“मम्मी जी आज आप रसोई में क्या कर रही है…?” हैरान हो राशि ने पूछा
“अरे बहू सुन तू भी मेरी थोड़ी मदद कर दे….आठ दस लोगों का खाना बनवाने में मेरी मदद तो कर…!” सास सुलभा जी ने कहा
“ हाँ वो तो ठीक है पर दोपहर का हमारा खाना मैं बना चुकी हूँ…फिर ये सब खाना… कोई आने वाला है क्या ?” राशि ने पूछा
“ अरे कोई नहीं आ रहा और तू भी ज़्यादा सवाल जवाब ना कर मेरी मदद कर जल्दी जल्दी… ना जाने कब ड्राइवर खाना लेने आ जाएगा…।” कहती हुई सुलभा जी राशि के साथ मिलकर खाना बना कर टिफ़िन में पैक करने के बाद निश्चित हो सोफे पर बैठ ड्राइवर का इंतज़ार करने लगी
जैसे ही ड्राइवर आया टिफ़िन के थैले थमा कर उसे ठीक से जल्दी जाने बोल कर अपने मोबाइल से किसी को फ़ोन लगा दी…
“ देख मैंने सब बना कर भेज दिया है बस तुम निकाल कर खिला देना और जितना हो सकें उतना आराम करना …. यहाँ मैं और राशि है ना मिलकर कर लेंगे सब।”
राशि जो दूर से ही सब देख रही थी कार देख समझ गई कि ये सब किया गया है ननद रानी लावण्या के लिए…. और मम्मी जी बताना नहीं चाह रही है वो तो उनकी कार और ड्राइवर को देख समझ आ गया पर ऐसा क्या हो गया कि आज फिर सासु माँ को ननद के घर खाना भिजवाना पड़ गया।
राशि चाहती तो थी पूछ ले पर दिल ने इजाज़त ना दिया और वो सब कुछ नज़रअंदाज़ कर अपने कमरे में चली गई।
रात के खाने के लिए क्या बनाया जाए इस पर विचार ही कर रही थी की सासु माँ उसके पास आई और बोली,“ राशि सोच रही हूँ रात को कुछ अच्छा सा बना लेते हैं और थोड़ा ज़्यादा बना कर लावण्या के घर भी भिजवा देंगे…. वो क्या है ना …उसकी तबियत ठीक नहीं है … और मेरी फूल सी बच्ची से बीमारी में काम होता नहीं है…
अब सास -ससुर पति और देवर के लिए कैसे खाना बना पाएगी…. जानती तो हो उसकी सास अक्सर बीमार ही रहती हैं तो वो क्या मदद कर पाएगी….. और वो लोग खाना बनाने वाली रखना नहीं चाहते…..अब हम पास में ही रहते हैं तो सोचती हूँ क्यों परेशान हो वो लोग हम है ही इतना तो कर ही सकते हैं …
लावण्या तो सुबह सुबह ही फ़ोन कर के बोली माँ बुख़ार हो गया है पता नहीं मुझसे खाना कैसे बनेगा…. बाकी काम तो मेड कर भी दे पर रसोई का काम वो तो ….. तभी लगा मैं हूँ तो वो क्यों परेशान हो…. बस बेटा सुबह दामाद जी के कुछ दोस्त आ गए थे इसलिए ज़्यादा लोगों का बनाना पड़ा पर अभी पाँच लोगों का बनाना है हमारे साथ साथ उनका भी बना देना….. ला सब्ज़ी काट कर रख देती हूँ और एक मटर पनीर ज़रूर बना लेना… बाकी हम जो खाते हैं वही बना देना।”
राशि सासु माँ की बात सुन हाँ में गर्दन घुमा दी।
उस दिन तो खाना लावण्या के घर चला गया…. वो भी खुश और उसके परिवार को कोई परेशानी भी नहीं हुई ।
एक दिन सुलभा जी सुबह की सैर करके आने के बाद चाय का इंतज़ार कर रही थी…. पर राशि आज कमरे से ही नहीं निकली…
