जब बेटियां स्कूल जाती है ।तभी से उनके दिमाग में यह चीज धीरे-धीरे से डाल दी जाती है। एक बार सरकारी नौकरी लग जाए तो जिंदगी के लिए रोटी है जिंदगी के सारे संघर्ष खत्म,जिंदगी बड़े आराम से कटती है ।बेटियों के लिए तो सरकारी नौकरी ही सबसे अच्छी होती है। उस पर शिक्षिका की नौकरी तो सोने पर सुहागा यहां पर मैं बात दिल्ली-एनसीआर कि नहीं कर रही हूं बल्कि उन छोटे शहरों की कर रही हूं जो बहुत ज्यादा आर्थिक रूप से विकसित नहीं हो पाए हैं या वहां बड़ी-बड़ी कंपनियां फैक्ट्रियां या उद्योग धंधे नहीं है ज्यादातर लोगों की जीविका खेती पर आधारित है या छोटा मोटा और कोई क्रियाकलाप से आर्थिक क्रियाकलाप चलते हैं
बेटी ही क्या इन छोटे शहरों में बेटों को पढ़ते टाइम नौकरी ही उनकी सफलता का पैमाना माना जाता है ।
बच्चे बड़े जी जान से पढ़ाई में जुट जाते हैं या यूं कहें बचपन से ही नौकरी यानी गुलामी की शिक्षा दी जाती है परिवार द्वारा या स्कूल द्वारा माता-पिता भी सरकारी नौकरी लग जाने पर अपनी जिंदगी का उद्धार समझ लेते हैं ।बेटों की बात तो हम यहां इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि बेटों के पास पर्याप्त समय होता है अपने कैरियर को सेट करने के लिए वह अपनी शादी आगे पीछे बढ़ा सकते हैं या अपने मम्मी पापा को किसी भी तरह से समझा सकते हैं लेकिन यहां बात बेटियों के साथ ठीक विपरीत होती है जब उनकी पढ़ाई लिखाई खत्म होती है
तो उसके बाद एक सरकारी नौकरी की जुगाड़ करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इतनी ज्यादा प्रतियोगिता है उन प्रतियोगिताओं को तोड़ने के लिए अच्छे खासे समय की जरूरत भी होती है
तैयारी करते करते उनकी शादी की उम्र हो ही जाती है फिर उनके परिवार वाले बिल्कुल भी प्रतीक्षा करने के मूड में नहीं होते हैं लिहाजा उन्हें शादी की स्वीकृति देनी ही पड़ती है। और यह भी कह सकते हैं। बेटियां तो सिर्फ सरकारी नौकरी के लिए ही बनी हैं ।और कोई क्रिया का आर्थिक क्रियाकलाप तो वह कर ही नहीं सकती इस तरह की मानसिकता हमारे शहरों में है। जब मैं पढ़ाई कर रही थी
तो मुझे सफलता का मापदंड नौकरी ही लगता था पढ़ने में ठीक-ठाक थी तो मेरी दादी मुझसे कहती बेटियों के लिए मास्टरनी से अच्छी नौकरी हो ही नहीं सकती,,, आराम से नौकरी करो और घर देखो जबकि मेरी इच्छा तो कुछ और ही होती थी कुछ अलग करने की क्योंकि घर में कोई भी शिक्षक नहीं था बचपन से ही व्यापार और दुकानदारी ही देखी थी तो यही अच्छी लगती थी
लेकिन उस दौर में बेटियों के लिए उद्योग धंधा व्यापार तो कोई सोच नहीं सकता था शायद किसी लड़की की भी हिम्मत ना हो सोचने की लेकिन मेरे किसी कोने में यह इच्छा दबी हुई थी यह बात भी मेरे दिमाग में बैठा दी गई थी नौकरी से अच्छा कुछ नहीं उसमें भी शिक्षिका की नौकरी बेटियों के लिए बहुत अच्छी होती है फिर इसमें में जुट गई सारी पढ़ाई शिक्षिका के सारे मापदंड जो होते हैं उन्हें पूरा किया टेट क्लियर किया जिसे लगभग 11 साल हो गए होंगे यूपी में तब पहली बार ही आया था
तब की बात है। आज तक कुछ नहीं हो पाया वैकेंसी आती है हड़ताल होती है कोई कोर्ट जाता है वैकेंसी पर स्टे लग जाती है हड़ताल होती है बहुत सारे समय की बर्बादी इस समय को किसी और में इस्तेमाल किया होता तो तस्वीर कुछ और होती कुल मिलाकर यह कहना चाहती हूं जिंदगी के बहुत सारे साल इसमें खराब हो जाते हैं बार-बार तैयारी करना फार्म भरना टेस्ट देने जाना इसमें बहुत सारा खर्चा भी होता है साथ ही साथ पूरा परिवार बच्चे सब डिस्टर्ब होते हैं। यह बात भी सही है कि सभी के लिए सरकारी नौकरी उपलब्ध हो ही नहीं सकती क्योंकि जनसंख्या बहुत ज्यादा है।
