” नैना, बहू , मीता बिटिया की शादी में तुम्हारे मायके से क्या- क्या आया, हमें भी तो दिखाओ |” नैना की चाची सास ने नैना से कहा |
” इसके मायके में है हीं कौन, जो कुछ भेजेगा |” सास ने मुंह बनाते हुए कहा |
” क्यों मां और भाभी तो है ना |” चाची सास ने कहा |
” अरे भाभी तो भाई के मरते ही भाग गई और माँ को तो अपने ही खर्च के लाले पडे हैं तो इसे क्या भेजेगी ? ” सास ने व्यंग से कहा |” अब सबका मायका हमारे मायके की तरह तो है नहीं जो बेटी की शादी में बेटी के कपड़े गहने के अलावा पूरे परिवार के कपड़े भेजे | ” जेठानी कहाँ चुप रहने वाली थी |यह कहते हुए नैना की ओर देखकर हंसने लगी |
” ये बात तो है, तुम्हारे मायके से तो तुम्हारी बिटिया की शादी में हम सबके कपड़े भी आये थे | वे लोग बड़े समझदार है |” चाची सास ने हंसते हुए कहा ” समझदार भी हैं और दिलदार भी | दूसरे उनकी क्या बराबरी करेंगे ?” जेठानी ने नैना को ताना मारते हुए कहा और जोर से हंसने लगी |
नैना से आगे सुना न गया | वह वहाँ से हट गई,पर उसके कानों में हंसी और तानों की आवाजें आती रही | वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी,पर अपनी बेटी की शादी में माहौल खराब नहीं करना चाहती थी, इसीलिए चुपचाप अपने पलंग पर बैठ गई | आज उसे अपनी भाभी सुजाता की बहुत याद आने लगी | न जाने कहाँ किस हाल में होगी?
नैना का मन अतीत में भटकने लगा | एक ही तो भाई था उसका रोहित | उससे तीन साल बड़ा था | उससे बहुत प्यार करता था | पापा एक कंपनी में काम करते थे | साधारण सा घर था उसका ,पर प्यार बहुत था | माँ रमादेवी और पापा सुधाकर बाबू मेहनती और समझदार थे | दोनों बच्चों का बहुत ध्यान रखते थे | वह घर की लाडली थी | उसकी हर फरमाइश पूरी की जाती थी | उसकी शादी रोहित से पहले ही एक अच्छे खाते पीते घर में हो गई थी | पति दो भाई में छोटे थे और एक कंपनी में नौकरी करते थे | सबकुछ तो ठीक ही था |
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दिक्कत तो तब शुरू हुई जब रोहित ने इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और उसकी नौकरी अपने ही शहर में लग गई | जब शादी की बात चलने लगी तो उसने बताया कि वह अपनी कंपनी में अपने साथ काम करने वाली संजना से शादी करना चाहता है | संजना के माता – पिता नहीं थे,वह अपने चाचा- चाची के साथ रहती थी | उन्होंने कहा कि वे संजना की शादी तो रोहित के साथ कर देंगे,पर दहेज या कुछ सामान नहीं देगे | रोहित को इससे कुछ लेना देना नहीं था,वह तो बस संजना से शादी करना चाहता था | माँ और नैना को मंजूर नहीं था |
उन्हें रोहित की शादी से बहुत आशायें थी | एक तो बिना तिलक – दहेज,लेन- देन की शादी और दूसरे संजना का साधारण रंग- रूप | उनका मन तो एकदम नहीं था,पर रोहित की जिद और पापा के समर्थन के आगे उनकी एक न चली | रोहित और संजना की शादी हो गई,पर मां और नैना उसे कभी दिल से अपना न पाये | उन्होंने सोचा था कि रोहित की शादी ऐसी जगह करेंगे कि उनका घर सामान, उपहार से भर जायेगा, गाड़ी मिलेगी,समाज में उनका सम्मान बढेगा ,पर ऐसा हो न पाया | उपर से उन्हें लगता था कि संजना ने रोहित को उनसे छीन लिया