“ ये बहू भी ना…. रात भर जाग कर मोबाइल देख रही होगी सुबह उठने में आलस कर रही है…अब क्या उसके रहते मैं ही चाय बनाऊँ…. !” भुनभुनाते हुए राशि के कमरे की ओर बढ़ी
वो राशि के कमरे में जाकर जैसे ही दरवाज़े के पास पहुँची आवाज़ सुनाई दी,“ कह रहा हूँ ना तुम चुपचाप आराम करो…. बुख़ार से शरीर तप रहा है पर इसको मम्मी जी की चाय की चिन्ता सता रही है …. माँ खुद से कर लेंगी मैं बोल देता हूँ तुम आज आराम करो।”ये बेटे निकुंज की आवाज़ थी
“ अच्छा तो आज महारानी जी का तबियत ख़राब है… काम नहीं करना पड़े तो अक्सर ये बहाने हमने भी बनाए है… अब मैं इसके रहते काम करूँ…।” बोलते हुए कमरे में आ गई
“ क्या कह रही हो माँ…. तुम्हें क्या लग रहा राशि बहाने कर रही है…. खुद ही देख लो…. और ये क्या बात हुई इसके रहते मैं काम करूँ….. तुम नहीं कर सकती मत करो मैं कर लूँगा पर इसकी हालत तुम ख़ुद देख लो….।” माँ पर तनिक रोष व्यक्त करते निकुंज ने कहा
“ तुम क्यों करोगे…. बेटा इतना भी बुख़ार नहीं की ये चाय ना बना सके…. अरे हमने तो इससे भी बुरी हालत में कितनों के लिए खाना बनाया है ये तो मामूली सा बुख़ार ही है ।”
“ कमाल हो माँ तुम भी…. लावण्या दीदी को जरा सा बुख़ार हुआ तुम उनके घर खाना भिजवाने को तैयार हो गई राशि ने भी बिना कुछ कहें सब किया पर जब ये बीमार पड़ी तो तुम्हें बहाना लग रहा है….बहाना तो लावण्या दीदी ने बनाया था….उन्हें दोस्तों के साथ किटी में जाना था उसके चक्कर में वो तुमसे रो कर बोलती है और तुम तुरंत उनके काम को हल्का कर देती हो ……
यहाँ बहू सच में बीमार है तो तुम्हें बहाना लग रहा है….. माँ ये पत्नी हैं इसलिए तरफ़दारी नहीं कर रहा बस आपको बता रहा हूँ आँखों पर जो बहू बेटी को लेकर पर्दा पड़ा है उसे हटाओ नहीं तो बाद में पछताओगी….. चलो मैं तुम्हारे लिए चाय बना देता हूँ और राशि को भी कुछ खिला कर दवाई दे दूँ… ये रात भर बुख़ार की वजह से सो नहीं पाई है…
इसे आराम करने दो आज आराम नहीं करेंगी तो चार दिन और बिस्तर पर पड़ी रहेगी फिर काम कैसे होगा तुम जानों…।” कहकर निकुंज माँ के लिए चाय बनाने रसोई में चला गया
सुलभा जी अवाक हो बेटे को देखती रह गई…. फिर ना जाने क्या सोच कर राशि के क़रीब गई और उसके सिर पर हाथ रख दिया….. तपते बदन की गर्मी से हाथ जलता हुआ प्रतीत हुआ…. झट से हाथ खींचते हुए बोली,“ तुम्हें तो सच में बहुत बुख़ार है…. मैं भी ना …. ना जाने क्या क्या सुना गई पर बहू ये सब काम मेरे बस का नहीं…. अब आदत छूट गई है तुम्हारी थोड़ी मदद तो कर सकती हूँ पर पूरी ज़िम्मेदारी वो अब ना हो सकेगा… तू तो जल्दी ठीक हो जा…. अच्छा ये बता निकुंज को कैसे पता चला लावण्या के बारे में…?”
