कुछ दिन पहले ही मेरे पति का तबादला दिल्ली के नोएडा में हुआ। म। मेरे दो बच्चों, पति के साथ नए फ्लैट में रहने आ गई । कुछ दिन मुझे अपना सामान सैट करने में और बाकी सब व्यवस्था में लगा फिर मैंने नोटिस किया कि हमारे जो फ्लैट के पासवाला घरहै।
उनकी बालकनी और मेरी बालकनी आमने सामने ही थी। वहाँ पर एक आँटीजी सारा दिन बैठीरहती थी। मैंने उन्हें नमस्कार किया और उन्होंने भी मेरा अभिवादन किया उसके बाद मैंने देखा कि उनके घर में एक महिला
जो मेरी ही उम्र की थी वो सारा दिन घर के कामों में लगी रहती थे। भाग दोड़ किया करती थी और आंटी जी पूरा दिन बाहर कुर्सी पर ही होती थी। मैं वहाँ पर कामकाज के लिए काम वाली। म
की तलाश में थी। तभी मुझे लगा कि क्यों न मुझे मुझे मेरे पड़ोस में से पूछ लेना चाहिए। मैंने आंटी
घर की बेल बजाई और पूछा कि आपके घर जो काम करने वाली बाइ आती है वो मेरे घर भी करेगी क्या? उन्होंनेने बोला नहीं , मेरी बहू ही सारा काम कर लेती है। तभी किसी ने घूंघट की आड़ में मुझे शर्माते हुए से देखा। तब मुझे पता चला कि वो उनकी बहू थी। उसके बाद मुझे काम वाली मिल गई
थी पर मैंने देखा कि उनकी बहू कभी घर के बाहर भी नहीं दिखती थी। बच्चों को फ्लैट से नीचे तक ले जाने जाने का काम भी उनकी दादी ही किया करती थी। वो सारा दिन काम में लगी रहती थी। एक दिन अचानक उनकी बहू मुझे नीचे लिफ्ट में मिल गई। मैंने उन्हें नमस्ते किया।और बोला
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” आप कभी सोसाइटी में बगीचे में दिखते नहीं हैं??? तो बोली -” घर के काम में ही मेरा वक्त निकल जाता है मेरी सासूजी काम में कोई मदद नहीं करवाती। और ना ही कोई काम वाली लगाने देती हैं मैं ही सारा घर का।काम संभालती हूँ। और वक्त उसी में गुजार देती हूँ। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ
और मैने अचानक पूछा” भाभीजी इतना कुछ अब कैसे सह लेती हैं।” जबकि उनके पति कि फ़ैक्ट्री में मैनेजर के जॉब पर थे, पर वो बोली कि मेरे पति ने भी कभी मेरा साथ नहीं दिया है वो भी अपने माँ के जैसे ही है। इसलिए मैंने अपने जीवन को घर के काम में ही झोंक दिया है मेरे बच्चे भी मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करते। वो भी मुझे काम वाले से ज्यादा नहीं समझते हैं। मेरे को बहुत बुरा लगा और मैं फ्लैट में आ गई। पर मुझे लगा। क्या मुझे उस बहू के लिए कुछ करना चाहिए?
2- 3 दिन बाद हमारे फ्लैट की किटी पार्टी थी। मुझे पता था उसकी सांस उसे सीधे तरीके से जाने नहीं देगी परंतु उसकी बहू को ले जाना थोड़ा जरूरी हो गया था। मैंने उनके घर की बेल बजाई और आंटी जी से पूछा, आप की बहू घर पर है??? उन्होंने बोला उसके पास वक़्त नहीं है। अभी वो काम में है।
मैंने बोला कि मेरे घर पर कोई मेहमान आए हैं। और मुझे अच्छे से खाना बनाने में थोड़ी मदद मिल जाएगी । उसकी सास ने बुझे मन से कहा-” हाँ ठीक है ले जाओ पर एक से 2 घंटे में वापिस भेज देना। मैंने कहा हां आंटी जी सिर्फ इतना ही वक्त लगेगा। फिर मैंने उसे बुला लिया और उसकी बहू को मेरे ही
अच्छे से कपड़े देकर पार्टी में साथ ले गई। उसे वहां बहुत बहुत मजा किया।परन्तु वे डरी हुई भी थी। कि कोई उसकी सास को कह ना दे कि वो कहाँ गई हैं ? पर बश फ्लैट की सभी महिला को बोल दिया था कि उसकी सांस को कुछ पता ना लगने दें। उसके बाद अक्सर मै किसी न किसी काम के बहाने उसकी बहू को ले जाती।
सासू अपनी अच्छी छाप बनाने के चक्कर में मुझे कभी मना भी नहीं करती थी। परन्तु एक दिन जब मै उसे ले जाने गई उसकी साँस में बोला-” तुम्हारा जाने क्या जादू है। जब से तुम मेरी बहू को कहीं ले जाती हो उसके बाद वो आने के बाद बहुत खुश खुश सी दिखती है। और बहुत जल्दी जल्दी काम में हाथ चलाती है। फिर मैंने उसकी सास को समझाया
कि” मैं उसे जहाँ ले जाती हूँ। कुछ पल के लिए अपनी जिन्दगी जी लेती है थोड़ा हँसती है। बोलती है ।और खुश हो जाती है। तो उसका घर आ कर के, फिर काम में भी मन लगता है। परन्तु अब सारा दिन उसे कोल्हू के बेल की तरह काम कराओगे। तो उसे घुटन ही होगी। और उसके काम में भी रुचि नहीं रहेगी।
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रोज की एक जैसी जिंदगी जीकर और नीरस सी हो गई थी। आप उसे थोड़ा प्यार दीजिए ,थोड़ा बाहर आने जाने दीजिए उसे उसके पति का साथ चाहिए। अगर वो अपने पति के साथ हँसेगी बोलेगी साथ रहेगी वो हर काम को बहुत अच्छे से कर पाएगी। और अगर आप और आप का बेटा उसकी इज़्ज़त करेंगे उसे इज्जत देंगे।
तो उसके बच्चे भी उसको सम्मान देंगे। उसकी सास को मेरी बात बहुत ठीक लगी क्योंकि वो दिल से तो अपनी बहू को चाहती थी परंतु अपने नियंत्रण में रखने के चक्कर में सारा दिन उससे काम करवा देती थी पर उसे लगता था तो उसकी बहू को बाहर भेज कर वो बिगड़ जाएगी
परन्तु जब उसने देखा कि उसकी बहुत थोड़ा बहुत भी बाहर निकलती है सब्जी लेने जाती है। बच्चों को छोड़ने जाती है। कोई काम के लिए जाती है तो वहां से वापस आकर बहुत उत्साह से काम करती है। उसने अपनी बहू को बुलाया। और बोला के बेटा -“मैंने तुझे बहुत दबा के रखा परन्तु मुझे समझ के आ गया कि दबाकर किसी को अपना नहीं बनाया जा सकता। तूने बहुत कुछ सहन किया है। अब तू मेरा प्यार से मेरे साथ रहे और हम दोनों एक सहेली की तरह रहेंगे। बहू ने मुझे देखकर आंखों आंखों में धन्यवाद दिया। इस तरह जो बहू सब कुछ सहन करती थी उसके जीवन में खुशी आ गई।
लेखिका : नीशा केला माहेश्वरी
कॉलोनी अल्कापुरी चौक सुरेन्द् नगर गुजरात