भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

80 साल के लक्ष्मी नारायण जी और 75 साल की उमा जी जगह जगह किराए का मकान ढूंढते फिर रहे हैं । तभी रास्ते में अचानक से उनके पुराने मित्र गोपाल दास जी मिल जाते हैं ।अरे लक्ष्मी कहां घूम रहा है , अरे कुछ नहीं बस एक किराए का मकान ढूंढ रहा हूं । क्यों इतना बड़ा दो मंजिला मकान तो है

तुम्हारा गोपाल जी बोले।अरे नहीं अलग रहना है , क्यों।इस बुढ़ापे में अलग रहने का शौक चढ़ा है क्या , इतना बीमार रह चुका है तू  कितनी मुश्किल से ठीक हुआ है । यहां कौन देखभाल करेगा किराए के मकान में गोपाल जी बोले जा रहे थे।

तभी उमा जी बोल पड़ी बस भाईसाहब अब तिरस्कार नहीं सहा जाता।अलग रहेंगे तो कम से कम कडवी बातें तो दिनभर नहीं सुनेंगे। अपने मन का बना खा तो सकते हैं।

                  अच्छा गोपाल यार में बता चार साल पहले जो तुमने अपने मोहल्ले में मकान दिलवाया था क्या वो मिल सकता है क्या ,बड़ा अच्छा लगता था वहां , मकान मालिक भी बहुत अच्छे थे और मोहल्ला भी बहुत अच्छा था ।और उस मकान के पास बाजार भी नजदीक था जो कुछ भी चाहिए हो तुरंत मिल जाता था कहीं दूर नहीं जाना पड़ता था।और सबसे बड़ी चीज की बहुत सुंदर मंदिर था नजदीक में खाली समय में मंदिर चले जाते थे बुढ़ापे में और क्या चाहिए । अच्छा मैं देखता हूं कि उनका मकान खाली है कि नहीं गोपाल जी बोले।

                     गोपाल जी के घर के पास अरूण गुप्ता जी का मकान था।वो अपना मकान किराए पर देते थे।दो मंजिला मकान है नीचे वो खुद रहते हैं और ऊपर का हिस्सा किराए पर देते हैं।अरूण जी बस पति पत्नी थे एक बेटा था जो बाहर रहता था । बहुत ही शांत सीधे और सरल इंसान थे दोनों पति-पत्नी।

उन्हीं के मकान में चार साल पहले लक्ष्मी नारायण जी रहने आए थे ।छै महीने रह गए थे ।वो अपने बड़े बेटे के साथ रहते थे तो बेटे को मकान का ऊपर का हिस्सा बनवाना था । वहां रहकर मकान बनाने में लक्ष्मी नारायण जी को बहुत परेशानी हो रही थी । थोड़ी सांस की दिक्कत थी तो वहां धूल मिट्टी से परेशानी हो रही थी तो जबतक मकान बन रहा था वो यहां अरूण जी के यहां किराए से रह गए थे।

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                        लक्ष्मी नारायण जी को तीन बेटे थे ।दो तो इसी शहर में रहते थे और एक मुम्बई में रहता था । लक्ष्मी जी बड़े बेटे के साथ रहते थे और दूसरा बेटा तो आता जाता था लेकिन बहू मतलब नहीं रखतीं थीं। लक्ष्मी जी बिजली विभाग से रिटायर थे ।60 हजार रुपए पेंशन मिलती थी और  कुछ खेती बाड़ी थी

जिससे तीन लाख रूपए सालाना की आय हो जाती थी ।वो कुछ पैसे नाती पोतों की पढ़ाई में खर्च कर देते थे और घर बनाने में भी पैसे दिए ।अब इस उम्र में क्या करेंगे इतने पैसे रखकर। कुछ साल पहले लक्ष्मी जी का बड़ा एक्सीडेंट हो गया था। कहीं से आ रहे थे तो ट्रेन से उतरते समय गिर गए थे प्लेटफार्म आ नहीं पाया था

और वो उतर गए कुछ साफ-साफ दिखाई नहीं दिया । वहां पर कुछ बड़े बड़े पत्थर और गिट्टी पड़ी थी जिससे उनको बहुत छोटे आ गई थी । जिससे उनको ठीक होने में बहुत समय लग गया था । चलने फिरने में भी असमर्थ हो गए थे । लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

दवाई तो से ठीक होने के बाद उन्होंने योगासन और प्राणायाम से अपने आपको काफी ठीक कर लिया।अब कम से कम चलने फिरने लायक हो गए हैं । लेकिन एक्सीडेंट के दौरान कान में कुछ ज्यादा चोट लग गई थी जिससे वो सुन नहीं पाते हैं ।उस समय उनकी पत्नी उमा जी ने भी काफी सेवा सहाय की लक्ष्मी जी की और अब वो ठीक हो गए ।

