अरे मिन्नी इतनी सारी वेराइटी ??
तुमने बनाई है
में मेरे लिए
व्हाट ए सरप्राइज़?
मिन्नि अपने बालो की एक लट को कान के पीछे करती हुई बोली ” नही सिधि ये तो परिवार के सब सदस्यों ने मिलकर बनाई है ।”
सिद्धि तपाक से बोली ” तुम्हारा दिमाग तो सही है कितना समझाया था अगर तरक्की चाहती हो तो परिवार
से दूर रहो पर तुम्हारे कानो में जू तक नही रेंगी।
मिन्नी अपने दोनो हाथो को अपने बगल में दबाए बोली
“देखो सिद्धि मैंने मैं तुम्हारा कहना मानकर आज तक पछता रही हु।”
पर सॉरी अब नही।
तुम्हे पता नही है।
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अंशु के सारे भाई एक साथ रहते है ,चार भाई एक रसोई
तुम नही समझोंगी।
मैं भी कहा समझ पाई थी।
तभी तो अपनी ही नजरो में गिर गई थी।
पर अंशु के परिवार वालों मुझे माफ कर फिर से दिल से अपना लिया।
और तुम्हे पता है अब मुझे इन सबके बीच में ही अच्छा लगता है।”
और फिर अपने ख्यालों में ही गुम हो गई।
मिन्नी एक रईस खानदान की इकलौती बेटी थी।
पापा सदा अपने बिजनस में लगे रहे बड़े से आलीशान घर में अकेले ही रहने की आदत सी हो गई थी।
कॉलेज में जब अंशु से मुलाकात हुई और बात आगे बढ़ी
और फिर दोनो ने ताउम्र साथ रहने का वादा कर लिया।
मम्मी ,पापा को तो लाडली ने अपनी हठ से मना लिया।
पर शादी होकर इस भरे पूरे परिवार में आई तो बड़ो का ,बच्चो का मेरे पीछे पीछे घूमना, मेरे मायके से आई किसी भी वस्तु को हाथ लगाना बिलकुल भी पसंद
नही करती थी।
इसीलिए अंशु से कह दिया मैं यहां नही रहूंगी।
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अंशु ने भी मिन्नी के हठ के आगे हार मान ली थी।
एक ,दो कमरे वाले फ्लैट में शिफ्ट हो गए थे।
एक दो महीने बाद ही अचानक मिन्नी की तबियत खराब हो गई।
प्लेटलेट्स में एकदम गिरावट आ गई।
मिन्नी के मायके से पैसा फेकने को सब तैयार थे पर मैचिंग का ब्लड ग्रुप मिलना मुश्किल था।
तभी अंशु के परिवार वाले आगे आए और सभी ने अपनी जांच करवाई आखिर देवर जी का ब्लड ग्रुप मिल गया।
तुरंत ब्लड चढ़ा दिया गया।
जब ठीक हो गई तब देवर जी छेड़ने लगे ” भाभी अब तो आपके अंदर भी हमारे खानदान का खून ही है तो इस वजह से हो गई ना आप भी हमारे घर की खास।
अब कभी मत कीजिएगा अलग होने की बात।
और सबकी सेवा और अपनेपन से
जल्दी ही हॉस्पिटल से मुक्ति मिल गई।
पर उन दिनों में एक बड़ी सीख से सामना हुआ।
वो था “वसुदेव कुटुंबकम”
“अरे मिन्नी तुमने अभी तक अपनी सहेली को खाना शुरू भी नहीं करवाया।
मैं तो गरम गरम फुलके सैक कर ला रही हु।”
जिठानी जी (अभेद्या) भोजन की थाली की तरफ इशारा करती हुई बोली
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ओह वो स सॉरी बस यूंही पुरानी यादों ने दिमाग को अपना परिंदा बना लिया था।
अभेद्या ने हंसते हुए चुटकी ली ” तो उन परिंदों को अब
उनके खुशनुमा वातावरण में उड़ जाने दो।
चलो खाना शुरू करो।”
देखो सिद्धि हमारे यहां तो यही वातावरण है।
हम सब एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते है।
तुम्हे पता है इस भोजन की थाली में हर रिश्ते के हाथो की मिठास और प्यार है।
सिद्धि और मिन्नी ने खाना खाया फिर घर के सभी सदस्यों ने उससे बहुत ही अपनेपन से बात की ।
सिद्धि को अपनी गलती का एहसास हो गया था।
जाते समय मिन्नी से गले लग कर कान मै बोली ” सॉरी यार अब इस घर की जड़ों को सींच कर रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है।
और दोनो एक दूसरे को देख मुस्कुरा दी।
दीपा माथुर