गली और सड़क का वह दोराहा ।संकरी गली से बेहद कठिनाई से जब मैं अपनी कार निकाल कर सड़क के उस दोराहे पर पहुंचता वह स्त्री झट से अपना आंचल पसार कर खड़ी हो जाती।बेहद चिढ़ से मै कार का शीशा उपेक्षा से चढ़ाकर तेजी से आगे बढ़ जाता था।
अक्सर वह मुझे वहीं खड़ी मिलती।जैसे मेरी राह देखती रहती थी।उस स्त्री का इस तरह सार्वजनिक रूप से अपना आंचल पसार कर भीख मांगना मुझे भीतर तक वितृष्णा से दग्ध कर जाता था।कैसी है यह और कैसे है इसकेघरवाले ।
मेरी कार को देखते ही यह आ जाती है। कोई भी मेहनत मजूरी का काम कर ले पर इस तरह भीख तो ना मांगे यही आक्रोश और गुस्सा मेरे भीतर धधक उठता था ।
एक दिन मेरी सहनशक्ति चुक गई और मेरी कार के गली से निकल कर दोराहे पर आते ही जैसे ही उसने अपना आंचल पसारा मैने झटके से ठीक उसके पास कार रोकी और इकट्ठे एक हजार रूपये निकाल उसके आंचल की तरफ बढ़ा दिये।”लो ये रख लो और आज के बाद इस तरह यहां मत दिखाई पड़ना मैंने चिढ़ कर गुस्से से कहा तो उसने बीच में ही मेरा हाथ पकड़ लिया।
ना बेटा ना ये रुपए तुम रखो इसकी कमी नहीं है मेरे पास।तुम्हे देख कर मैं ये आंचल भीख मांगने के लिए नहीं पसारती हूं बल्कि इसी दोराहे पर एक दिन मेरा बेटा गली से निकल दुर्घटना ग्रस्त हो ईश्वर के घर चला गया था ।
तुम्हे देख मेरा बेटा सामने आ जाता है।इसलिए अपना आंचल पसार तुम्हारे लिए ईश्वर से तुम्हारी सलामती और सुरक्षा की दुआ मांगती हूं ।जो मेरे बेटे के साथ घटित हुआ तुम्हारे साथ ना हो।यह मां का आंचल है बेटा दुआ और आशीष के लिए उठता है रुपए मुझे वापिस करती वह मौन हो मुड़ गई और मुझे मौन कर गई।
लतिका श्रीवास्तव
आंचल पसारना#मुहावरा आधारित लघुकथा