Post View 418 भोज – रवीन्द्र कान्त त्यागी “उठ जाओ जी। आज तो तड़के तड़के आप मंगला के लिए लड़का देखने जाने वाले थे। दूर जाना है। देर नहीं हो जाएगी।” “रात भर नींद ना आई मंगला की माँ। क्या करूँ लड़का देखकर। सोचा था जब गेहूं की फसल उठेगी तो दो पैसे हाथ में … Continue reading भोज – रवीन्द्र कान्त त्यागी 
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