असमय सुयश की आवाज से सुरेखा चौंक गई। आटे से हाथों से दरवाजा खोला,
आज ऑफिस से जल्दी कैसे। सुयश कहने लगे पहले एक गिलास पानी पिलाओ फिर मेरे पास आकर बैठो।
सुरेखा ने घबराहट में जल्दी-जल्दी हाथ धोकर पानी का गिलास सुयश को देकर जल्दी आने का कारण पूछा
सुरेखा शाम 4:00 बजे बड़े भैया का तुम्हारे मायके से फोन आया था बड़ी भाभी का एक्सीडेंट हो गया
और वह अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट है तबीयत काफी सीरियस है हमें सुबह ही जल्दी निकालना है।
कार्य से निवृत्ति हो तुम अपनी तैयारी कर लो मैं तब तक घर से ऑफिस के जरूरी काम निपटा लेता हूं।
रात को तैयारी से निवृत्ति हो सुरेखा मायके की याद में हो गई। कैसे महावर लगे कदमों से पायल की रुनझुन के साथ भाभी ने घर में कदम रखा था
दूध से उजली छरहरी देह कमर तक लहराते बाल और उसे पर निश्चल हंसी जो भी देखता देखता रह जाता पर शायद मां के भाग्य में बहू का सुख नहीं था
तभी तो भाई के ब्याह के दो महीने बाद ही अचानक एक दिन मां ऐसी सोई की फिर उठा ना पाए
मेरा तो रो रो कर बुरा हाल था। तेरह दिन तो मेहमानों के आने-जाने में गुजर गए मगर उसके बाद लगने लगा मेरा सब कुछ खत्म हो गया
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मगर वह भाभी ही थी जिसने मुझे मां की कमी महसूस नहीं होने दी नई-नई शादी में भैया को छोड़ मेरे पास सोना
उस समय तो नहीं समझी मगर अब लगने लगा नई-नई शादी में पति से अलग रहना कितना मुश्किल था और आज वही भाभी जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है आंसुओं से तकिया भीग गया
अस्पताल की सीढ़िया पर पैर रखते हैं भैया का उदास चेहरा बहुत पीड़ा दे गया पैर मनौ भारी हो गए मैं कैसे देख पाऊंगी अपनी भाभी को इस तरह जिंदगी और मौत से लड़ते
तभी डॉक्टर ने आकर भैया को बताया पेशेंट खतरे से बाहर है आप में से कोई भी एक जाकर उनसे मिल सकता है।
भैया कहने लगे सुरेखा तुम जाकर मिल लो वह बेहोशी में भी तुम्हारा नाम पुकार रही थी। मुझे देखकर भाभी ने आंखें खोली
और अपना हाथ मेरे हाथ में ले लिया जैसे कह रही हो पगली क्यों रो रही हो मैं हूं ना जैसे शादी से पहले हर परेशानी में रहती थी तू घबराती क्यों है मैं हूं ना।
मेरे सुख की है वह चाबी
मायके की खुशियां है भाभी
धन्यवाद
उषा विजय शिशिर भेरूंदा