बेटियां क्या सचमुच पराई होती हैं? –  शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बचपन से हर मां पर एक ही लांछन लगाया जाता है,परिवार के लोगों के द्वारा ,कि बेटे को ज्यादा प्यार करतीं हैं।श्यामा ने भी हंसकर यह लांछन लिया था अपने स्नेह पर।बेटी पापा की लाड़ली और बेटा मां का।अनचाहे ही मांएं पक्षपात करतीं हैं बेटे-बेटियों में,यह श्यामा स्वयं ही स्वीकार करती थी।शायद बुढ़ापे में एक सशक्त सहारे का प्रतिनिधित्व करतें हैं बेटे,और मांएं परजीवी बनकर खुशी-खुशी जीना पसंद भी करतीं हैं।मन के किसी कोने में कड़वा परंतु सच हमेशा कुलबुलाहट करता रहता है कि, बेटी तो पराया धन है।अपनी गृहस्थी और ससुराल ही संभालेंगी,बूढ़े मां-बाप का ख्याल चाहकर भी नहीं रख पाएगी अपनी मांओं की तरह ही।

श्यामा के बेटे की शादी हो रही थी। बहुत लाड़ से बहू को ब्याहकर लाई थी श्यामा।बुआ सास ने चेताया था”अरी बहुरिया,बेटे के मोह में पड़कर बहू को सर में मत चढ़ाना।ब्याह के बाद बेटा भी पराया हो जाता है।”श्यामा इस सत्य से अवगत थी।पहले से ही तैयार थी कि बेटे को कभी मां और पत्नी के बीच चयन प्रक्रिया से गुजरने नहीं देगी।उसने अपने पति को भी इस यंत्रणा से मुक्त रखा था।ना कभी चुगली की सास की और ना ही मां- बेटे के बीच दरार पड़ने दी थी उसने।

ननदों के बर्ताव से एक बात तो सीख ली थी उसने कि सास बुरी नहीं होतीं,बेटियां मां को भाभी के नज़दीक आते हुए देख नहीं सकतीं शायद।

खैर श्यामा को ख़ुद की ज़िंदगी ने बहुत सबक सिखाया था,सो वह बेटे के पराए हो जाने से पहले ही तैयार थी।अब दो साल बाद बेटी की शादी हो रही थी।बहू हर काम में हांथ बंटा रही थी।बहू से अवांछित प्रत्याशा नहीं रखने के कारण,बहू स्वयं ही बेटी बन गई थी।श्यामा ने इस सच को झुठला दिया था कि, शादी के बाद बेटा पराया हो जाता है।उसने बेटे और बहू के बीच कभी आने का प्रयास ही नहीं किया।बेटे का एक बच्चा भी हो गया था।नाती को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखकर संभालती थी वह।हर मां को अपने बच्चे के पालन – पोषण की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए,ऐसा श्यामा ने अपनी सास से ही सीखा था।बेटी की विदाई हो गई।शादी कुशलता पूर्वक निपट गई थी।श्यामा ने अपने बेटे- बहू को इस बात की बधाई दी कि उन्हीं के सहयोग से यह शादी निपट सकी।

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बेटी पहली बार पगफेरे में आई दामाद के साथ।भाई ने यथासंभव आवभगत की और बहू ने भी अपनी ननद को उचित स्नेह और सम्मान देकर श्यामा के मन से बहुत बड़ा बोझ हल्का कर दिया था।श्यामा बेटी से मिलकर उसके नए घर(ससुराल)के बारे में, सास-ससुर के बारे में और दामाद के बारे में पूछना चाह रही थी।अचानक से बेटी में आए बदलाव को हजम नहीं कर पा रही थी वह।तीन दिन कैसे बीत गए,पता ही नहीं चला।विदाई की रस्में पूरी कर श्यामा बेटी को जाते हुए देख रही थी।मन बहुत उदास हो गया था।बेटे ने शायद पढ़ लिया था श्यामा को मन।बोला”मां,क्यों दुखी होती है?सुधा खुश हैं वहां।सभी बहुत ख्याल रखतें हैं उसका।अब जब अगली बार आएगी,हम रोक लेंगें ज्यादा दिनों के लिए।तुम ढेर सारी बातें कर लेना तब।तुम्हारी सेक्रेटरी थी ना सुधा,इसलिए अब बुरा लग रहा है।कोई भी काम बिना उसकी सलाह के कहां करती थी तुम?”

श्यामा हंस दी बेटे की बात सुनकर, बोली” हां रे! तुझे मालूम है ना ,कैसे मेरी आवाज़ सुनकर समझ जाती थी कि मैं दुःखी हूं।मुझे क्या चाहिए,तुझे क्या चाहिए,कभी बताना ही नहीं पड़ा था उसे।हम दोनों को उसने कितने अच्छे से संभाल लिया था ना पापा के जाने के बाद।अब देख दो मिनट का समय भी नहीं मिला उसे,मां से या तुझसे बात करने का।” ” छोड़ो ना मां,नई गृहस्थी है,नई जिम्मेदारियां भी तो आ गईं हैं उस पर।उसके लिए भी तो मुश्किल हो रही होगी, सामंजस्य बिठाने में। धीरे-धीरे वह सामान्य हो जाएगी।तुम अब इस बात को लेकर सोचने मत बैठना आदतन।”,बेटा समझाते हुए बोला,तो श्यामा को उसकी बात ठीक ही लगी।