| कभी मां अगर नरम भी पड जाती तो नैना उसे चढाती रहती | शादी के बाद संजना के प्रति भी रोहित की कुछ जिम्मेवारियां थी, जिन्हें अगर वह पूरा करता या संजना की तरफ से कुछ कहता तो माँ तो हाय तौबा मचाती हीं, नैना भी आग में घी डालती रहती | संजना जितना भी परिवार में मिलने के लिए सहनशीलता से काम लेती, उतना ही माँ क्रोध करती | नैना की शादी शहर में ही हुई थी | उसके एक बेटा, दो बेटी थे | वह अक्सर समय बेसमय आती रहती, अपनी खातिरदारी करवाती, मनचाहा उपहार लेती और माँ को उल्टी सीधी सिखाकर जाती |
संजना का काम पर जाना और माँ का घर के काम में सहयोग करना भी उसे नहीं भाता था | वैसे संजना आफिस जाने के पहले भी काम करके जाती और आफिस से आने के बाद भी काम करती थी | वह जब रोहित से कुछ कहती तो वह कहता, माँ दिल की बुरी नहीं है | थोड़ा धीरज रखो | समय के साथ सब ठीक हो जायेगा | मैं इनका इकलौता पुत्र हूँ, इन्हें छोडकर नहीं जाना चाहता | संजना रोहित की खुशी और रोहित तथा उसके पापा का अपने प्रति अच्छा व्यवहार के कारण चुप रह जाती | दो साल के बाद संजना को एक लडकी हुई
| पापा और रोहित तो खुश हुए, पर माँ खुश नहीं हुई | चार साल में संजना ने दूसरी बेटी को जन्म दिया, तो माँ और चिढ गई | उसी साल पापा जी चल बसे | माँ संजना को कोसने लगी | उसने अपनी तबियत का बहाना कर बच्चों को देखने से भी इंकार कर दिया | हांलाकि रोहित ने आया का इंतजाम भी किया,पर बच्चों की देखभाल ठीक से न होने के कारण संजना ने नौकरी छोड़ दी और सोचा कि बच्चे जब कुछ बडे हो जायेंगे तो फिर नौकरी पकड लेगी | जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, तभी अचानक आफिस से घर आते वक्त रोहित की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया |
रोहित को गहरी चोट लगी और दो दिन के बाद उसकी मृत्यु हो गई | संजना पर तो दुखों का पहाड टूट पडा | एक तो वह यों ही दुखी थी,उपर से माँ और नैना सारे दुखों के लिए उसे ही जिम्मेवार बताते | रात दिन उसे कोसते रहते | एकदिन नैना आई हुई थी, संजना को बुखार था,
उसकी तबियत खराब थी और उसने खाना नहीं बनाया | बस इसी बात पर मां ने उसे बहुत बुरा – भला कहा | संजना ने जब तबियत खराब होने की बात कही तो माँ और गुस्सा गई | उपर से नैना भी उल्टा सीधा कहने लगी | सुनते सुनते संजना से भी नहीं रहा गया | उसने एक दो बातों का जबाब दे दिया | इसपर माँ ने उसे बहुत सुनाया और धक्का देते हुए घर से चले जाने को कह दिया |
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संजना का धैर्य जबाब दे गया | चाचा – चाची तो उसे घर में रखते नहीं | अत: उसने अपनी एक सहेली को फोन किया और कपड़े और दोनों बच्चियों को लेकर उसके घर चली गई | सहेली और उसके पति ने उसकी काफी मदद की | अपने ही घर के बगल में दो कमरे का एक घर किराये पर दिला दिया | संजना ने प्रयास करके एक कंपनी में वर्क फ्राम होम की नौकरी पा ली | सहेली ने एक महिला की उसके घर के कामों में मदद के लिए रखवा दिया | शुरू में उसकी कुछ आर्थिक मदद भी की |
वे तो संजना को उसकी सास ननद के विरुद्ध पुलिस की मदद लेने की भी सलाह दिये , पर संजना अब उस घर में लौटना नहीं चाहती थी और न ही अपनी सास ननद से लडना चाहती थी | उसे लगता था ऐसा करने से रोहित की आत्मा को दुख होगा | उसने एक नई राह पकड ली और सब भूलकर अपनी दोनों बच्चियों की परवरिश में जुट गई | मन लगाकर काम करती गई और दिनोंदिन तरक्की करती गई |अपनी स्थिति में सुधार होने पर कई बार अपनी सास का हालचाल जानने उसके पास गई भी
