स्नेहा का सामान पैक करते समय उसकी विदाई के ख़्याल से ही रह-रहकर आराध्या की आंखें भर आती थीं| अपनी आंखों की नमी को सबसे छुपा कर वह अपने काम में लगी हुई थी| बस! आज भर की ही तो थी स्नेहा! इस घर में कल पराई हो जाएगी|
सोचने बैठी तो लगा वक्त कितनी ज़ल्दी गुजर जाता है| लगता है जैसे कल की ही बात हो जब वह इस घर में सलिल की दुल्हन बन कर आई थी| हर पल लगता था जैसे कोई उसे छुप छुप कर देख रहा है.. पीछे मुड़कर देखती तो कभी परदे के पीछे छुप जाती, कभी दूसरे कमरे में भाग जाती.. एक दिन चुपचाप से जाकर उसने पकड़ ही लिया…
वह थी सलिल की छोटी बहन स्नेहा… जो उस वक्त मुश्किल से दस,ग्यारह साल की होगी|
एक भयानक कार एक्सीडेंट जिसने स्नेहा से उसके पापा को छीन कर मां को एक जिंदा लाश बना कर रख दिया था अपने साथ जैसे उसकी सारी हंसी-खुशी ले गया था| मां अर्थ विक्षिप्त सी हो गई थीं, कभी जोर जोर से रोने लगतीं, कभी बिल्कुल गुमसुम सी हो जातीं| कई डॉक्टरों को दिखा लिया पर उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था|
बड़ी ननद सरला दीदी भी अपनी ससुराल छोड़कर आखिर कब तक मायके की जिम्मेदारियां उठातीं.. घर को संभालने के लिए एक औरत की जरूरत थी और इस लिए सरला दीदी पापा के दोस्त की भतीजी आराध्या को अपनी भाभी बना कर घर ले आयीं…
आराध्या ने आते ही सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली.. मां की देखभाल के लिए एक नर्स के होते हुए भी उन्हें अपने हाथ से खाना खिलाना, उनकी चोटी बनाना, छोटी से छोटी जरूरत का ध्यान रखना उसे अच्छा लगता था..उसके आने से मां में भी एक बदलाव सा आ रहा था वह अब शांत रहने लगी थीं.. डरी सहमी स्नेहा का दिल भी वह प्यार से जीतने की… कोशिश कर रही थी…
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आराध्या रोज उसका टिफिन बनाती, पढ़ाई में मदद करती, सलिल से पूछ कर उसका मनपसंद खाना बनाती… वह कहते हैं ना कि प्यार से किसी का भी दिल जीता जा सकता है वह तो आखिर एक छोटी सी मासूम बच्ची थी.. पता ही नहीं चला उससे दूर भागने वाली स्नेहा कब उसे अपनी मां की तरह प्यार करने लगी.. उसने भी उसे अपने ममता भरे आंचल की छांव में समेट लिया..
शादी के 2 साल बाद जब उसने अंश और वंश दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया तब सबसे ज्यादा खुश स्नेहा ही थी.. उन्हें गोद में उठाए घूमती रहती… बड़ी बहन की तरह उनका ख्याल रखती.. दो बेटों के बाद आराध्या को लगा जैसे उसका परिवार अब पूरा हो गया है…
सलिल अपने बिजनेस में बहुत व्यस्त रहते थे.. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारी आराध्या ने बखूबी संभाल रखी थी.. अंश और वंश को बाहर खेलने ले जाना, उनका होमवर्क कराना यह सब स्नेहा करने लगी थी.. मां की तबीयत भी पहले से बेहतर थी.. अपने दैनिक कार्य अब वह खुद करने लगे थीं.. लग रहा था कि जिंदगी मैं सब कुछ ठीक हो रहा है.. लेकिन ऐसा नहीं था…
सलिल अपने बिजनेस के काम से बाहर गए हुए थे.. एक दिन रात को अचानक मां को सीने में दर्द की शिकायत हुई.. स्नेहा को बच्चों के पास छोड़ आराध्या उनको लेकर हॉस्पिटल जा रही थी कि रास्ते में मां अपने टूटी फूटी आवाज में उससे बोलीं…
“मुझे पता है मैं अब नहीं बचूँगी.. सलिल के पापा मुझे बुला रहे हैं.. मुझे वचन दो कि तुम स्नेहा का एक मां की तरह ख्याल रखोगी”..
“मां आप ज्यादा बात मत करो हम बस हॉस्पिटल पहुंचने ही वाले हैं…” आराध्या ने उन्हें चुप कराना चाहा..लेकिन उनकी उम्मीद भरी नजर आराध्या के ऊपर टिकी हुई थीं..
आराध्या बोली “मैं आपको वचन देती हूं आज से मैं दो नहीं तीन बच्चों की मां हूं… मैं स्नेहा का अपनी बेटी की तरह ख्याल रखूंगी”..
