आप सबको तो बता रहे हैं, बस मुझे ही टाल रहे हैं, बताओ ना पंडित जी मैं कितना पढूंगा।
पढ़ो बेटा खूब पढ़ो,राम सब भली करेंगे।
पर आप अब भी नही बता रहे,कि मैं कितना पढूंगा?
देखो बेटा, मैं हाथ की रेखाएं देखकर ही भविष्य बताता हूँ,मैं तुम्हे उदास नही करना चाहता था,इसलिये नही बता रहा था,पर तुम जिद कर रहे हो तो क्या कहूँ बेटा जब तुम्हारे हाथ मे विद्या की रेखा ही नही है तो मैं क्या बताऊँ?
खिलखिलाती परिहास करने वाली कई आवाजे उठ गयी।चारो ओर खड़े उसके सहपाठी उसकी मजाक उड़ा रहे थे।अरे जब हाथ मे विद्या माता की रेखा ही नहीं तो क्या पढ़ेगा,चल अपने पिता के साथ मजदूरी करना।
गरीब मजदूर शंकर का इकलौता बेटा मोती खूब पढ़ना चाहता था।शंकर की हैसियत उसे पढ़ाने की नही थी,पर बेटे की रुचि देख उसका दाखिला एक मध्यम श्रेणी के विद्यालय में करा दिया।आज पंडित जी ने हाथ में विद्या रेखा ही न होने की बात कही तो मोती का दिल टूट गया।घर आकर उसकी रुकी रुलाई फूट पड़ी।उसको रोता देख शंकर घबरा गया,उसने सोचा जरूर कोई बात स्कूल में हुई है जो मोती को रुला रही है।शंकर ने मोती को ढांढस बधाते कहा बेटा क्या हुआ?देख मोती हम गरीब हैं इसलिये हमें कोई भी कुछ भी कह सकता है,बेटा सहने की आदत डाल लें बेटा सहने की आदत डाल लें,मत रो मेरे बच्चे।पिता की सहानुभूति ने मोती को और पिघला दिया और वह और जोर से रोने लगा।शंकर को लगा कि बात कुछ अधिक गंभीर है।काफी पूछने पर मोती ने बताया कि कैसे पंडित जी ने बताया कि उसके हाथ मे पढ़ने की लकीर ही नही है।सुनकर शंकर अट्टहास कर उठा,अरे मोती मजदूरों के हाथ की लकीर तो बेटा बोझ उठाते उठाते घिस जाती है।हम तो मोती दुनिया भर के महल बनाते है पर हम अपने लिये एक झोपड़ी भी मुश्किल से डाल पाते है रे,तू पढ़ाई की लकीर के लिये रो रहा है।पर पापा मैं तो पढ़ना चाहता था,तो क्या नही पढ़ पाऊंगा?
क्यो नही पढ़ पायेगा मोती?जब तू ठान लेगा तो क्यूँ नही पढ़ पायेगा।सुन मोती तू पंडित की बात भूल जा और एक बात याद रख कि मुझे अपने हाथ मे खुद पढ़ाई की लकीर खींचनी है।तेरा बाप तेरे साथ है बस तू लग जा,मत सोच कोई क्या कह रहा है,अपना लक्ष्य बना ले मेरे बच्चे।तू जीतेगा, निश्चित जीतेगा,अपना विधाता खुद बन जा मोती।
पिता की बाते सुन मोती की मुठ्ठी तनती गयी,मष्तिष्क में खुद अपना विधाता बनना है वाक्य गूँजने लगा।मोती ने निर्बाध रूप से स्कूल जाना प्रारम्भ कर दिया,घर पर भी खूब मेहनत शुरू कर दी।धीरे धीरे उसकी गिनती कक्षा के होनहार विद्यार्थियों में होने लगी।मोती अब राह में बैठे उस पंडित की ओर देखता भी नही था। मोती की मेहनत रंग लाती जा रही थी,उसने हाई स्कूल में अपने स्कूल को टॉप किया।फिर इंटरमीडिएट में भी यही कहानी दुहराई।वजीफे के बल पर मोती ने कॉलेज में दाखिला ले लिया।ग्रेजुएशन के साथ आईएएस प्रतियोगिता की तैयारी भी मोती ने शुरू कर दी।
शंकर के बहुत छोटे से घर के अंदर और बाहर कुछ विशेष चहल पहल थी।टीवी चैनल्स के रिपोर्टर्स, पत्रकारों का जमघट था।शंकर सकपकाता सहमता सकुचाता सा हाथ जोड़े उन सबके प्रश्नों के उत्तर दे रहा था।पत्रकार शंकर से पूछ रहे थे कि तुम तो मात्र मजदूरी करते रहे हो फिर कैसे तुम्हारा बेटा आईएएस बन गया।शंकर कह रहा था साहब मैं तो अब भी मजदूर ही हूँ दुसरो घर बनाता हूँ पर हाँ मेरे बेटे मोती ने अपने हौसलों का अपने इरादो का महल खुद बनाया है,अपने हाथ मे भाग्य लकीर उसने खुद खींची है,साहब मैं बहुत खुश हूं,मुझे अपने बेटे पर गर्व है।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
मौलिक एवं अप्रकाशित
That is nice story, though similar historic/myth stories are their. Even Sri Bhawat Geeta says, “Karma can change the destiny”. Pandit/Purohit can see lines not future. However he acted as trigger for that father and kid.
Kahani hai bahut achhi hai and motivative n Jane Kitno ka future ban sakta hai aur panditon ko bhi seekh hai Kalidass ke pitaji bhi bahut vidvaan thae vo apne hi bete ka bhavishay nahi Jaana sake
सुन्दर अतिसुन्दर रचना