं। पापा ने कहा खेत बेचकर पढ़ाएंगे बेटा तुम्हारा शौक है तो ..।

पापा की इतनी बात सुनकर महेश अंकल बोले..”मेरा भी पी.जी है और घर में भी किराए वाले कमरे हैं। अगर आपको ऐतराज न हो तो देख सकते हो ।  अंकल की ये बातें सुनते ही मानो मेरे और पापा के मन में # खुशियों का दीप जल गया । पापा का चेहरा खुशी से चमक रहा था । हम साथ में घर और पी.जी देखे पसन्द आया । अब पैसों पर चर्चा हुई तो महेश अंकल और मीरा आंटी ने कहा..”जो उचित लगे दे दीजिए, हम पढ़ने वाले बच्चों को ऐसे ही प्रोत्साहित करते हैं । ये सब सुनकर मन खुशी से गदगद हो उठा, मानो बिन मांगे मोती मिल गया । अब पापा छोड़कर चले गए मुझे । हर दिन आंटी खाने – नहाने से लेकर पढ़ने का ख्याल रखती थीं ।

गरीबी की सताई हुई थी मैं, मौज – मस्ती में ज्यादा ध्यान नहीं जाता था , हर वक़्त किताबों में लगी रहती थी तो आंटी बोलतीं खाना समय पर खा लिया करो बेटा । एक बार परीक्षा के वक़्त मेरे सिर में भयानक दर्द हो रहा था फिर भी मैं लेटकर किताब पढ़ रही थी और सहेलियाँ हँसी उड़ा रही थीं तो आंटी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा..”कोई भी निधि का मज़ाक नहीं उड़ाएगा । चलो बेटा तुम अब से मेरे घर पर रहना , बीच – बीच मे मेरे से बात कर लिया करना तुम्हे अच्छा लगेगा । पैसे का सोचते हुए मैं जल्दी छुट्टियों में घर नहीं जाती थी तो आंटी टिकट कटवाकर मुझे भेजती थीं और दिन भर रात भर पढ़ने से गुस्सा करती थीं मेरे कमरे में आकर बैठ जाती थीं

एक घण्ट । एक बार अपनी बहन से बात करते हुए आंटी ने सुन लिया था पैसे की जरूरत तो उसे पैसे भेजकर पार्लर ट्रेनिंग कराया । आंटी कभी मुझे बाल बनाने बोलतीं और छत पर ले जाकर कुछ अच्छी बातें सिखाती थीं । तबियत खराब होने पर भी बहुत देखभाल करती थीं । एक बार सिर में बाम लगाते हुए उन्होंने कहा..”जानती हो निधि ! एक प्यारी बेटी हो तुम्हारे जैसी सभ्य शालीन मेरी ख्वाहिश ही रह गयी । डिलीवरी के आठ महीने बाद बेटी हुई और गम्भीर बीमारी से ग्रसित वो हमारा साथ छोड़कर चली गयी फिर बेटी के उम्मीद में तीनों बेटे हुए । दुनिया मुझे भाग्यशाली तीन बेटे वाली बोलती थी ।

मुस्कुरा के आंटी के साथ घुल – मिलकर बातें करते इतना अपनत्व सा उनके साथ लगने लगा कि मेरी मम्मी सम्मिलित परिवार में नहीं होतीं तो शायद ऐसे ही होतीं । ऐसा एहसास होने लगा । घर में रहते – रहते तीनों भैया को देखती थी आंटी सबको बहुत प्यार करती थीं । बस विवेक भैया की शादी नहीं हुई थी, उनका एक पैर हल्का सा लड़खड़ाता था । पर बहुओं को देखकर समझ आता था कि बहुत चालाक – चतुर हैं फिर भी आंटी अपने ममत्व स्वभाव से सबका दिल नहीं जीत पाती थीं  ।

।दोनों बहुएँ आंटी को बिल्कुल नौकरानी की तरह समझती थीं और बेटे भी कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे  । सब दोस्तों के साथ पार्टी करते थे और आंटी सुबह से पकवान की तैयारी में ब्यस्त रहती थीं ।फिर भी थोड़ा कम ज्यादा पड़ गया तो दोस्तों के सामने उन्हें बेज्जत भी होना पड़ता था । अंकल चार घण्टे की दूरी पर दूसरे जगह नौकरी करते थे उम्र होने की वजह से सप्ताह में एक दिन घर आते । आंटी अपने दुःख को प्रकट नहीं करती थीं बस मेरे कमरे में आके तकिया के सहारे लेट जाती थीं या कभी मुझसे चर्चा करके आँसू बहा लेती थीं । मैं बस चुप करा सकती थी परिवार के बीच में हस्तक्षेप करना मेरे लिए ठीक नहीं था । आँसू ही पोछ रही थी कि दरवाजे पर घण्टी बजी । राजीव थे दरवाजे पर । लाइट्स और सजाने का सामान लिए खड़े मुस्कुरा रहे थे । पूरे पन्द्रह मिनट हो गए निधि , दिवाली की सारी सफाई हो गयी थी , क्या घिसने में लगी थी तब से बेल बजा रहा हूँ  और अब दरवाजा खोली हो । 

मैं बालकनी जाकर बेसिन में मुँह पर पानी के छींटे लिए और तौलिया से मुँह पोछा   । अब पूरी तरह से वर्तमान में थी ।

जल्दी से राजीव को चाय देकर मैंने उन्हें विज्ञापन दिखाया ।उन्हें 

सब पहले से ही बता दिया था। याद आ गया राजीव को भी आंटी का चेहरा देखकर ।

कपड़े बदलकर ड्राइंग रूम में आकर बैठते हुए राजीव ने कहा..”समझ सकता हूँ, तुम्हें जाने का मन होगा,  जाओ मिल आओ तुम । मैंने राजीव को ज़ोर देते हुए कहा..”आप साथ चलते तो अच्छा होता और हम दोनों निकल कर दिए हुए पते पर पहुँचे  । सब कुछ पहले जैसा ही था कोई बदलाव नहीं दिख रहा था तो ढूँढने में असहजता नहीं हुई । लेकिन आंटी के घर में ताला बंद था तो उन सज्जन के नम्बर पर कॉल किया । उन्होंने बताया पीछे वाले मकान में हम साथ – साथ हैं । जैसे ही उस घर में पहुंचकर अंदर घुसे सामने वाले कमरे में कोई नहीं दिखा

। फिर पूछने पर पता चला आंटी को अटैक आया था तो अस्पताल में हैं और हम सब साथ मे वहां गए । वार्ड में घुसते ही देखा आंटी सोई हुई थीं । मैंने नजदीक जाकर कहा..”आंटी, कैसी हैं आप ? वो धीरे से उठने की कोशिश करने लगीं और मेरे हाथ के सहारे उठकर मेरे गले लग के  अंकल नहीं रहे , मैं अकेली हो गयी कहकर ज़ोर से  निधिsssss चिल्लाते हुए बेसुध रोने लगीं । मैंने भी अपने सीने पर सहारे से उनका सिर रखा और ज़ोर से मेरी रुलाई  फूट पड़ी । खुद को संभालते हुए मैंने पूछा..भैया, भाभी सब कहाँ हैं ? तब तक उनके पड़ोसी सज्जन की बहू

ने आकर मुझे दुबारा पूछने से रोक लिया । फिर वो सज्जन ने बताया..दोनों बेटे विदेश में बस गए हैं बोलते हैं छुट्टी नहीं, आज आऊंगा, कल ले जाऊँगा ऐसे करके पूरे पाँच साल बीतने को आए । विवेक यहाँ रहता था उसने विकलांगता के कारण शादी नहीं की थी, वो मीरा जी का बहुत खयाल रखता था पर महेश जी के जाने का सदमा  नहीं झेल पाया और वो भी चल बसा । दोनों बाप – बेटे के ज़िन्दगी में चले जाने से और बहुओं के कटु व्यवहार से मीरा जी अंदर से सदमे में चली गईं हैं । कभी – कभी विवेक का दुःख इन्हें पागल कर देता है तो इन्हें अस्पताल लाना पड़ता है ।

पड़ोसी सज्जन की बहू ने मुझे पानी का बोतल पकड़ाते हुए कहा..”आप इनकी कौन हैं, प्लीज इन्हें ले जाइए । दरअसल हमारे पति का ट्रांसफर हो गया है और हमे शिफ्ट होना है फिर पापा जी के हार्ट का ऑपरेशन होना है इसलिए हमने विज्ञापन डाला ताकि इनका अपना कोई इन्हें ले जाए । मीरा आंटी का कहना था कि महेशअंकल के जाने के बाद उनके परिवार ने उनसे रिश्ता तोड़ दिया कोई मतलब नहीं रखा ।

इतना बड़ा फैसला निधि अकेले नहीं ले सकती थी, उसने राजीव की तरफ देखा । राजीव एकटक नम आँखों से देख रहा था । खुद का मूड सामान्य करते हुए राजीव ने सारी जानकारी पड़ोसी सज्जन से ली और कहा..”हम इनके बेटी दामाद ही हैं । इन्होंने मेरी पत्नी की ज़िंदगी में # खुशियों का दीप जलाया है, हम इन्हें अंधकार में नहीं रहने देंगे   मैं इन्हें ब्लड दूँगा और हमारे साथ मिलकर डिस्चार्ज की सारी तैयारी करवाइए हम इन्हें अपने साथ ले जाएँगे और ये मेरा कार्ड रखिये आप  ।कोई भी इनके लिए आपको कॉल करे तो मेरे पास भेजिएगा । 

अब निधि राहत की सांस ले रही थी और पड़ोसी सज्जन के चेहरे पर भी सन्तुष्टता के भाव दिख रहे थे । 

निधि ने मीरा जी को कपड़े बदलवा कर अच्छे से चोटी बना दी  । मीरा जी के चेहरे पर थोड़ी मुस्कुराहट शायद इसलिए तैर गयी की उनकी सेवा उनके जीवन में रंग ला रही थी । अब निधि अपने साथ गाड़ी में बिठाकर  मीरा जी को घर ले गयी ।

 

मौलिक, स्वरचित

 ( अर्चना सिंह ) # खुशियों का दीप

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