भाभी – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

हेलो दीपिका कैसी हो , हां ठीक हूं भाभी।तुम लोग तो अपनी भाभी को जैसे भूल ही गई हो ।आज मैंने गीतिका को भी फोन लगाया था । जबसे सासूमां इस दुनिया से गई हैं तुम लोग तो मुझे और भइया को जैसे भूल ही गई हो अरे अभी भाभी भइया की भी खोज खबर ले लिया करो। क्या सिर्फ मां से ही रिश्ता था , मां के बाद भाई भाभी से भी तो कोई रिश्ता होता है न ।

दो साल हो गए मां को गए तुम लोग यहां आई ही नहीं पहले तो हर चार छै महीने में आ जाती थी ।वो भाभी बस ऐसे ही मां पापा नहीं है तो मैं ही नहीं करता आने को। कैसे रहूंगी वहां मां के बिना तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। वैसे तो यहां ससुराल में रहकर मां को भूली रहती हूं लेकिन वहां आने पर तो हर पल मां याद आएगी ।

भाभी बोली देखो दीपिका किसी के भी मां बाप जिंदगी भर नहीं रहते एक न एक दिन तो सबको जाना ही पड़ता है। क्या उनके बिना तुम लोग यहां आओगी नहीं।हम लोग भइया भाभी तो है न ऐसे मायका तो नहीं छूटता न ।आओ कुछ दिन रहो हमारे पास भी ।

                  इस बार बच्चों की स्कूल की छुट्टियां हो तो तुम दोनों आना अच्छा लगेगा हमें भी , अच्छा ठीक है भाभी कहकर दीपिका ने फोन कट कर दिया। दीपिका सोचने लगी आज भाभी को क्या हो गया है आने के लिए इतना मनुहार कर रही है । दीपिका ने गीतिका से बात की , गीतिका हां दीदी आज भाभी का फोन आया था,

हां मेरे पास भी आया था । बहुत कह रही थी आने को हां वही तो जब मां थी तो कभी हम लोगों को पूछती ना थी आज क्या हो गया है। बहुत कह रही थी आने को चलो इसबार दो-चार दिन को चलकर देखते हैं कैसा रहता है । अच्छा दीदी देखते हैं।

              दीपिका और गीतिका दो बहनें और दो भाई थे । दीपिका की बड़ी भाभी मां करूणा जी और पापा घनश्याम जी से अलग रहती थी ।जब करूणा जी और घनश्याम जी थे तो दोनों बेटियां बच्चों के स्कूल की छुट्टियां लगने पर मां के पास आ जाती थी और खूब मस्ती करती थी। लेकिन उस समय भी बड़ी भाभी दीपिका और गीतिका को अपने घर पर नहीं बुलाती थी

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बस मिलने आ जाती थी ।बड़ी भाभी का स्वभाव थोड़ा तेज तर्रार था ।जब करूणा जी और घनश्याम जी थे तो उनसे लड़ाई झगड़ा करके अलग रहने लगी थी ।और ये भी कहा था कि क्या मैं बड़ी हूं तो सारी जिंदगी सास ससुर और‌ देवर ननदों का ही करती रहूंगी क्या मुझे भी तो आजादी से जींने का हक है और‌वो‌अलग रहने लगी थी ।अब मां पिताजी का देवरानी करें । इसलिए बेटियां भी भाभी के पास न जाकर मां पापा के पास ही जाती थी ।

          पापा के न रहने पर मां छोटी भाभी के पास रहने लगी थी जो शहर से दूर रहते थे । चूंकि मां पापा रहे नहीं और छोटी है भी शहर से दूर रहती थी तो दीपिका और गीतिका का तो मायका ही छूट गया था।बेचारी अपने शहर जाने को तरसती थी । जहां बचपन बीता खेली खाईं उसका भूलना आसान नहीं होता। मां के जाने के बाद तो दोनों बहनों ने सोंच ही लिया था कि अब तो अपने शहर जाना होगा ही नहीं। इसी तरह दो साल बीत गए।

             ‌और आज भाभी का फोन आया बहनों के पास कि तुम लोग आओ तो बड़ा अच्छा लगा । वैसे फोन पर कभी कभार भाई भाभी  से बात हो जाती थी ज्यादा नहीं। लेकिन इस तरह आने के लिए मनुहार कभी नहीं किया। कुछ दिन बीतने पर भाभी का फिर फोन आया कि बच्चों की छुट्टियां लगने वाली है इसी समय तो तुम लोग आती थी

तो कब प्रोग्राम बना रही हो आने का ।इस तरह बार बार भाभी के कहने पर दीपिका और गीतिका ने तीन दिन का प्रोग्राम बनाया जाने का लेकिन थोड़ा दोनों के मन में डर था कि जाने कैसे रखेगी भाभी।

                आज दोनों पहुंच गई भाभी के घर। जोरदार स्वागत किया गया।खूब अच्छी अच्छी डिशेश बना कर खिलाई गई। हर समय कुछ न कुछ करने को तैयार रहती थी । घूमना-फिरना , बातें करना , हंसी ठिठोली में कब तीन दिन बीत गए पाता ही न चला । जाने का समय आ गया तीन दिन बीतते देर न लगी पर भाभी ने जाने न दिया टिकट कैंसिल करा कर तीन दिन और बढ़ा दिया । दीपिका से बोली अभी तो बच्चों की छुट्टियां पड़ी है इतनी जल्दी क्यों जाना।

                इतना अच्छा लगा इसबार एक हफ्ता रहकर भी मन न भरा । भाभी के इतने अच्छे व्यवहार से चकित थी दोनों बहनें । जाते समय जैसे करूणा जी विदाई करती थी बेटियों की उसी तरह भाभी ने भी किया । दोनों बहनों के लिए सुंदर सी साड़ी खरीदी और बच्चों के लिए कपडे , मिठाई सबकुछ वैसा ही ।

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और टीका करकें शगुन भी दिया हाथ में । दीपिका और गीतिका भाभी के गले लगकर रो पड़ी।और कहने लगी भाभी आज आपके साथ रहकर तो मां की कमी का पता ही न चला । बहुत अच्छा लगा भाभी । हां हां इसी तरह आती रहना जब मन करे और अपनी भाभी को मत भूलना । हां भाभी आते रहेंगे और‌ दोनों बहनों ने विदा ली।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

30 दिसंबर

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