भिखारी कौन? – अनुज सारस्वत

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“हे भगवान मेरा रोड का टेंडर पास हो जाये,मेरी बेटी की शादी मिनिस्टर के बेटे से हो जाये और मेरे बेटे को इलेक्शन का टिकट मिल जाये तो101 का प्रसाद चढांऊगा,सारी मनोकामनाएं पूर्ण करो भगवान “

मठठू सेठ मंदिर में खड़े होकर प्रार्थना कर रहा था यह,पूर्ण होने के बाद पंडित जी को अकड़ से बोला

“ओ पंडित चल प्रसाद दे”

सीधे साधे पंडित जी सौम्य मुस्कान के साथ आये और भावपूर्ण प्रसाद दिया सेठ जी को बिना बुरा माने उसके व्यवहार को

फिर पंडित जी ने प्रेमपूर्वक सेठ से कहा

“सेठ जी आपसे एक विनती थी कि ठंड काफी बढ़ गयी है आपको तो पता ही है यह मंदिर वैसे भी छोटी पहाड़ी पर है ,इसकी हालत जर्जर हो गयी है आप कृपा करके सामने से इसको सही करवा दें जिससे ठंडी हवा अंदर नही आये,लोगों को भी आराम मिलेगा, वैसे भी कम आते हैं लेकिन हम रोज सुबह 5 बजे से शाम को 8 बजे तक बैठते हैं’

पंडित जी को बीच में रोका हुआ बोला सेठ।

“ओ पंडित तूने तो बिल्कुल भिखारीपने की हद करदी ,इतना चढ़ावा आता है क्या करता है उसी से बनवा मेरे पीछे मत पढ़ “

इतना कहकर सेठ मंदिर से बाहर निकल ही रहा था कि बाहर बैठे भिखारी ने कुछ खाने को मांगा उससे

सेठ ने उसे झाड़ते हुए कहा

“अंदर भी भिखारी बाहर भी भिखारी


खून पी रखा है तुम लोगों ने भाग यहां से”

अंदर मंदिर में एक वृद्ध बैठे थे उन्होंने सेठ को बुलाया और कहा बेटा

“तुम वही सेठ होना जिसकी मिलें चलती हैं कपड़ो की “

“हां तो “

सेठ ने चिढ़कर बोला “तो तुझे क्या बुढढे?”

वृद्ध आदमी बोला “देखो सेठ एक बात कहूं तुम इतने अमीर होते हुए भी सबसे बड़े भिखारी हो,अभी भगवान से भिखारियों की तरह सारी भीख मांगी ये दो  वो दो लेकिन भोले भाले पंडित जी को ताने दे रहे हो वो कौन सा अपने लिए मांग रहे और अकड किस बात की है तुम्हें ,यह जो भगवान अंदर बैठे है न देर नही लगेगी सोने को मिट्टी करने मे इनहें पंडित जी ने नही कहा था यहां आओ,और बेचारा भिखारी का क्या कसूर इन लोगों का घर हम लोगों की वजह से ही चलता है ,कोई हक नही है तुम्हें इन लोगों को गंदा बोलने की,मां बाप ने तमीज नही सिखाई है तुम्हें,अपने पिताजी के उम्र के पंडित जी से ऐसा बोलने की “

तभी पंडित जी बोले

“अरे भाईसाहब कोई बात नही ,हम लोग सबका भला चाहते हैं और भगवान का भजन करते हैं ,आप सेठ जी को जाने दो,इसमें भी कोई भलाई होगी”

वृद्ध आदमी सेठ से बोला

“मैं इस शहर में किसी से मिलने आया था ,व्यापार करने वह आदमी नही था तो मंदिर आ गया लेकिन अब मेरा मन बदल गया है ,पंडित जी कल मेरा मैनेजर आयेगा आप उसको दिखा देना जो भी काम करवाना हो मंदिर में ,यह मेरा कार्ड रख लो “

सेठ की नजर कार्ड पर पड़ी वो चौंक गया

यह आदमी तो वही तो जो आज उससे 1-करोड़ की डील करने आया था सेठ को भगवान का न्याय समझ आ गया ,वह उस आदमी से बोला

“आप तो मुझसे ही मिलने आये थे मुझे माफ कर दो आपसे ऐसा बोला”

वह वृद्ध आदमी बोला माफी मांगनी है तो पंडित जी और बाहर खड़े भिखारी से मांगो,न्याय हो चुका ईश्वर का  ।”

सेठ समझ चुका था “असली भिखारी कौन है?”

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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