अस्पताल के बेड पर पड़ी हुई रागिनी जी की आंखों से आंसू की बूंदे निकलकर तकिये को भिगो रही थीं… । अपनी बिमारी से ज्यादा पति और बेटे की बेबसी उन्हें खल रही थी। बिना किसी औरत के घर संभालना कितना मुश्किल होता है ये बात सब समझ रहे थे। दोनों का उतरा हुआ चेहरा और बिना इस्त्री के कपड़े देखतीं तो आंखें खुद ब खुद भर आती थीं। पता नहीं कितने दिनों से दोनों ने ढंग से खाना भी खाया होगा या नहीं। जब ठीक थीं तो प्यार से या डांट डपट कर कैसे भी कुछ ना कुछ खिला हीं देती थी लेकिन अस्पताल में पड़े पड़े सिर्फ चिंता करने के अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकती थीं । अभी तो वो खुद ही अपने छोटे – मोटे कामों के लिए उनकी मोहताज हो गई थीं।
रागिनी जी एक कुशल गृहणी की तरह सब कुछ अकेले ही संभाल लेती थी। ब्लडप्रेशर और डायबिटीज की शिकायत तो कई सालों से थी लेकिन पिछले कुछ महीनों से उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही नासाज रहने लगी थी। उनके पति गौतम जी घर के बगल में ही किराने की दुकान पर बैठते थे और बेटा विवेक अपनी पढ़ाई खत्म करके नौकरी कर रहा था ।
रागिनी जी की यही इच्छा थी कि जल्द से जल्द वो विवेक की दुल्हन इस घर में ले आए ताकि घर परिवार की जिम्मेदारी बहू को सौंपकर वो निश्चिंत हो सकें। बहू की खोज में हीं थीं कि अचानक से एक दिन हृदयाघात के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा । इस बार तो उनकी जान बच गई लेकिन डाक्टर ने कहा था कि उनकी हालत अभी बहुत नाजुक है …. छोटा सा झटका भी उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है ।
अब पिछले चार दिनों से वो अस्पताल के बेड पर पड़ी पड़ी बस यही भगवान से यही दुआ कर रही थीं कि भगवान बस उसे थोड़ी सी मौहलत और दे दे ताकि वो अपने बेटे का घर बसता हुआ देख सके।
एक हफ्ते बाद रागिनी जी को अस्पताल से छुट्टी मिली। घर में सब कुछ अस्त- व्यस्त सा था जिसे देखकर रागिनी जी को बेचैनी सी हो रही थी लेकिन अब कुछ दिनों तक वो भी आराम करने को मजबूर थीं। जैसे तैसे उनके पति गौतम जी और बेटा विवेक घर और रागिनी जी को संभाल तो रहे थे। लेकिन हर काम परफेक्शन से करने वाली रागिनी को उनका किया हुआ कोई काम पसंद हीं नहीं आता था।
जब गौतम जी थोड़ी देर उनके पास बैठे तो उसने जिक्र छेड़ दिया , ” सुनिए ना, अपने सभी पहचान वालों से कहिए कि कोई लड़की नजर में हो तो हमारे विवेक के लिए बताएं । ,,
” हाँ रागिनी, में कोशिश कर रहा हूँ… लेकिन पहले तुम ठीक तो हो जाओ । … शादी का काम भी तो तुम्हें ही संभालना पड़ेगा ना । ,, गौतम जी ढाढस बंधाते हुए बोले।
रागिनी जी उनकी बात पर चुप हो गई लेकिन मन में उथल पुथल मची थी कि पता नहीं मेरे पास समय है भी या नहीं ।
इसी चिंता में रागिनी जी घुल रही थीं कि एक दिन उनकी ननद का फोन आया , ” भाभी, एक लड़की है मेरी नज़र में, बहुत हीं सुगढ़ और सयानी है । लेकिन….. ,,
” लेकिन क्या दीदी?? ,, रागिनी जी ने अधीर होते हुए पूछा ।
” भाभी, वो लड़की के माता पिता नहीं हैं, बेचारी अनाथ है.. अपने चाचा के पास रहती है अभी …। ,,
” तो क्या हुआ दीदी, ये सब तो किस्मत की बात है, बस मेरे विवेक को पसंद आ जाए हमारे लिए तो यही काफी है । ,,
रागिनी जी बहुत उत्साहित थीं। रागिनी जी बाहर जा नहीं सकती थीं इसलिए लड़की और उसके चाचा चाची को ही घर बुला लिया गया । लेकिन मेहमानों के स्वागत के लिए कुछ तैयारी भी करनी होती है और खुद भी तैयार होना पड़ता है ।
कामवाली सफाई कर गई थी और चाय नाश्ते का इंतजाम भी हो गया था । लड़की वाले आने को थे तभी रागिनी जी गौतम जी से बोलीं, ” अजी, मैं तो बहुत बुरी लग रही हूँ । हाथ में दर्द है इसलिए दो दिनों से कंघी भी नहीं की । आप मेरे थोड़े बाल बनाने में मदद कर दीजिए नहीं तो मेहमान क्या सोचेंगे? ,,
गौतम जी अपनी पत्नी के बालों में कंघी करके चोटी बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन चोटी टेढ़ी मेढ़ी बन रही थी.. ।
रागिनी जी उन्हें बार बार बता रही थी लेकिन जो काम कभी न किया हो वो भला अचानक से कैसे किया जा सकता है….
चोटी बनाने की कोशिश जारी ही थी कि इतने में नेहा और उसके चाचा चाची आ गए ।
नेहा ने उन्हें देख लिया और बड़ी विनम्रता से बोली, ” अंकल जी लाईये चोटी मैं बना देती हूँ । ,,
रागिनी जी बोली, ” अरे नहीं बेटा, कोई बात नहीं आपलोग बैठो । ,,
लेकिन नेहा ने गौतम जी के हाथों से कंघी ली और रागिनी जी की चोटी बना दी। रागिनी जी तो उसी पल नेहा को अपनी बहू के रूप में देखने लगी थीं। नेहा थी भी बहुत प्यारी दोनों की रजामंदी से रिश्ता तय हो गया…. रागिनी जी तो फूली नहीं समा रही थी। रह रहकर ईश्वर का धन्यवाद कर रही थी और प्रार्थना कर रही थी कि उसे बस थोड़ी जिंदगी और दे दे….।
ज्यादा ताम झाम ना करते हुए सादे तरीके से विवेक और नेहा की शादी हो गई और नेहा बहू बनकर घर में आ गई…..।
आते ही उसने घर को संवारना शुरू कर दिया। रागिनी जी को नेहा में अपनी हीं छवि नजर आती थी। अब घर वापस से घर लगने लगा था।
एक दिन नेहा रागिनी जी के पास बैठी थी तो रागिनी जी बोलीं, ” बहू, अब मुझे इस घर परिवार की चिंता नहीं है.. यदि मैं ना भी रहूँ तो सबका खयाल रखना । ,,
ये सुनकर नेहा ने डांटते हुए कहा, ” मम्मी जी, आइंदा मुझसे ऐसी बातें मत करना नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करूंगी । … अपनी एक माँ को तो मैं खो चुकी हूँ लेकिन अब आपको नहीं खो सकती। ,, कहकर नेहा बच्चों की तरह रागिनी जी से लिपट गई। रागिनी जी की आंखें भर आई और उन आंखों में भगवान से बस इतनी दुआ थी कि उन्हें थोड़ी और जिंदगी दे दे …।
सच, जब जीवन में प्रेम और अपनों का साथ हो तो जीने की ललक भी बनी रहती है … ।
सविता गोयल
#मोहताज
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