लाखों में फॉर्म भरे जाते हैं कंपटीशन बहुत ज्यादा हो जाता है। और लगभग आधी उम्र निकल जाती है या यूं कहूं कुछ लोग तो ओवरेज भी हो जाते हैं इन्हीं तैयारियों में हताश भी होते हैं। बेटों को पढ़ने का पर्याप्त समय मिल भी सकता है लेकिन बेटियों को अपनी शादी के बाद प्रतियोगी परीक्षा एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए माइंड भी बहुत फ्रेश चाहिए और टाइम भी चाहिए जो शायद कम ही मिल पाता होगा अगर जिनको मिल जाता है वह बहुत भाग्यशाली होती होंगी और बेटियों की जी जान से की हुई पढ़ाई डिग्रियां ऐसे ही पड़ी रहती हैं।
कभी-कभी लगता है कि शायद सारी डिग्रियां पढ़ाई की शादी के लिए ही ली थी जिससे पढ़ाई लिखाई से प्रभावित होकर अच्छे घर में शादी हो जाए केवल व्यावहारिक ज्ञान ही काम में आता है। या शिक्षा बच्चों के पठन-पाठन में काम आ जाती है लेकिन वह शिक्षा आर्थिक क्रियाकलाप के लिए बिल्कुल निष्क्रिय हो जाती हैं इसलिए मेरा यहां व्यक्तिगत विचार हैं।
कि बेटियों को सरकारी नौकरी के पीछे टाइम खराब नहीं करना चाहिए कोई प्रोफेशनल कोर्स करके जल्द से जल्द अपनी सफलता अर्जित करनी चाहिए और आप इसमें बहुत जल्दी सफल भी हो जाओगे समय रहते कोई आर्थिक क्रियाकलाप जरूर करना चाहिए जो तुम्हारे भविष्य को मजबूती दे मैं तो समझती हूं नौकरी से ज्यादा महिलाओं के लिए अपना उद्योग व्यापार बिजनेस ज्यादा अच्छा है। जिसमें वह अपने घर बच्चों को बड़े आराम से देख सकती हैं और इसमें आपका भविष्य नौकरी से ज्यादा उज्जवल होगा टाइम लगता है लेकिन आप किसी के लिए उदाहरण बन सकते हो सरकार भी महिलाओं को उद्योग धंधों में आने के लिए लगातार प्रोत्साहित करती रहती है पुरुषों से ज्यादा सब्सिडी मिलती है किसी उद्योग धंधे को लगाने के लिए और महिलाएं आगे भी आ रही हैं
नए नए आयाम स्थापित कर रही हैं बिजनेस में जब अच्छी पढ़ी-लिखी महिलाएं आएंगी तो आने वाले समय में महिलाएं आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न और सशक्त होंगी पढ़ी-लिखी होने के बाद भी बेटियों का अपनी योग्यता के अनुसार काम ना कर पाना देश के मानव संसाधन की बर्बादी ही कही जाएगी,,, बात कैसे भी कह लो मान सम्मान तो आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने पर ही महिलाओं का बढ़ेगा इसलिए अपनी योग्यता के अनुसार जरूर कुछ ना कुछ करना चाहिए केवल सरकारी नौकरी को ही बेटियां अपनी सफलता का पैमाना ना बनाएं ना बनने दे
सरकारी नौकरियां सीमित है इसलिए और क्षेत्रों में सफलता की अपार संभावना है। अगर नौकरी नहीं मिली तो अपनी योग्यता को बेकार ना जाने दे कुछ ना कुछ आर्थिक क्रियाकलाप जरूर करें और अपने परिवार में आर्थिक भागीदारी जरूर दें जिससे आप में आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और आप अपने बच्चों की आदर्श बन पाएंगे ऐसा बिल्कुल ना समझे अगर आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है तो वह महिलाएं अपने बच्चों की आदर्श नहीं बन सकती,, मेरा यह अभिप्राय बिल्कुल भी नहीं है।,, जब महिला आर्थिक रूप से परिवार में भागीदारी देती है
तो वह अप्रत्यक्ष रूप से देश के आर्थिक उन्नति में उसकी भागीदारी हो जाती है। इसलिए देश के उत्थान के लिए आगे बढ़े आर्थिक रूप से सशक्त महिला मजबूत महिला साबित होती है। इसलिए सरकारी नौकरी का मोह छोड़,,, अभी एक आम महिला के लिए व्यापार में जाना असाधारण जरूर लगता है। लेकिन मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में यह साधारण जरूर होगा ,,जो है। उसी को हम अपना संसाधन बनाएंगे और मजबूती से आगे बढ़ेंगे ,,,,,,,, ,,,,,,,,,,
मंजू तिवारी, गुड़गांव।