, पर जब भी वह जाती रमादेवी नैना को झट फोन कर बुला लेती और दोनों फिर उसे उल्टा सीधा सुनाने लगते | हारकर उसने संपर्क खत्म कर लिया | रमादेवी नैना के भरोसे खुश थी तो नैना खुश थी कि संजना के न रहने पर मां का घर और जेवर उसी का होगा | इस बात को करीब पंद्रह सोलह साल हो गये | रमादेवी बूढ़ी हो गई थी | उसके सारे पैसे और गहने नैना ले चुकी थी | सिर्फ एक यह पुराना घर बचा था, जिसके एक हिस्से में किराया लगाकर रमादेवी किसी तरह अपना खर्च चला रही थी |
यह घर भी माँ ने उसे देने का वादा किया था और नैना जानती थी कि घर भी उसका ही होगा फिर भी उसे अपने नाम करने को कहती रहती |अपने घर तो न ले गई पर जब महीना पूरा होता तो आकर किराया लेती और माँ के खाने पीने का सामान और कुछ पैसे देकर चली जाती | रमादेवी जब पछताती और संजना को याद करती तो उसे उल्टा सीधा बोलकर समझा देती | उसकी संजना से नफरत अभी भी कम नहीं हुई थी, पर आज उसे संजना की बेहद याद आ रही थी | संजना के गुण याद आ रहे थे
| संजना तो अच्छी थी, वही उसे अपना न बना पाई | आज वह होती तो मायके की लाज जरुरी रखती | उसकी परिवार के सामने इसतरह बेइज्जती न होने देती |वह जरूर कुछ न कुछ करती | आज उसे अपने व्यवहार, गलती पर बहुत पछतावा हो रहा था |
” मम्मी, मम्मी, देखो नानी आई है | कितने सामान लाई है | ” छोटी बेटी नीता की आवाज़ से नैना की विचारधारा भंग हुई | नीता उसका हाथ पकडकर बाहर लाई | नैना ने देखा माँ एक अच्छी सी साड़ी पहने ढेर सारे समानों के साथ खडी है |
” यह क्या है माँ? ” नैना आश्चर्य चकित होकर पूछी | सभी आश्चर्य से देख रही थी |
” शादी का नेवता , मिठाई, सब परिवार के कपड़े, मीता बिटिया के कपड़े और यह रहा उसके लिए सोने का सेट | ” रमादेवी बैग से एक लिफाफा और डब्बा निकालकर उसे पकडाते हुए हंसकर बोली |
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” पर माँ, ये सब तुम लाई कहाँ से? ” नैना असमंजस में थी |
” संजना ने दिये हैं | ” माँ बोली |
” संजना, भाभी ने, पर वो तुम्हें कहाँ मिली | ” नैना कुछ समझ नहीं पा रही थी |
” अरे हमारे पडोस में शंकर बाबू की बहू है ना, उसे संजना की कंपनी में ही कुछ समय पहले काम मिला है | उसी ने संजना को मीता की शादी के बारे में बताया | संजना अब एक उंचे पद पर पहुँच गई है | वही मेरे पास ये सब लेकर आई और तुम्हारे यहाँ पहुंचाने को बोली |
” पर वो है कहाँ? ” नैना पूछी |
” गाड़ी में ही बैठी है | बोली आप ही भीतर जाइये | ” माँ बोली |
” क्या, वो आई है ? ” नैना दौडती हुई बाहर गई | संजना गाड़ी मोड चुकी थी |
” भाभी ” नैना दौडती हुई गाड़ी के आगे खडी हो गई | नैना को देखकर और उसकी आवाज सुनकर संजना रूक गई | दरवाजा खोलकर बाहर आई |
” भाभी ” नैना उसका पांव छूते हुए बोली -” आप महान है ं | आप आई |आपने मेरी इज्जत रख ली| मेरी सारी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दो | भीतर चलो |”
” पांव मत छुओ | ” संजना उसे उठाते हुए बोली -” तुम रोहित की छोटी बहन हो |मैंने भी तुम्हें छोटी बहन ही समझा है |मैंने रोहित को दिल से अपना माना था, तो उसके फर्ज भी तो मेरे हुए | रोहित भी रहते तो यही करते | बस इसीलिए मैने यह किया |” संजना ने कहा |
” मेरी प्यारी भाभी | ” नैना रोते हुए संजना के गले लग गई |
# भाभी
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |