” आपने ठीक किया माँ जो भाभी को डाँट दिया।खुद तो खाली हाथ आईं हैं.., ऊपर से प्लेटें-बाउलें तोड़कर आपके मँहगे-मँहगे सेट भी खराब करती रहतीं हैं।भाभी का यही हाल रहा तो माँ..।”
” चुप करो मानसी…। तुम्हारी माँ को तो बहू को डाँटने के लिये बहाना चाहिये,कम से कम तुम तो #आग में घी डालकर सास-बहू के बिगड़ते रिश्तों को हवा तो मत दो।” शिवशंकर बाबू अपनी बेटी पर चिल्लाये तो वो बोली,” पापा..मैं तो…।”
” बस करो मानसी…और पार्वती..तुम भी..अपने दिन भूल गई…।” कहते हुए शिवशंकर बाबू ने पत्नी की तरफ़ देखा।
बेटी का ब्याह करके पार्वती जी अपने इकलौते बेटे अभिषेक के लिये दहेज़ लेकर आने वाली बहू तलाश रहीं थीं।इसी बीच शिवशंकर बाबू की मुलाकात पुराने मित्र जयंत लाल से हुई।उनकी पढ़ी-लिखी, सरल स्वभाव वाली बेटी नंदिता उन्हें एक ही नज़र में पसंद आ गई।अभिषेक ने भी नंदिता से मिलकर अपनी स्वीकृति दे दी और दोनों का विवाह हो गया।
विवाह में अपनी इच्छानुसार सामान और ज़ेवर न देखकर पार्वती जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया।बेटे और पति को न बोलकर वो सारा भड़ास बहू पर निकालती।मानसी जब भी मायके आती तो उसके सामने भी बहू को कुछ-कुछ सुनाती तब मानसी भी उसमें अपनी तरफ़ से झूठ-सच जोड़कर अपने ननद होने का हक अदा करती।संस्कारी नंदिता ने कभी भी उन्हें पलटकर जवाब नहीं दिया और ना ही कभी अनिषेक से शिकायत की।शिवचरण बाबू सोचते कि धीरे-धीरे उनकी पत्नी की कड़वाहट दूर हो जायेगी..
बेटी को भी रिश्तों को जोड़ने की समझ आ जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।नंदिता धुले हुए बरतनों को कपड़े से पोंछ-पोंछकर रख रही थी।उन्हीं में बोनचाइना की छोटी प्लेट उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी।फ़र्श पर उसके टुकड़े देखकर पार्वती को उसे डाँटने का एक सुअवसर मिल गया।उस वक्त मानसी भी आई हुई थी।बस उसने भी दो-चार लगाकर अपनी माँ के गुस्से को भड़काना चाहा तभी शिवशंकर बाबू आ गये और बेटी को डपट दिया।फिर पत्नी से बोले,” पार्वती..अपने दिन भूल गई..
एक दिन तुम्हारी किसी गलती पर माँ तुम्हें डाँट रही थी, तब मंजू दीदी तुम्हारी गलती को बढ़ा-चढ़ाकर माँ से शिकायत करने लगी थीं तब दादी उसे समझाते हुए बोली थीं कि मंजू..माना कि बहू से गलती हो गई..तुम्हारी माँ भी ज़रा गुस्से में है लेकिन तुम आग में घी डालकर उनके बिगड़ते रिश्तों को हवा तो मत दो
।आज मानसी भी वही कर रही है तो तुम क्यों नहीं उसे रोक रही? दहेज़ लेकर आने वाली बहुओं के किस्से तो तुम रोज ही अपनी पड़ोसिनों से सुन रही हो..फिर भी तुम्हें बहू से शिकायत है तो मैं अभिषेक से बहू के साथ अलग घर में रहने को कह देता हूँ।”
बेटे को देखकर जीने वाली पार्वती जी उसके अलग होने की कल्पना से ही भयभीत हो गईं।उन्होंने पति से माफ़ी माँगी और बहू को गले लगा लिया।मानसी को भी अपनी गलती का एहसास हो गया।तभी अभिषेक ऑफ़िस से आ गया।नंदिता सबके लिये चाय बनाकर लाई।चाय का एक घूँट पीते ही अभिषेक चिल्लाया,” नंदिता..चाय में चीनी क्यों नहीं डाली?” उसके इस बनावटी गुस्से पर सभी ठहाका मारकर हँसने लगे और घर का माहोल खुशनुमा हो गया।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# आग में घी डालना