बेटे की मां हूं, दहेज तो लूंगी – अर्चना खण्डेलवाल 

मुझे लड़की तो पसंद है, लेकिन लड़की वाले कितना दहेज देंगे, और सोने के जेवर में क्या चढ़ायेंगे? एक ही बेटा है मेरा, जब तक मनचाहा दहेज नहीं मिलेगा, मैं यश की शादी नहीं करूंगी, अहंकार से वनिता जी ने फोन पर कहा तो उधर से किरण दीदी ने फोन रख दिया।

अरे!! किसका फोन था? और तुमने ये क्या दहेज-दहेज लगा रखा है? आजकल के जमाने में कोई दहेज नहीं लेता है, सुधीर जी ने समझाते हुए कहा तो वनिता जी चिढ़ गई, आप तो रहने ही दो, मैं बिना दहेज के शादी नहीं करूंगी, आखिर यश की पढ़ाई में इतना खर्चा किया है, बेटे की मां हूं, धन तो वसूल करूंगी।

वक्त से डरो, वनिता, ये सब चोंचले अब पुराने हो गये है, लड़की वालों को भनक लगती है कि दहेज मांगा जा रहा है तो वो खुद ही रिश्ता तोड़ देते हैं और लड़के वाले कहीं के नहीं रहते हैं, सुधीर जी ने आगाह किया।

आप तो रहने ही दो, आज भी धूमधाम से शादियां हो रही है, सब अपनी बेटी को देते हैं, खाली हाथ कोई विदा नहीं करता है, सब सामान, कपड़ा, जेवर तो देते हैं, अरे!! साज-सज्जा में इतना खर्चा करते हैं, तो बेटी को ना देंगे, अब मुझे वो किरण दीदी ने जो बताई है, दीप्ति मुझे पसंद है पर पहले पता तो चले कि लड़की वाले कितने पानी में है? मैं जब तक आश्वस्त नहीं हो जाती ये रिश्ता नहीं होगा और ये कहकर वनिता जी रसोई में चली गई।

सुधीर जी ने समझाना चाहा, पर वो नहीं समझ रही थी, एक ही बेटा है, उसकी शादी धूमधाम से करूंगी, ये करूंगी, वो करूंगी, उनके चंचल मन में अनेक कल्पनाएं चल रही थी।

सुधीर जी और वनिता जी का इकलौता बेटा यश काफी आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था, उसने अपने गुणों से अपने पिता के व्यापार को चौतरफा फैला लिया था, घर में धन की कोई कमी नहीं थी, यश भी काफी संस्कारी था और वो काफी सादगी से रहता था, उसके कोई गलत शौक और आदत नहीं थी, और उसे लड़की भी अपनी जैसी ही चाहिए थी, यूं तो कई रिश्ते आयें लेकिन उसे अपनी मनपसंद की लड़की नहीं मिली।

अभी कुछ दिनों पहले वो अपनी मौसी के घर उनकी बेटी की शादी में गया था, वहां उसे दीप्ति मिली जो उसकी मौसी की ननद की बेटी थी, दो दिन में उसने दीप्ति के रहने का सलीका और व्यवहार देखा तो उसे लगा कि उसकी खोज पूरी हो गई है, दीप्ति सामान्य परिवार से थी, उसने मौसी को बोला कि वो मम्मी को ये रिश्ता बतायें, लड़की वनिता जी को भी पसंद थी, लेकिन वो धन और दहेज के लिए अड़ी हुई थी।

अगले दिन गांव से वनिता जी की सासू मां अचानक पहुंच जाती है, उन्हें देखकर वनिता जी मुंह बनाती है, यश उन्हें अंदर घर में ले जाता है तो वनिता जी और गुस्सा हो जाती है, इन्हें क्यों लेकर आया है? हर महीने पैसे भेज तो देते हैं, वैसे भी ये पैसे की ही भूखी है, इन्हें अपनी बहू का प्यार और सम्मान तो नहीं चाहिए।

मैं इनके साथ एक पल भी नहीं रह सकती, इनकी दहेज की मांगे पूरी करते-करते पिताजी चल बसे, मां आज भी आंसू बहा रही है, और दोनों भाई किराये की दुकान चला रहे हैं।

अगर ये दहेज नहीं मांगती तो पिताजी को गांव का घर और दुकान गिरवी रखना नहीं पड़ता और आज मेरे मायके वाले एक सम्मान का जीवन जी रहे होते, इन्हें अभी यहां से भेज दो, मैं इनका चेहरा भी देखना नहीं चाहती हूं।