उसके इतना कहते ही मां ने उसकी बाहों में दम तोड़ दिया.. जैसे इन शब्दों को सुनने के लिए ही उनकी सांसें अटकी हुई थीं..
वह बिलख पड़ी.. मां इतनी जल्दी छोड़कर क्यों चली गयीं.. अब तो आपकी तबीयत भी ठीक रहने लगी थी.. आप घर में रहती थी तो यह एहसास रहता था कि किसी बुजुर्ग का साया सिर पर है…
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मां के जाने के बाद आराध्या बिल्कुल टूट सी गई थी वह गुमसुम बैठी रहती उस वक्त स्नेहा ने हौसला रखते हुए उसे संभाला.. आप ही इस तरह हिम्मत हार जाएंगी तो हम सब का क्या होगा? आपको तो मैंने हमेशा हंसते मुस्कुराते देखा है ..आपने हमारे घर को बिखरने से बचाया है ..आपके आने के बाद घर-घर लगने लगा… मेरे और भैया की जिंदगी में आप एक फरिश्ता बनकर कर आई हैं… अपनी मां को तो मैंने बरसों पहले खो दिया था अब तो सिर्फ उनकी इस घर से विदाई हुई है…
अपने तीनों बच्चों और सलिल की खातिर उसने मुश्किल वक्त में अपने आप को टूटने नहीं दिया.. और फ़िर अपनों के साथ और गुजरते वक्त ने धीरे-धीरे सारे घाव भर दिए.. उसके घर में भी खुशियों की दस्तक आनी शुरू हो गई..
समय अपनी निर्बाध गति से बहता चला जा रहा था.. अंश और वंश भी बड़े हो गए थे… चांदी के कुछ तार आराध्या के बालों में चमकने लगे थे… कल की मासूम सी स्नेहा जो आराध्या के पल्लू के पीछे छुपी रहती थी.. अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी.. कि एक बहुत अच्छे घर से उसका रिश्ता आया.. स्नेहा को भी रोहित पसंद आया और कल उसकी शादी है..
“मां आप यहां बैठी हैं, मैं आपको पूरे घर में ढूंढ आया.. पापा को तो कुछ पता नहीं है आप एक बार यह लिस्ट ध्यान से देख लीजिए कुछ छूट तो नहीं गया है..” अंश उसके पास आकर बोला…
“हां! सब ठीक है.. मैं यहां स्नेहा का सामान पैक कर रही थी.. कहीं कुछ छूट गया तो उसको वहां परेशानी होगी” वह अंश की लिस्ट देखते हुए बोली…
“क्या क्या पैक करेंगी आप भाभी! मेरा सब कुछ तो यही छूटा जा रहा है.. क्या आप मुझे वो प्यारे पल पैक करके दे सकती हैं जो मैंने इस घर में आप सब के साथ गुजारे हैं.. अंश,वंश के साथ मस्ती करना… लड़ना, झगड़ना.. मेरी हंसी, खुशी… आप का प्यार, दुलार ..मनुहार करके खिलाना …अपने साथ सुलाना.. भैया की डांट से बचाना.. ना जाने कितनी यादें जो मेरे दिल में बसी है उन्हें आप पैक कर सकती हैं ..
” बस कर स्नेहा”..!!! आराध्या रोते हुए बोली…
“आप मुझे अपने आप से दूर क्यों कर रही हैं भाभी! मैं आपको बहुत याद करूंगी.. आप तो मेरी मां हैं….
क्या मैं आपको भाभी मां कह कर बुला सकती हूं स्नेहा आराध्या के गले लग कर बोली…
“तुझे तो मैंने बहुत पहले ही अपनी बेटी मान लिया था.. कोई भी मां अपनी बेटी को अपने से दूर नहीं करना चाहती.. पता नहीं किसने यह रीत बनाई है कि लड़की को अपना घर छोड़कर ससुराल जाना पड़ता है…? मैं भी तो तुम्हारे घर आई थी कि नहीं…?
और तू कौन सा दूर जा रही है? इसी शहर में तो है.. जब मन करे मिलने आ जाना, मैं भी तेरे बिना कहां रह पाऊंगी स्नेहा” आराध्या का रोना बंद ही नहीं हो रहा था|
“अरे! क्या सारे आंसू आज ही खत्म कर लोगे आप लोग? विदाई तो कल है” वंश अपने आंसू पोंछते हुए बोला|
“बस अब कोई नहीं रोएगा.. आज आप लोगों के साथ कुछ खूबसूरत पल बिता कर मैं इस रात को यादगार बनाना चाहती हूं.. भाभी मां! अब बंद करो यह पैकिंग.. मैं तो आप लोगों के साथ बिताए पलों को अपने दिल में पैक करके ले जाना चाहती हूं… स्नेहा अपने आंसू पोंछ कर मुस्कुराते हुए बोली..
शाहीन खान
लुधियाना