“श्राद्ध ख़त्म होने वाले हैं, नवरात्रि लगने वाली है।” खुद से ही बात करती बूढ़ी गंगूबाई बिस्तर पर बैठ कर बड़बड़ा रही थी। तभी पोती पीहू आकर गंगूबाई के पास आकर बैठ गई। बोली
“दादी क्या हुआ?”
“कुछ नहीं, जाकर अपनी मां को बुला ला।” पीहू दौड़कर पुष्पा को बुला लाई।
“अरी ओ पुष्पा, कुछ दिनों बाद नवरात्रि लगने वाली है, कन्या भोज के लिए जो सामान चाहिए वह एक-दो दिन पहले ही मंगवा लेना और बेटियों को भी पहले से बता देना।” गंगूबाई ने पुष्पा की ओर देखते हुए कहा।
दोनों की बात सुन रही पुष्पा की बेटी पीहू बीच में बोली,
‘अम्मा-अम्मा! इस बार नवरात्रि में हम किसी भी बेटी को भोजन के लिए नहीं बुलाएंगे ना ही मैं किसी के घर जाऊंगी।”
गंगूबाई ने आश्चर्य से पूछा, “ऐसे क्यों कह रही है बिटिया। किसी ने कुछ कहा क्या?”
“हाँ दादी, वह पास वाले अंकल तासु के पापा बहुत गंदी गालियां देतें हैं हर बात पर माँ-बहिन और बेटियों को बीच में ले आते हैं। और वो बिरजू के पापा जब देखो लड़कियों को गलत जगह छूने की कोशिश करते हैं। पापा भी कल मोबाइल पर बात करते समय गालियां दे रहे थे। माँ को भी मारते हैं। अब आप ही बताओ आप कहती हो बेटियां देवी का रूप होती है। जहां बेटियों की कोई गलती नहीं तो गालियां देते समय उन्हें बीच में क्यों लाते हो ….!”
इससे आगे पीहू कुछ कहती गंगूबाई ने उसे गोद में ले लिया और पुष्पा से कहा, “इस बार नवरात्रि में तो न तो हम कन्याभोज करेंगे न ही मेरी पोती कहीं जाएगी। और यह नियम तब तक चलेगा जब तब अपने घर में गाली देना या हाथ उठाना बंद नहीं हो जाता।”
दूसरे कमरे से आ रहे पीहू के पापा उनसे नज़रे मिलाए बिना ही दरवाजे से वापस चले गए।
अमोघ अग्रवाल, इंदौर
9301785499
स्वरचित मौलिक रचना