भीड़ के उसपार ! – रमेश चंद्र शर्मा

अचानक पैंतालीस  साल बाद शहर के शॉपिंग मॉल में अनीता और संकेत की मुलाकात हो गई ।

अनीता “संकेत, आप यहां ! इस शॉपिंग मॉल में !

कितने वर्षों बाद आपको देखा, बिल्कुल नहीं बदले”!

संकेत “जीवन में बहुत कुछ बदला है। आज अचानक तुम्हें देखकर अतीत में लौट जाने का मन हो रहा है”।

अनीता “मैं तो सबकुछ डरावने सपने की तरह भूल चुकी हूं। आज आपको देखकर सारा दृश्य प्रत्यक्ष हो गया”।

संकेत “घर पर माता पिता के सामने तश्तरी में चाय लेकर आना । कनखियों से देखना । चाहकर भी भूल नहीं पाता । रोमांचित हो जाता हूं। दोनों परिवारों की गड़बड़ अंडरस्टैंडिंग  कारण हमारा रिश्ता नहीं हो पाया था”।

अनीता “खैर छोड़िए, जीवन में कभी ऐसे हादसे हो जाते हैं। इसे भूलना ही बेहतर रहा”।

संकेत “आज तुम्हारी सूनी मांग देखकर मन अशुभ आशंका से भर रहा है। कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हुई”?

अनीता “मेरा जीवन हादसों पर ही टिका है। शादी के कुछ वर्ष बाद सारांश सड़क हादसे में चल बसे । एकमात्र मासूम बेटे की परवरिश के सहारे यहां तक की यात्रा तय कर ली ।…अपने बारे में भी कुछ बताइए”?

संकेत ” एक बहुत गहरी फांस अंदर तक धंसी हुई है। वैवाहिक जीवन जैसे तैसे एक साल खींचने के बाद भी तबाह हो गया। संध्या ने मोटी रकम वसूलकर मुझसे तलाक ले लिया। कुछ दिनों बाद दूसरी शादी कर ली”।

अनीता “घोर आश्चर्य !आप जैसे सुलझे हुए आदमी के साथ इतना बड़ा धोखा! …आपने दूसरी शादी.. “?

संकेत “पहली शादी ने मुझे रेत की मानिंद बिखेर दिया। दूसरी शादी के बारे में सोचने पर भी डर लगने लगा।.. ठहरी हुई जिंदगी जैसे-तैसे रैंगती जा रही है”।

           ( अचानक संकेत और अनीता दोनों जोर-जोर से खांसने लगते हैं )

अनीता “अरे,आपकी तो तबीयत ठीक नहीं है। ऐसी हालत में आपकी देखभाल कौन करता होगा”?

संकेत “अपनी लाश को लादने की आदत पड़ चुकी है। अंतिम गंतव्य की ओर जाती हुई निष्प्राण अर्थी पर कांधे बदलते लोग मुझे डरा देते हैं। अनीता,तबीयत तो तुम्हारी भी ठीक नहीं है”।

अनीता “इंसान नियति के हाथों की कठपुतली है। वह चाहकर भी अपनी शर्तों पर जीवन जी नहीं पाता। उसे हालात से समझौता करना पड़ता है”।

संकेत “एक असमंजस, एक अनिर्णय  इंसान को नियति के हाथों का क्रीत दास बना देता है”।

अनीता “ऐसा मत कहिए । आपके अंदर बैठा विगत का संकेत कहां गया ? आज मेरे पास बेटा-बहू-पोता सबकुछ भरा पूरा परिवार है”।

संकेत “परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हर आगे बढ़ा हुआ कदम मंजिल की ओर नहीं ले जाता। गलत दिशा में बढ़ा हुआ मेरा एक कदम मुझे मंजिल से बहुत दूर ले गया”।

अनीता “बेटे-बहू आ गए हैं। अब मुझे चलना होगा। अपना ध्यान रखिएगा”।

  (अनीता की कार भीड़ को चीरती हुई ओझल हो गई। संकेत मोटा  चश्मा उतारकर भीड़ के उसपार अनीता को तलाशता रहा )

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# रमेश चंद्र शर्मा

 

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