“ वो मम्मी जी उसी रात को इन्होंने बताया कि आज कुछ क्लाइंटस के साथ लंच पर मीटिंग के लिए गए थे उधर ही लावण्या दीदी दिखाई दी…. फिर मैंने कहा कि अरे वो कैसे जाएगी उनकी तबीयत ठीक नहीं थी तभी तो हम उनके घर खाना भेजे…तब निकुंज ने कहा दीदी अपना काम हल्का करने के लिए ऐसे बहाने ख़ूब बनाती रहती हैं…।”राशि ने कहा
“ बेटा मुझे माफ़ कर दे…मैं तो सोची मेरी बेटी सच में बीमार है इसलिए उसकी मदद कर दूँ पर अब वो कहेंगी तो साफ मना कर दूँगी…. जब ज़्यादा ज़रूरी हो तभी मदद करेंगे….उसकी वजह से तुम्हें भी ज़्यादा काम करना पड़ जाता है ।” सुलभा जी ने कहा
“ कोई बात नहीं मम्मी जी दीदी भी हमारे घर का हिस्सा है …हाँ पर उन्हें ऐसे झूठ बोलना शोभा नहीं देता ….।” राशि ने कहा
“ माँ चाय बन गई आकर पी लो…।” निकुंज ने आवाज़ लगाई
“ आई ”कहकर सुलभा जी राशि की ओर मुख़ातिब हो बोली,“ बहू तू जल्दी ठीक हो जा…. तेरी सास को तेरे हाथ की चाय ज़्यादा पसंद है ।”
राशि अपनी सास को मुस्कुराते हुए देखी और बोली,“ हाँ मम्मी जी बस कुछ खा कर दवा लेती हूँ… बुख़ार उतरते आपको अपने हाथ की चाय पिलाती हूँ ।”
तभी निकुंज कमरे में चाय टोस्ट ले कर आ गया…. राशि को खिला कर दवा दे दिया….
बाहर आ कर निकुंज ने सुलभा जी से कहा,”माँ बहू चाहे कितना भी कर ले वो बेटी नहीं बन सकती…पर आँखों पर पट्टी बाँध कर तो मत बैठो…तुम्हें भी पता है दीदी बचपन से ही नखरे करने में माहिर और बहाने तो वो वैसे बनाती है जैसे सच में उन्हें कुछ ह गया हो…
उस दिन ही मुझे पता चल गया था लावण्या दीदी झूठ बोल कर तुम्हें अपनी पार्टी करने चली गई थीं सोचा तुम्हें बता दूँ पर राशि ने मुझे मना कर दिया… इससे आप सबके रिश्ते में खट्टास आएगी…और आज तुम अपनी बहू की बीमारी को ही बहाना कह रही हो.. वो जैसे ही थोड़ी बेहतर होगी वो खुद तुम्हें काम नहीं करने देगी… पर यही बात क्या तुम अपनी बेटी के लिए बोल सकती हो… नहीं ना… जब तक तुम बहू को अपनी बेटी जैसा ना समझोगी वैसे विचार वैसा प्यार कहाँ से ला पाओगी… बस चाहता हूँ हम सब प्यार से रहे और कुछ नहीं ।”
सुलभा जी बेटे की बात चुपचाप सुनती रही और समझने की कोशिश कर रही थी… बेटे को बहू के प्रति ज़िम्मेदार निभाते देख अपने दिन याद करते हुए सोच रही थी ये एकदम अपने पापा पर गया है ।
दवा और आराम से एक दिन में राशि ठीक हो अपनी पुरानी दिनचर्या में आ गई पर इस बार बीमारी ने उसकी सास की आँखे खोल दी थी…. बेटी बहू को समझने और उनके द्वारा किए गए व्यवहार पर अपनी प्रतिक्रिया पर भी।
“ तुम सही कह रहे हो बेटा आगे से ध्यान रखूँगी ।” सुलभा जी ने कहा
“ मेरी प्यारी माँ ।” कहता हुआ निकुंज माँ के गले लग गया
सुलभा जी भी समझ रही थी समझदारी इसी में है अब सोच समझ कर चलना होगा नहीं तो जो सेवा कर रही है कल को उसने भी बेटी की तरह बहाने बनाना शुरू कर दिया तो मेरा क्या होगा ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#वाक्यकहानीप्रतियोगिता
# बहू कितना भी कर ले वो कभी बेटी नहीं बन सकती