सारे त्योहार तो ससुराल में ही मनाना पड़ेगा ,यही सोचकर श्यामा ने बेटी को बुलाना उचित नहीं समझा।भाई दूज के दिन बेटा ख़ुद ही अपनी पत्नी और बेटे के साथ बहन के घर जाने की तैयारी करने लगा,तो श्यामा ने सुधा के लिए शादी में मिले उपहारों में से बचाकर रखी एक अंगूठी और दामाद के लिए मंहगी उपहार भेजा।दो दिन बाद आने वाला बेटा अगले ही दिन वापस आ गया तो श्यामा ने वजह पूछी।बहू ने बोला”मां,मैंने पहले ही बोला था आपके बेटे को कि,सुधा को बता दे हमारे जाने की बात।ये तो अचानक पंहुचकर उसे सरप्राइज देना चाहते थे ,पर उसे कहां मालूम था।वह और ननदोई जी घूमने गएं हैं वैष्णो देवी।हम उनके माता -पिता से मिलकर आ गए।” बहू की सुलझी बातें सुनकर श्यामा निश्चिंत हो गई थी।

अब बेटी मां बनने वाली थी।नौंवें महीने में उसे बुला लिया था श्यामा ने।उसने बेटी को जन्म दिया।दामाद भी आ गए थे।भाई- भाभी मिलकर सुधा की हर जरूरत का ख्याल रख रहे थे।सवा महीने होते ही पूजा के बाद दामाद जी सुधा को लेकर चले गए।जाते समय सुधा श्यामा से वादा लेकर गई थी कि बच्ची के अन्नप्राशन में उसे कम से कम दस दिन पहले जाना होगा।

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देखते-देखते बच्ची के अन्नप्राशन का दिन भी निश्चित हुआ।श्यामा और बहू जा रहे थे सुधा की ससुराल।बेटा कंपनी के काम से बाहर गया था।तय हुआ कि वह वहां से सीधा सुधा की ससुराल पहुंच जाएगा।श्यामा बहू और नाती के साथ सुधा की ससुराल पहुंची।साथ में उपहार और रिवाज के हिसाब से जो भी सामान लगता लेकर गई थी।बैठक में दस मिनट इंतज़ार करने के बाद सुधा की सास आईं।श्यामा को देखकर काफी असहज होते हूं बोलीं”अरे!बहन जी,सुधा ने आपको खबर नहीं की?”श्यामा हड़बड़ाते हुए बोली”कैसी खबर बहन जी?”

“देखिए आपकी बेटी कितनी गैरजिम्मेदार निकली।उसे बताना चाहिए था कि अन्नप्राशन संस्कार जो कल होना था कैंसिल करना पड़ा।एक महीने बाद ही हो पाएगा।मेरे बेटे को टूर में जाना पड़ गया,तो सुधा भी बच्चे को लेकर साथ में चली गई।मैंने कहा था उससे कि आपको बता दें।”समधन के मुंह से निकली बातें मानो श्यामा के मुंह में तमाचे जड़ रहे थे।एक बार बताने की जरूरत भी नहीं समझी उसने अपनी मां से।कितने चाव के साथ एक-एक चीज सहेजकर लाई थी,अपनी नातिन के मुंह जूठे के लिए।श्यामा आज अपनी बहू के सामने खुद को अपमानित महसूस कर रही थी।सारा सामान समधन के हांथ थमाकर श्यामा शाम की ट्रेन से ही बहू के साथ वापस आ गई।बेटा तो अब तक बन के घर जाने के लिए निकल चुका होगा।

घर पहुंचकर श्यामा बाथरूम में जाकर बहुत रोई।बहू के सामने कैसे कमजोर पड़ सकती है ?बाहर निकली तो बहू सामने ही खड़ी थी।उसे देखकर उनका आहत आत्मसम्मान फिर पिघलने लगा आंखों से।बहू इन सालों में समझने लगी थी अपनी सास को अच्छी तरह।श्यामा से लिपटकर बोली”मां, प्लीज़,सुधा को माफ कर दीजिए।ग़लती हो गई है उससे।आप दिल में मत रखिए यह सब।बता नहीं पाई होगी काम की व्यस्तता की वजह से।”

श्यामा ने दृढ़ होकर कहा”नहीं,यह बात मैं कभी नहीं भूलूंगी।शादी के बाद अपने मायके के प्रति जो रवैया अपनाया है सुधा ने,उसे इसका प्रायश्चित करना होगा।आज तो भाई भी पहुंच जाएगा,ढेरों सामान लेकर अपनी भांजी के मुंह जूठन के लिए।कितना दुःख होगा उसे वहां जब वह नहीं मिलेगी।सुधा ने आज यह प्रमाणित कर दिया कि शादी के बाद बेटियां पराई हो जातीं हैं।ससुराल वालों को हम बेवजह ही दोष देतें हैं।अगर बेटी के मन में अपने मायके के लिए चिंता और प्रेम होगा तो कोई उसे मन से निकाल नहीं सकता।सुधा के इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं।”

बहू अवाक होकर एक सास और मां को देख रही थी,और मां बेटी के पराई हो जाने की बात स्वीकार करके सहज हो रही थी।

शुभ्रा बैनर्जी

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