बेटी अब से ससुराल ही अब तेरा घर हैं अब तू यहॉँ की मेहमान हैं – कविता सक्सेना : Moral Stories in Hindi

सिया की शादी की तैयारी चल रही थी उसके पिता रवि और माँ रंजना अक्सर लड़के देखने जाते थे

सिया से आकर कहते तो वो हर लड़के में कमी निकालती कभी कहती लड़के की हाइट कम हैं कभी कहती मोटा हैं उसकी हरकतों से माता पिता परेशान थे

जब भी वह उससे शादी की बात करते थे वह मना कर देती थी सिया की उम्र भी बढ़ती जा रही थी एक दिन सिया के पापा से कहाँ आखिर तुम चाहती क्या हो क्या तुम्हारी मर्जी हैं

क्या तुम किसी से प्यार करती हो तब सिया ने कहाँ हैं जब में देहली में नौकरी करने गयी थी

तभी उसी कम्पनी में एक लड़का मेरे मैनेजर थे उन्ही ने मुझे प्रोपोज़ किया हमारा लगभग ६ साल से अफेयर चल रहा हैं

पापा ने कहाँ की ठीक हैं यदि तुमने ठीक से जांच पड़ताल कर ली हैं सिया ने कहाँ हैं पापा परितोष अच्छा लड़का हैःमल्टीनेशनल कंपनी में काम करता हैं

इनकम भी अच्छी हैं तब पापा ने कहाँ यदि तुम सन्तुष्ट हो तो हम बात आगे बढ़ाते हैं ये सं २०२१ की बात हैं हम अप्रैल में सिया के चाचा चची भाई माँ बाप सिया परितोष के घर गए व् हमारा आदर सत्कार भी हुआ

हमने परितोष को रोके में अच्छा सामान दिया हम ठहरे यूपी वाले जड़ी सब पर विश्वास कर लेते हैं

लेकिन अप्रैल के बाद से परितोष और सिया में झगड़ा होने लगा वह शादी करने की जल्दी मचाने लगे जब की हम दिसंबर में शादी करने के मूड में थे

इस बीच सिया और परितोष में फ़ोन पर काफी झगड़ा हुआ तब हमने दिसंबर में शादी न करने का प्रन किया सिया के लिए दूसरे लड़के देखे जाने लगे

इसी बीच परितोष सिया की बुआ और उनके लड़के नयन से बात करने लगा नयन और सिया की बुआ ने सिया पर दबाव बनाना शुरू किया

की आपस में इस प्रकार झगडे होते रहते हैं तुम परितोष से फिर से बात करों सिया के माता पिता और भाई इस बात से अनजान थे

की सिया अब भी परितोष से बात करती हैं सिय्स के बार बार कहने पर फिर एक बार फरबरी में मीटिंग फिक्स हुई वहां पर शादी की डेट फिक्स की गयी

खैर अप्रैल में सिया और परितोष की शादी हो गयी जैसे ही सिया विदा हो रही थी तब ही उसकी बड़ी ताई जी ने कहाँ कि रंजना तुम सिया को सुबह शाम फ़ोन करती रहना

क्यों बारात आने से लेकर जाने तक वो ूँउनकी हरकतें देख चुकी थी रंजना से कहा बहुत लोगों ने तुम सिया का कन्या दान करो लेकिन रंजना बरसों से चली आ रही कुरीति का हमेशा से विरोध करती आयी हैं

इसलिए उसने सिया का कन्यादान भी नहीं किया लेकिन उसने हमेशा अपनी बेटी को समझाया कि ससरल में सबका सम्मान करना

लेकिन हालात उसके उलटे निकले नयी नवेली दुल्हन का सम्मान तानों से हुआ कि तुम्हारे पापा ने बारातियों का स्वागत ठीक तरह से नहीं किया सास ताने मरती कि

तुम्हे खाना बनाना नहीं आता सिया ने ये बात अपनी मां को बताई तो माँ ने समझाया कि शुरू में ऐसा चलता हैं

हद तो जब हो गई जब सिया का मन विदा करने के बाद वह ससुराल दोवारा नहीं जाना चाहती थी एक बार तो जब हद हो गई

जब परितोष ने पति पत्नी के झगडे में पुलिस बुला ली सिया का भाई उसे बुलाकर अपने घर ले आया और बोलै मां अगर दीदी वहां रही हि तो घुट घुट कर मर जायेग

सिया को फिर से नौकरी कराइ गयी ताकि उसका ध्यान बंट सके परितोष आज भी उसके माँ बाप को सुनाता हैं कि ये आप लोग यहाँ क्यों आते हो ये होटल नहीं हैं

इस कहानी को लिखने का मकसद सिर्फ मेरा इतना हैं बेटा अब ससुराल ही तेरा घर हैं अब यहाँ कि तू मेहमान हैं गलत हैं २१वी सदी में भी यदि हमारी बेटी को ये ही शिक्षा दी जायेगी

तो वह मर कर ही निकलेगी यदि ससुराल वाले अच्छे हैं तो हम भी उसे अच्छे संस्कार देंगे लेकिन आज की बेटी अपने माता पिता पर बोझ नहीं हैं

उसके लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए खुले हैं हर माँ बाप को में ये सलाह दूंगी दहेज की जगह बेटी को आत्मनिर्भर बनाया जाए

और उसके भविष्य के लिए एक अच्छी धनराशि जमा की जाए ताकि वह ससुराल से प्रताड़ना मिलने पर ख़ुशी के साथ अपना जीवन जी सके 

कविता सक्सेना

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