तभी यश बोलता है, मां ये आपका आने वाला कल है, वक्त से डरो, जो कल दादी ने आपके साथ किया था, वो ही आप घर में आने वाली बहू के साथ कर रही हो, दहेज का लालच बेटे का अहंकार इन्हें भी था और दहेज का लालच बेटे का अहंकार आपको भी है, आज आप दादी से इतनी नफ़रत करती हो क्योंकि उन्होंने बहुत दहेज मांगा था और आज आप भी दीप्ति के घरवालों से दहेज मांग रहे हो।

ये सुनते ही वनिता जी के पैरों से जमीन सरक गई, वो बुत बनकर खड़ी हो गई,  मां कल को दीप्ति भी आपका सम्मान नहीं करेंगी, कुछ धन के लालच में ससुराल वाले आने वाली बहू के मन से उतर जाते हैं, वो दहेज उनके पास भी नहीं रहता है, बाद में बहू सब मेरे मायके से आया है, ये कहकर हर चीज ले ही लेती है, फिर सास और बहू के बीच में हमेशा के लिए एक गहरी खाई बन जाती है।

बहू अपनी सास के खिलाफ पति के कान भरती है और कुछ सालों बाद सास अपना बेटा, बहू, सम्मान, प्यार और दहेज में मिला सामान सब खो देती है।

दादी ने आपको कभी प्यार नहीं दिया, उन्हें हमेशा पैसे का लालच रहा और इसी वजह से आप उनका कभी सम्मान नहीं करती, उनके साथ भी नहीं रहती, उनकी सेवा भी नहीं करती है।

अगर आप भी इसी तरह दहेज और धन की लालची रहेगी तो आने वाली बहू आपके साथ भी वो ही व्यवहार करेंगी जो दादी के साथ आप करते हो।

आप सोच लीजिए, आपको पैसा चाहिए या सम्मान और सेवा करने वाली बहू चाहिए, कल को मेरी पत्नी भी आपको अलग कर देगी और हर महीने पैसा भेज देगी।

आपको अपने बेटे बहू के साथ रहना है तो दहेज मत मांगिए और अलग रहना है तो दहेज वाली बहू लाइये लेकिन ये सच बात है कि आने वाली बहू के मन में प्यार रहेगा या नफ़रत, ये ससुराल वालों के व्यवहार और मांग पर निर्भर करता है।

लड़की वाले तो दहेज की मांग पूरी करके विवाह कर देते हैं, लेकिन लड़की के मन में आजीवन ये दहेज एक शूल की भांति चुभता रहता है और वो ससुराल वालों का सम्मान नहीं कर पाती है।

यश की बातें सुनकर उसकी दादी की आंखे शर्मिंदा हो जाती है, वनिता जी ठगी सी कभी अपने बेटे और कभी सास को देखती है, वो समझ जाती है यदि उनका व्यवहार ऐसा रहा तो भविष्य में वो अपनी सास की जगह ही खड़ी होगी, सुधीर जी हैरान रह जाते हैं कि उनके बेटे ने उनकी पत्नी की आंखे खोल दी, पूरे घर में सन्नाटा छा जाता है।

अगले दिन सुबह दादी गांव जाने के लिए तैयार होती है तो वनिता जी उन्हें रोक लेती है, अब से आप हमारे ही साथ रहेंगी, आपने जो किया था, आपने उसकी बहुत बड़ी सजा भुगत ली, ये सुनकर यश की दादी रोने लगती है, मुझे भी माफ कर दें बहू, मैंने हमेशा पैसों का लालच किया और तेरे मायके वालों को परेशान किया, बदले में मुझे ये अकेलापन और नफ़रत मिली।

हां, पर अब आपने प्रायश्चित कर लिया है, अब आपका मन निर्मल हो गया है, आप यही रहेंगी, पापाजी के जाने के बाद आप गांव में अकेली रह गई थी, मैंने भी कभी आपको संभाला नहीं और ना ही घर में आने दिया, लेकिन मैं अब चाहती हूं कि आप यही रहे, दीप्ति जब घर में आयेगी तो उसे हमारे बीच में प्यार और सम्मान नजर आना चाहिये।

वनिता जी यश और सुधीर जी को बुलाती है और फोन लगाती है, किरण दीदी, दीप्ति हम सबको बहुत पसंद है और हम जल्दी ही ये शादी करना चाहते हैं….

लेकिन वनिता तुझे तो दहेज की अच्छी रकम चाहिए थी, वो दीप्ति के पिताजी नहीं दे पायेंगे, किरण दीदी ने पलटकर पूछा।

नहीं, दीदी हमें कोई दहेज नहीं चाहिए, लक्ष्मी मां की कृपा से घर में कोई कमी नहीं है, हम बस ये शादी करना चाहते हैं, हमारी कोई मांग नहीं है, लड़की अच्छी है, मेरे यश को पसंद है, इसी में मेरी खुशी है,और वनिता जी यश और दीप्ति का रिश्ता स्वीकार कर लेती है।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल 

#वक्त से डरो

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