               उनका जब घर बन रहा था तो काफी पैसा लक्ष्मी जी ने घर पर भी लगाया था ‌घ

र बनकर जब तैयार हो गया तो बड़े ख़ुशी ख़ुशी लक्ष्मी नारायण जी और उमा जी अपने घर चले गए थे ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌

मात्रछै महीने ही अरूण जी के घर पर रहे थे।अब अरूण जी का घर दो महीने पहले ही खाली हुआ है । बहुत अच्छी लोकेशन पर मकान है तो ज्यादा दिन खाली नहीं रहता जल्दी ही भर जाता है। गोपाल जी लक्ष्मी जी को लेकर अरूण के घर आए और अरूण जी का हाथ पकड़ कर जोर जोर से रोने लगे

कि मुझे मेरे बहू बेटे ने घर से निकाल दिया है तो मुझे अपने घर पर रख लें आप जो किराया कहेंगे वो मैं दूंगा । मुझे यहां आपके घर पर बहुत अच्छा लगता था ।अरूण जी बोले आपका तो मकान बन गया है फिर आप हमारे यहां क्यों रहेंगे । क्या बताएं भाई साहब बहू ने जीना हराम कर रखा है और बेटा

,वो भी कुछ नहीं बोलता । छोटा बेटा बहू भी नहीं रखना चाहते अब मैं कहां जाऊं।दिन भर की जली कटी सुन सुन कर जीना दूभर हो गया है । रसोई में बहू ताला लगा देती है एक कप चाय तक नहीं बना सकते।अब क्या क्या बताऊं मैं ।वो बराबर रोए जा रहे थे ।और कह रहे थे इस तरह तिरस्कार और अपमान की जिंदगी अब नहीं जिआ जाता।

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                 अरूण जी बोले लेकिन मेरे मकान का तो कोई और दो दिन पहले एडवांस दे गया है एक हफ्ते बाद आएंगे ।आप उनका एडवांस वापस कर दें आपका जो किराया होगा वो मैं दूंगा। लेकिन अभी आप कहां रह रहे हैं अरुण जी ने पूछा ,तो लक्ष्मी नारायण जी ने बताया बीस दिन से एक दोस्त ने एक कमरा दिया हुआ है

उसी में रह रहे हैं और बाजार से टिफिन मंगा लेते हैं बस ऐसे ही गुजारा चल रहा है ।उमा जी बोली हमने अपनी आंख का आपरेशन कराया था दिनभर रो रोकर आंखें और खराब हुई जा रही है।अब मैं नहीं रहना चाहती बहू बेटे के साथ।

               उनकी दयनीय दशा देखकर अरूण जी भी द्रवित हो उठे ।अरूण जी की पत्नी मधु जो सब सुन रही थी उन्होंने अरूण जी से कहीं सुनिए उनका एडवांस वापस कर दीजिए और इन अंकल को मकान दे दीजिए मुझसे इनका दुख देखा नहीं जा रहा है। लक्ष्मी जी बोले अपने पोते पोतियों को पढ़ाने का पूरा पैसा मैं देता हूं । आपके पास पैसा है तो ये स्थिति है यदि नहीं होता तो क्या होता ‌

            अरूण जी बोले अंकल आप परेशान न हों आप रहे हमारे यहां पैसे की भी कोई बात नहीं है जो आपको उचित लगे वो दे दीजिएगा।अब आप रोते नहीं ।ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा ।वो भी तो कभी बूढ़े होंगे और उनकी भी औलाद उनके संग वैसा ही करेगी ।

कल से ही आप आ जाइए सामान लेकर , सामान कुछ नहीं है बस पहनने के कपड़े और बिस्तर है बस बहू ने कुछ लाने ही नहीं दिया । यहां आकर जो जरूरत होगी खरीद लूंगा । नहीं आप हमारे पास जो भी सामान होगा वो ले लिजिएगा मेरे पास ऐसे ही रखा है आपके काम आ जाएगा।

            लक्ष्मी नारायण जी अपनी पत्नी के साथ आ गए दूसरे दिन रहने ।और खुश भी हैं लेकिन इस खुशी के पीछे एक दर्द भी है जो अंदर ही अंदर कितनी तकलीफ़ दे रहा होगा ये तो वही महसूस कर सकते हैं । ऐसी भी औलादें हो जाती है । कुछ समझ नहीं आता जिन्होंने जन्म दिया पाला पोसा बड़ा किया हर सुख-दुख में तुम्हारा साथ निभाया वहीं औलाद कैसे ऐसे निष्ठुर हो जाती है।

       बच्चों आप अपने मां बाप के साथ ऐसा न करें ।उनकी आहे न ले , उनको रूला कर आप कैसे सुखी रह सकते हो ।जो आज अपने माता-पिता के साथ कर रहे हो वही आपके बच्चे आपके साथ भी करेंगे। लक्ष्मी नारायण जी के तीन बेटे हैं तीनों ही नहीं रखना चाहते । कुछ तो ऊपर वाले से डरें जब उसकी लाठी चलती है तो आवाज नहीं होती ।

धन्यवाद

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

3 दिसंबर

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