बिट्टू अब तो सुशीला को और भी घमंड हो जायेगा , दूसरा भी पोता जो हो गया…कामिनी जी बोली
मां घमंड किस बात का…उनके दो पोते हैं तो आपके भी तो दो पोतियां हैं… बिट्टू ने अपनी बेटी को गोद में उठाते हुए कहा
दरअसल बिट्टू की पत्नी सीमा दूसरी डिलीवरी में बच्ची को जन्म देते ही अत्यधिक रक्त स्राव के कारण चल बसी थी तब से पिछले तीन साल से बिट्टू अपनी पांच और तीन साल की बेटी के लिए माता और पिता दोनो की भूमिका निभा रहा है।
अभी हाल ही में उसके चचेरे भाई की पत्नी ने दूसरे बेटे को जन्म दिया है इसलिए कामिनी जी को लग रहा है उसकी देवरानी को घमंड हो जायेगा। तभी सुशीला जी की आवाज़ से दोनो चौंक उठे
लीजिए भाभी लड्डू खाइए, दूसरी बार पोते की दादी बनी हूं पर ये किस्मत हर किसी की नही होती ..सुशीला बिट्टू की बेटी को देखते हुए घमंड भरे व्यंगात्मक लहज़े में बोली
बहुत बधाई हो सुशीला, पर आजकल बेटे बेटी का भेद मिट गया, अब लड़कियां भी लड़कों से कम थोड़े न होती हैं।
हां भाभी , बात तो ठीक है आपकी पर कुल का नाम तो लड़का ही रोशन करता है और वंश आगे बढ़ाता है। लड़कियां तो पराया धन होती हैं बेचारी…
ऐसा नही है चाची , जब बेटा नाम रोशन कर सकता है तो बेटियां क्यों नही ? आखिर वो भी तो हमारा ही खून और परिवार का हिस्सा है। मेरी मानो तो बेटियां दो दो कुलों का नाम रोशन करती है.. मायके और ससुराल का… बिट्टू बोला
सुशीला को अब अपनी दाल गलती नजर नहीं आ रही थी तो उसने वहां से विदा ले ली ।
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समय कब पंख लगाकर उड़ गया पता ही नही चला। सुशीला के पोते और कामिनी की पोतियां भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे। सुशीला ने जहां पोतों को धन ऐश्वर्य का सुख दिया पर शायद संस्कार देना भूल गई वही कामिनी की पोतियों में संस्कार कूट कूट कर भरे थे।
सुशीला ने हमेशा ही अपने दोनो पोतों पर विशेष घमंड किया। उसे लगता था कि पोते होने से उसका रुतबा बढ़ गया क्योंकि उसके खानदान में बस उसी के बेटे को लड़के थे बाकी सबके लड़कियां इसलिए परिवार में हमेशा उसको पहले पूछा जाता।
और वो घमंड से इतराती लेकिन दोनो ही पोते संजय और विजय बचपन से ही जिद्दी और किसी की नही सुनने वाले थे।
मोहल्ले और परिवार के किसी भी बच्चों से उनकी बनती नही थी वो हमेशा खुद को सबसे होशियार और पैसे वाला समझते थे इसलिए पैसे वाले लोगो से ही दोस्ती रखते थे। लिखने पढ़ने में भी दोनो अव्वल ही थे और इस बात का घमंड उनके व्यवहार से झलकता था
जबकि कामिनी की दोनो पोतियां शुचि और रुचि स्वभाव से मिलनसार और समझदार थी । दोनो पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनना चाहती थी इसलिए एक सिविल सर्विस की तो दूसरी लॉ की पढ़ाई कर रही थी।
सुशीला ने कितनी बार कहा कि इतना पढ़ा लिखा कर लड़कियों को सर पर मत चढ़ाओ, सही उम्र में हाथ पीले कर दो तो जीवन संवार जाएगा पर बिट्टू हमेशा अपनी बेटियों की सुनता और उनको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करता।
संजय और विजय दोनो विदेश जाना चाहते थे पढ़ने के लिए इसलिए वो लाख समझाने के बावजूद भी विदेश चले गए और फिर वहीं के होकर रह गए। सुशीला और उसके बेटे बहु बच्चों की राह तकते रह गए पर बच्चे कभी वापस नहीं आए
इधर शुचि और रुचि की मेहनत भी रंग लाई और शुचि आईएएस अफसर तो रुचि ने वकालत की परीक्षा पास कर ली। अब घमंड से सिर ऊंचा करने की बारी कामिनी जी की थी वो अपनी पोतियों की बलैया लेते हुए नही थक रही थी।
शुचि ने तो शादी करने से मना कर दिया क्योंकि पापा और दादी को वो किसके भरोसे छोड़ती जबकि रुचि ने भी उसके साथ काम करने वाले अनाथ राम का शादी का प्रस्ताव सिर्फ इसी शर्त पर स्वीकार किया कि शादी के बाद भी वो उसके साथ रहेगा।
अब कामिनी जी 85 साल की हो गई और पोतियों की देखरेख में खूब फल फूल रही हैं जबकि सुशीला को चिंता के कारण अनेक बीमारियों ने घेर लिया है।
#घमंड
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन