ए जी सुनो, अपनी संगीता विवाह योग्य हो गयी है. उसके लिये योग्य वर की तलाश करनी चाहिए. अपने अंतिम समय पर अम्मा हमारे हाथ में ही तो संगीता का हाथ दे गयी थी. सुन रहे हो ना?
हाँ – हाँ भागवान सब सुन भी रहा हूँ और सोच भी रहा हूँ. संगीता तब 10 वर्ष की रही होगी जब माँ असाध्य बिमारी से चल बसी थी और मुझे सौप गयी थी संगीता को, जो मेरी ही छोटी बहन थी.
माँ की उस बीमारी के उपचार में घर का सब कुछ तो समाप्त हुआ ही, फिर भी माँ बच ना सकी. बाद में जैसे तैसे पुनः नौकरी तलाश की और घर गृहस्थी को संभाला, संगीता को पढ़ाया लिखाया.
अपनी सीमित आय में उसके विवाह के लिये कुछ जोड़ तो पाया ही नही. भगवान कैसे कर पायेंगे अपनी संगीता के हाथ पीले, कैसे माँ की आत्मा को शान्ति मिलेगी, कैसे अपने कर्तव्य का निर्वहन कर पाऊँगा? ये सोच सोच कर मन मष्तिष्क मेरा साथ छोड़ देता है. तुम क्या सोचती हो संगीता की मुझे चिंता नही अरे तुम्हारी तो ननद है, पर मेरी तो छोटी बहन है. बेटी की तरह पाला है उसे, करूँ तो क्या करूं?
आप का दुःख और विवशता मैं समझ रहीं हूँ, पर वो मेरी भी तो बेटी ही है, उसे देखती हूँ, उसकी सुन्दरता, भोलापन और आज का ज़माना, बस दिल में एक डर सा बन जाता है. पता नही भगवान कहाँ छुपा बैठा है?
अचानक ही संगीता सामने आकर कहने लगती है भैय्या भाभी, क्या ये घर मेरे लिये पराया है? क्या मुझे नहीं पता कि अपना घर भैय्या कैसे चलाते हैं और कैसे मुझे उन्होंने अभावों में भी MBA कराया है? क्या मेरा कोई कर्तव्य अपने घर के प्रति नहीं बनता है?
मैं तो अपनी नौकरी मिल जाने की खुश खबरी सुनाने आयी थी, और यहाँ आप मेरी शादी की चिंता में मग्न है. भैय्या मैं अभी शादी नहीं कर रही हूँ, पहले घर सम्भाल ले, बाद में शादी होगी. भाभी आपसे संस्कार सीखे हैं, पर हर किसी से डरना नहीं, इतना भोला पन भी नहीं कि कोई मुझे छुई मुइ ही समझ ले.
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आज से मेरे लिये चिंता समाप्त. घर भाभी संभालेगी और मैं और भैय्या. नौकरी करेंगे और अपने पुराने वैभव को वापस लाएँगे.
संगीता को देख आज लग रहा था मानो माँ सामने खड़ी हो कह रही हो, मुन्ना मैं हूँ ना, क्यों चिंता करता है रे?
बस, आँखों से बहते आँसू और संगीता के सिर पर रखा हाथ ही मन के आवेग को रोकने का प्रयास मात्र था.
अचानक ही मेरे मुहँ से निकल ही गया भागवान देख यह तेरी ननद नहीं है, ये तो माँ वापस आ गयी है रे….
बालेश्वर गुप्ता
पुणे (महाराष्ट्र)
अप्रकाशित और मौलिक.